Tuesday 27 April 2010

अपवित्र औरत

आज एशियाई देशों में लड़कियां सर्जरी की मदद से कौमार्य हासिल कर रही हैं. यहाँ तक की कई लड़कियां डॉक्टर से विर्जिनिटी सर्टिफिकेट भी मांगती हैं. इस सर्जरी को ‘हायम्नोप्लास्टी’ कहते हैं और दो से तीन सीटिंग में सात दिनों के अंदर ये पूरी हो जाती है. शादी के वक़्त लड़की का गोरा रंग, दुबला शरीर और ऊँचा क़द तो मायने रखता ही है पर सबसे ज्यादा ज़रूरी है लड़की का अनछुई होना.एक धार्मिक ग्रन्थ में साफ़ साफ़ लिखा है की अगर मर्द दुनिया में अच्छे कर्म करते हैं तो उन्हें जन्नत में अनछुई हूरें मिलेंगी. जिसे आपसे पहले किसी ने नहीं छुआ होगा. मतलब ये की लड़की की विर्जिनिटी ही उसे किसी अच्छे मर्द (अच्छे मर्द के माप दंड तय करना अभी बाक़ी है) के लायक बनाती है. वही अच्छा मर्द सड़कों पर ना जाने कितनी ही लड़कियों को नज़रों से बेआबरू करता है. अपनी माँ की उम्र की औरत को अपने बिस्तर में ले जाने के सपने बुनता है. यही शरीफ आदमी अपनी बेटी की उम्र की बच्ची को खिलाने के बहाने अपनी कुंठा दूर करता है. तो इस महान मर्द को अनछुई बीवी चाहिए ताकि उसके करेक्टर की पुष्टि हो सके. शादी की रात ही अपनी पत्नी को ये जान कर तलाक दे देना कोई नई बात नहीं है की दुल्हन विर्जिन नहीं है. ये जानने के बाद की पत्नी का किसी और से शारीरिक सम्बन्ध रहा है उसे प्रताड़ित करना भी कोई नई बात नहीं है. अपने सपनो में अनगिनत लड़कियों को नोचता हुआ, चीरता हुआ ये शरीफ मर्द आँचल से ढंकी छुपी बीवी की ख्वाहिश करता है. शादी से पहले किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाया तो आप बदचलन हैं. आपका करेक्टर आपकी विर्जिनिटी पर आर्धारित है. साउथ इंडियन एक्ट्रेस खुशबू के घर पर इसलिए पत्थर बरसाए गए क्यूंकि उन्होंने औरत के कौमार्य को ग़ैर ज़रूरी बताया।

एशियाई देशों में औरत की विर्जिनिटी को उसकी इज्ज़त कहा जाता है शायद इसीलिए अगर किसी लड़की का कोई वेह्शी बलात्कार करता है तो वो लड़की आत्महत्या कर लेती है. बलात्कार के बाद आत्महत्या करना कोई बड़ी बात नहीं है. और अगर कोई लड़की ऐसा ना भी चाहे तो समाज उस पर ऐसी ऐसी ताना कसी करता है जैसे उसने खुद को थाली में परोस कर उस भेडिये के आगे रखा हो.
अगर आप बेख़ौफ़ हैं और अपने शारीरिक संबधों को सामाजिक स्तर पर स्वीकार करती हैं तो आप वैश्या हैं. वहीँ कोई मर्द अपने तजुर्बों को शान के साथ पेश कर के अपनी मर्दानगी साबित करता है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक फैसला सुनाते वक़्त बयान दिया था की अगर कोई पीड़ित महिला अपने रेपिस्ट से शादी करना चाहती है तो अपराधी को उससे शादी करनी होगी. कुल मिला कर मतलब यही की तुम्हारी इज्ज़त लुट चुकी अब तुम्हे कौन अपनाएगा, बेहतर है अब उसी जंगली जानवर को अपना लो जिसने तुम्हे शरीरिक और मानसिक यातना दी

औरत की पवित्रता तो हर बात पर खंडित हो जाती है. अगर आप की हंसी की गूँज किसी गैर मर्द को सुनाई दे गयी या आप पर किसी मर्द की नज़र पड़ गयी तो आप अपवित्र हो गयी. अब अगर सजदे में झुकना है तो फिर से खुद को पानी की छींटों से पवित्र कीजिये. किसी की गन्दी नज़रों ने आपको छुआ आप नापाक हो गयी लेकिन वो अब भी धड़ल्ले से सीना चौड़ा करके सजदे में झुकेगा और मज़हब की दुहाई देगा. हर महीने औरत का रक्त स्वच्छ होता है, शरीर की सारी गन्दगी बह जाती है. उस Hygienic Process को अपवित्र बताते हुए हर कथित पवित्र काम से दूर रखा जाता है. इस दुनिया में एक नई ज़िन्दगी लाने के बाद, इस धरती को एक नई सांस देने के बाद वो चालीस दिनों तक नापाक रहती है. जबकि उस दौर में औरत सबसे ज्यादा पाक होती है क्यूंकि वो अपनी जान से एक नई जान वुजूद में लाती है. अपने जीवन से एक नया जीवन पैदा करने के बाद उसे सबसे अलग थलग कर बंद कमरे में डाल दिया जाता है. मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है. हर महीने दर्द की आग में जल कर वो सोना बनती है. इस सोने को ज़रूरत पड़ने पर धारण तो किया जाता है लेकिन फिर नापाक करार देकर अछूत भी बना दिया जाता है.
नारी नरक का द्वार है,ये हमेशा गलत रास्ते पर चलने को उकसाती है, नारी एक खेती के समान है जिसे अपनी मर्ज़ी से काटा और फिर बोया जा सकता है, नारी को मर्द की पसली से बनाया गया है. धार्मिक ग्रंथों ने औरत को जिस कुँए में धकेला है वहां से वापस आने के लिए आज की पीढ़ी सीढियां ढूंढ रही है, ऐसे में इस तरह की कौमार्य वापस लाने वाली सर्जरी विज्ञान को तो आगे पहुंचा रही है पर औरत के आत्मसम्मान को कहीं नीचे ढकेल रही है.

Monday 5 April 2010

कॉमनवेल्थ कॉमन लोगों के लिए नहीं

हम खेलेंगे हम कैसा भी खेलें पर खेलने का जज्बा होना चाहिए. अरे ना भी खेल पाए तो क्या हुआ बड़े बड़े स्टेडीयम ऐसे ही थोड़े ना बन रहे हैं कुछ तो होगा ही। खेल होंगे खेल का जज्बा हर दर्द से ऊँचा है, हर गरीबी हर मुफ्लसी से ऊँचा है खेल का जज्बा. यक़ीनन खेल होने चाहिए चाहे मजदूरों के बच्चे सड़क किनारे खेलते रहे, मिट्टी में लोटते रहे. बेशक खेल होने चाहिए चाहे किसान आत्महत्या करते रहे. अरे क्यूँ नहीं होंगे खेल ? भले ही बाल मजदूर भट्टियों में झुलसते रहे. आलिशान होटलस तो बनने ही चाहिए, चाहे इंदिरा आवास योजना के नाम पर गरीब रिश्वत दे कर भी अपना हक ना पा सके. फ्लाईओवेर्स फटाफट बनने चाहिए भले ही गाँव देहात में नदी पार करने को पुल ना हों. असल खेल का जज्बा तो इसी को कहते हैं ना की कुछ भी हो हम खेलें और खेलने दें.

वो पागल हैं जो बिना मतलब दंगों पर चिल्लाते हैं, देश में लोग एक दुसरे के घर जला रहे हैं तो क्या हुआ, दुकानें लुट रही हैं तो क्या हुआ. हम ग्लोबल रिश्ते सुधार रहे हैं. बेधड़क गैर मुल्की लोगों के आराम के लिए हमारी राजधानी प्रगति कर रही है. हम तैयार हो रहे हैं दूसरों के लिए. अरे भई अपने अपनों के लिए कोई इतनी मेहनत थोड़े ही करता है. वो आयेंगे रहेंगे सब कुछ कम्फर्टेबल होना चाहिए ना, हमे तो आदत है अनकम्फर्टेबिलिटी में कम्फर्ट ढूंढ लेने की. विदेशी खिलाडी आयेंगे तो घांस अच्छी होनी चाहिए, ड्रेससिंग रूम बढ़िया होने चाहिए, अपने खिलाडियों को तो पथरीले मैदानों में हाथ पैर छिलवाने की आदत है.

ब्लू लाइन बसें हटवाएंगे, शानदार डीटीसी सड़कों पर बिछवाएंगे, मेट्रो पूरे शहर में नाचवाएंगे. तो क्या इतना झमेला अपने लिए है, बिलकुल नहीं. विदेशी मेहमानों की एवज़ में हम भी लाभ उठा लेंगे. ब्लू-लाइंस तो जब रेड-लाइंस हुआ करती थीं तब से ही दहशत मचाये हुए हैं पर अब नाक का सवाल है, किसी भी मिडिल क्लास परिवार की तरह यहाँ भी जान से ज्यादा नाक प्यारी है. अब तक ना जाने कितने दब के मरे पर दुःख नहीं लेकिन इज्ज़त का मामला है अब तो ब्लू को रेड सिग्नल दिखाना ही पड़ेगा.

सड़कें चमकनी चाहियें, शहर जगमगाना चाहिए, लीपा-पोती होनी चाहिए. मेहमान भगवान होता है उसकी खातिर में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. अपना क्या है हम तो टूटी-फूटी सड़को के आदी हैं. अक्सर सड़कों के गड्ढों के सबब स्कूटर और बाइक्स उलटती हैं तो क्या हुआ. मेहमानों की गाड़ियाँ सड़कों पर तैरनी चाहिए. बाद में जो मेकअप टूट टूट कर बाहर आएगा वो तो हम देख लेंगे. अपना क्या है हम तो हर साल ही सड़कों की त्वचा बदलते देखते हैं.

बस जज़्बा होना चाहिए और वो तो हम में कूट कूट का भरा है, खेल करवा कर ही रहेंगे. लगता है देश को थोड़ा कनफयुजन है, अरे !! कॉमनवेल्थ खेल कॉमन लोगों के लिए नहीं होते पब्लिक तो बिना मतलब ही एकसाइटिड होती है.