Sunday 23 May 2010

मिडल क्लास की नोकीली नाक


निरुपमा या उसके जैसी अनगिनत लड़कियों कि मौत ने समाज के तीन चेहरों को सामने रखा है. पहला तो वो जो सीधा सीधा क़त्ल का विरोध करता है और व्यक्ति की स्वतंत्रता को एहमियत देता है, दूसरा वो जो खाप पंचायत की तरह अक्खड़ है और लड़कियों के चौखट लांगने पर मुह पर तकिया रख कर सांस रोक देने को सही मानता है. पर तीसरा चेहरा सबसे ज्यादा घिनोना है क्यूंकि ये वो लोग हैं जो अपनी बेटियों को इज्ज़त के नाम पर जान से मारने का हौसला तो नहीं रखते पर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित ज़रूर करते हैं, ये वो चेहरा है जो समाज में खुद को शरीफ और नए ख्यालात वाला दिखाता है पर अपनी बेटियों और बहनों को ताले में बंद रखता है. यही वो समाज है जहाँ लड़की कि ज़बरदस्ती शादी कर दी जाती है. हिंदी फिल्मों का वो विलन जो बेटी के प्रेमी को गुंडों से पिटवाता है इस चेहरे से हुबहू मिलता है.


गैर बिरादरी में शादी करना. दूसरी ज़ात के शख्स से कोई ख़ास रिश्ता कायम करना हमारे समाज में गुनाह है. ख़ास कर तब जब ऐसा घर की बेटी करे. बेटी का boyfriend नाम के शख्स के लिए हमारे यहाँ कोई जगह नहीं होती. हाँ बेटे की girlfriend के घर पर फ़ोन आने की छूट ज़रूर होती है. हमारा मिडल क्लास हाई सोसाइटी के समकक्ष खड़े होने की होड़ में लगा हुआ है. वो भी शानदार पार्टियों में नाचना चाहता है, समाज की परवाह किये बिना मस्ती में हंसना चाहता है पर दूसरी तरफ अपने पड़ोसियों के आगे संस्कृति की दुहाई भी यही देता है. सामने वाले घर में अगर ऊँची आवाज़ में गाने बजे तो दरवाज़ा पीट कर तमीज भी अपना मिडल क्लास ही सिखाता है. ये बात और है कि अगर किसी कि नज़र ना पड़े तो अपने घर का कूड़ा दूसरों के घर के सामने फेंकने से इस नोकीली नाक वाले समाज को गुरेज़ नहीं होता. दो चेहरे तो आज हर शख्स के हैं लेकिन दो सभ्यताओं और दो मान्यताओं के बीच इस दोगले समाज की हालत थाली के बेंगन जैसी हो गयी है. रियालिटी शोज़ में टीवी पर थिरक रहे बच्चों को देख कर ये कभी मुस्कुराता है, कभी रोता है. किसी की जीत पर खुश तो किसी की हार पर उदास होता है लेकिन अपनी ही बेटी के 'डांस क्लासेस' ज्वाइन करने की जिद को सिरे से खारिज कर देता है.

एक मिडल क्लास परिवार में माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, पालते हैं इस उम्मीद के साथ कि वो आगे चल कर उनका नाम रौशन करेंगे. उनकी मर्ज़ी से घर बसायेंगे, अगर बेटा है तो अच्छा दहेज़ लेंगे अगर बेटी है तो रुखसत कर के अपना फ़र्ज़ उतारेंगे. हमारे मिडल क्लास समाज में अच्छी औलादें नहीं होतीं. यहाँ अच्छा बेटा या अच्छी बेटी होती है. अच्छा बेटा वो है, जो नशा ना करे, सड़क पर मार पीट ना करे, पढाई करके अच्छी नौकरी करते हुए अपना घर बसाये, शादी के बाद बीवी की तरफ से ना बोले और माता पिता का साथ देते हुए कभी कभार बीवी को डांट फटकार भी लगाता रहे. लेकिन अच्छी बेटी बनने के लिए फेहरिस्त थोड़ी लम्बी है. सबसे पहले, अच्छी बेटियों का मतलब होता है जिसका कोई boyfriend ना हो. जो पढ़ाई करे co-education भी ले. पर लड़कों से ज्यादा बातचीत ना करे, अपने रिश्तेदारों के बीच गवांर ना लगे पर modern भी ना हो. जॉब करना चाहे तो करे पर शाम 6 बजे तक घर आजाये. घर का काम काज भी अच्छे से जानती हो, छुटी के दिन किचन में हाथ बंटाए. खाना अच्छा पकाए और अंग्रेजी भी अच्छी बोलती हो. शादी के बाद नौकरी का ख्याल दिल से निकाल कर अपनी सारी पढ़ाई और उपलब्धियों को भूल कर परिवार कि देख रेख में लग जाए. लेकिन हमे हमेशा वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं और नई पीढी ने हमेशा ही पुरानी पीढी को निराश ही किया है. तो फिर अगर बेटे ने किसी को पसंद किया और घर से दूर जा कर अपनी ज़िन्दगी बसा ली तो कुछ रोने-धोने, कुछ इमोशनल ब्लैक मेल के बाद बेटे के कारण बहु को आधे मन से ही सही अपना लिया जाता है. पर अगर बेटी ऊँची उड़ान भरने लगे, अगर बेटी प्यार मोहब्बत में पड़ जाए तो क्या करें ? इज्ज़त के नाम पर उसकी बलि चढ़ा दें ? हाँ. क्यूँ नहीं क्यूंकि इज्ज़त बड़ी मुश्किल से मिलती है, दुनिया में इज्ज़त कमाने में बरसों लग जाते हैं पर गवाने में एक पल लगता है. वैसे भी मिडल क्लास के पास इज्ज़त के अलावा और है भी क्या. असल में मिडल क्लास के पास आँख नहीं है कि वो बदलती दुनिया को देख सके, कान नहीं है कि मासूम ख्वाहिशों को सुन सके पर हाँ नाक ज़रूर है बेहद ऊँची और नुकीली. अगर किसी ने पंख फैला कर उड़ना चाहा तो इसी नुकीली नाक से उसके परों को काट दिया जाता है.

निरुपमा ने अपना जिला छोड़ते वक़्त आँखों में छोटे छोटे ना जाने कितने ख्वाब सजाये होंगे. सोचा होगा 'ज़िन्दगी में कुछ कर दिखाउंगी सबसे जीत जाउंगी' उसकी सहेलियां जिनके साथ बचपन में खेली उनमें से ज़्यादातर शादी के बंधन में बंध चुकी हैं या फिर किसी अच्छे रिश्ते के इंतज़ार में हैं. पर वो अलग थी कुछ करना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी. सोचा था अपनी ज़िन्दगी को अपने हिसाब से जियेगी. माता पिता ने हमेशा ही उसका साथ दिया, पढाई के लिए कभी नहीं रोका. आगे बढ़ने के लिए रुकावट नहीं बने. उसके यहाँ लड़कियों को ज्यादा नहीं पढाया जाता पर पिता ने उसे दिल्ली भेजा, घर छोड़ते वक़्त मन में एक डर था पर आगे की ज़िन्दगी के ख्वाब उसे अपनी तरफ खींच रहे थे. उसके पिता का समाज में काफी रुतबा था देश की सबसे बड़ी university में उनकी बेटी का पढना उनके रुतबे में इजाफा करता. पर रुतबे को बढ़ाने वाला प्लान रुतबे को ले डूबने पर तुला था तो क्या करते. बेटी कि ज़िन्दगी रुतबे से ऊँची तो नहीं ही होती.
निरुपमा की मौत सिर्फ एक इंसान का क़त्ल नहीं है इस क़त्ल ने उस ख्वाब को ज़ख़्मी किया है जो बड़ी मुद्दतों के बाद लड़कियों ने देखना शुरू किया है.

( नवभारत टाईम्स में 19 मई को प्रकाशित )

Thursday 6 May 2010

एक निडर लड़की का समाज के नाम खुला पत्र


समाज,

सुना है आज कल तुम मुझसे बहुत परेशान हो. मेरी दिन दिन बढ़ती हिम्मत ने तुम्हारी नीदें उड़ा दी हैं तो सोचा आज आमने सामने बात हो ही जाए. तुम कहाँ से शुरू हुए इसका कुछ सीधा-सीधा पता तो है नहीं मगर कहते हैं जब औरत और मर्द ने साथ रहना शुरू किया तुम्हारी नीव वहीँ पड़ी. तुम्हे मुझसे बहुत सी शिकायतें हैं और वक़्त बेवक्त तुमने इन शिकायतों के चलते मुझ पर अनगिनत वार भी किये हैं. मैं कई साल से तुमसे बात करने की सोच रही थी पर आज ये हिम्मत मुझमे मेरी बहन खुशबू की जीत ने भरी है. तुमने उसे बहुत सताया, खून के आंसू रुलाया यहाँ उसके घर पर पत्थर भी बरसाए. खुशबू का गुनाह इतना था की उसने 2005 में एक मेंगज़ीन को दिए अपने एक interview में कहा था कि "मैं शादी से पूर्व बनाये यौन संबंधों को बुरा नहीं समझती लेकिन इसके लिए सारी सावधानियां बरतनी चाहियें". उसने ये भी कहा "किसी भी पढ़े लिखे इंसान को ये शोभा नहीं देता क़ि वो विर्जिन पत्नी की ख्वाहिश करे". बस फिर क्या था तुम्हे लगा तुम्हारे अस्तित्व पर वार किया गया तो तुमने खुशबू को अपने मन की बात कहने की सज़ा सुना दी. उसके पुतले जलाए और उसे झुकाने के लिए कानूनी दांव पेंच में फंसाया. खुशबू ने जो कहा उसे स्वीकार किया अपनी बात से पलटी नहीं, तुम्हारी धमकियों से डरी नहीं. तुमने मिल कर मुल्क के हर कोने में षड्यंत्र रचा पर खुशबू कोई सफेदपोश नेता नहीं थी जो हालात ख़राब होने पर अपने विचारों से मुकर जाती.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुशबू को बेगुनाह बताते हुए उस पर दर्ज किये सभी 22 मुक़दमे ख़ारिज किये और तुम्हारे मुंह पर ज़ोरदार तमाचा मारा. मैं कुछ कहना चाहूँ तो तुम कहते हो कि मुझे तसलीमा नसरीन की तरह देश निकाला मिलेगा, मुझे जीने नहीं दिया जाएगा तो बेहतर है चुप रहूँ पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने ये साबित कर दिया कि इस देश में रहते हुए भी अपनी बात कही जा सकती है बस ज़रूरत है मजबूती से टिके रहने की. मेरी आज़ादी पर तुम तरह तरह से पहरे लगाते हो, कहते हो मैंने चौखट लांगी तो भेडिये मुझे नोच लेंगे.
समाज, तुम कहते हो की औरत की असल आज़ादी उसके घर में है, उसके परिवार में है क्यूंकि वहीँ वो सुरक्षित है. मेरी आज़ादी क्या है ये मुझे तय करने दो. मेरी असल आज़ादी ये है की आज मैं अपने मन की बात कह सकती हूँ. मुझे शर्म के खोल में लिपटने की ज़रुरत नहीं है, मुझे इज्ज़त के लबादे उढ़ाने की कोशिश करोगे तो उतार फेंकूँगी. मेरे डरने के दिन गए, मेरे सहम कर छुप जाने के दिन लद गए. आज मैं सामने खड़ी हूँ सामना कर सकते हो तो करो. बल का प्रयोग किये बिना हरा सकते हो तो हराओ. औरत आज जीना चाहती है सिर्फ ज़िन्दगी गुज़ारने के दिन ख़त्म होंगे. आज की औरत अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही है किसी की पत्नी या बेटी कहलाना काफी नहीं है. तुमने मेरी जुबां पर लाख पहरे लगाये पर मैंने ये तोड़ दिए और आज इतना आगे निकल आई हूँ की अब तुम्हारा बस नहीं चलता तो मेरे चरित्र पर उंगली उठाते हो. मेरी तरफ एक ऊँगली उठाते वक़्त तुम भूल जाते हो की बाकी की तीन उंगलियाँ खुद तुम्हारी तरफ उठ रही हैं. खैर अब मैंने इसकी परवाह भी बंद कर दी है, तुम चरित्र के नाम पर सदियों से मुझे कुचल रहे हो. आज जब तुम्हारी चालाकी मेरी समझ में आ गयी तो हड़बड़ा कर उलटी सीधी ताना-कसी कर रहे हो. आज जब मैंने तुम्हे आड़े हाथों लिया तो तिलमिलाहट में मुझे बदचलन कहते हो. कहो जी भर के कहो. पर अब मैं ना तो तुमसे डरूँगी ना ही तुम्हारे घटिया तानो की परवाह करुँगी. आज तुम्हारी
इस तिलमिलाहट में मुझे जीत का एहसास हो रहा है. तुम्हारी ये खिसियाहट मुझे सुनहरा कल दिखा रही है जहाँ मैं अपनी शर्तों पर आज़ाद होंगी.

एक निडर लड़की