आज एशियाई देशों में लड़कियां सर्जरी की मदद से कौमार्य हासिल कर रही हैं. यहाँ तक की कई लड़कियां डॉक्टर से विर्जिनिटी सर्टिफिकेट भी मांगती हैं. इस सर्जरी को ‘हायम्नोप्लास्टी’ कहते हैं और दो से तीन सीटिंग में सात दिनों के अंदर ये पूरी हो जाती है. शादी के वक़्त लड़की का गोरा रंग, दुबला शरीर और ऊँचा क़द तो मायने रखता ही है पर सबसे ज्यादा ज़रूरी है लड़की का अनछुई होना.एक धार्मिक ग्रन्थ में साफ़ साफ़ लिखा है की अगर मर्द दुनिया में अच्छे कर्म करते हैं तो उन्हें जन्नत में अनछुई हूरें मिलेंगी. जिसे आपसे पहले किसी ने नहीं छुआ होगा. मतलब ये की लड़की की विर्जिनिटी ही उसे किसी अच्छे मर्द (अच्छे मर्द के माप दंड तय करना अभी बाक़ी है) के लायक बनाती है. वही अच्छा मर्द सड़कों पर ना जाने कितनी ही लड़कियों को नज़रों से बेआबरू करता है. अपनी माँ की उम्र की औरत को अपने बिस्तर में ले जाने के सपने बुनता है. यही शरीफ आदमी अपनी बेटी की उम्र की बच्ची को खिलाने के बहाने अपनी कुंठा दूर करता है. तो इस महान मर्द को अनछुई बीवी चाहिए ताकि उसके करेक्टर की पुष्टि हो सके. शादी की रात ही अपनी पत्नी को ये जान कर तलाक दे देना कोई नई बात नहीं है की दुल्हन विर्जिन नहीं है. ये जानने के बाद की पत्नी का किसी और से शारीरिक सम्बन्ध रहा है उसे प्रताड़ित करना भी कोई नई बात नहीं है. अपने सपनो में अनगिनत लड़कियों को नोचता हुआ, चीरता हुआ ये शरीफ मर्द आँचल से ढंकी छुपी बीवी की ख्वाहिश करता है. शादी से पहले किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाया तो आप बदचलन हैं. आपका करेक्टर आपकी विर्जिनिटी पर आर्धारित है. साउथ इंडियन एक्ट्रेस खुशबू के घर पर इसलिए पत्थर बरसाए गए क्यूंकि उन्होंने औरत के कौमार्य को ग़ैर ज़रूरी बताया।
एशियाई देशों में औरत की विर्जिनिटी को उसकी इज्ज़त कहा जाता है शायद इसीलिए अगर किसी लड़की का कोई वेह्शी बलात्कार करता है तो वो लड़की आत्महत्या कर लेती है. बलात्कार के बाद आत्महत्या करना कोई बड़ी बात नहीं है. और अगर कोई लड़की ऐसा ना भी चाहे तो समाज उस पर ऐसी ऐसी ताना कसी करता है जैसे उसने खुद को थाली में परोस कर उस भेडिये के आगे रखा हो. अगर आप बेख़ौफ़ हैं और अपने शारीरिक संबधों को सामाजिक स्तर पर स्वीकार करती हैं तो आप वैश्या हैं. वहीँ कोई मर्द अपने तजुर्बों को शान के साथ पेश कर के अपनी मर्दानगी साबित करता है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक फैसला सुनाते वक़्त बयान दिया था की अगर कोई पीड़ित महिला अपने रेपिस्ट से शादी करना चाहती है तो अपराधी को उससे शादी करनी होगी. कुल मिला कर मतलब यही की तुम्हारी इज्ज़त लुट चुकी अब तुम्हे कौन अपनाएगा, बेहतर है अब उसी जंगली जानवर को अपना लो जिसने तुम्हे शरीरिक और मानसिक यातना दी।
औरत की पवित्रता तो हर बात पर खंडित हो जाती है. अगर आप की हंसी की गूँज किसी गैर मर्द को सुनाई दे गयी या आप पर किसी मर्द की नज़र पड़ गयी तो आप अपवित्र हो गयी. अब अगर सजदे में झुकना है तो फिर से खुद को पानी की छींटों से पवित्र कीजिये. किसी की गन्दी नज़रों ने आपको छुआ आप नापाक हो गयी लेकिन वो अब भी धड़ल्ले से सीना चौड़ा करके सजदे में झुकेगा और मज़हब की दुहाई देगा. हर महीने औरत का रक्त स्वच्छ होता है, शरीर की सारी गन्दगी बह जाती है. उस Hygienic Process को अपवित्र बताते हुए हर कथित पवित्र काम से दूर रखा जाता है. इस दुनिया में एक नई ज़िन्दगी लाने के बाद, इस धरती को एक नई सांस देने के बाद वो चालीस दिनों तक नापाक रहती है. जबकि उस दौर में औरत सबसे ज्यादा पाक होती है क्यूंकि वो अपनी जान से एक नई जान वुजूद में लाती है. अपने जीवन से एक नया जीवन पैदा करने के बाद उसे सबसे अलग थलग कर बंद कमरे में डाल दिया जाता है. मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है. हर महीने दर्द की आग में जल कर वो सोना बनती है. इस सोने को ज़रूरत पड़ने पर धारण तो किया जाता है लेकिन फिर नापाक करार देकर अछूत भी बना दिया जाता है. नारी नरक का द्वार है,ये हमेशा गलत रास्ते पर चलने को उकसाती है, नारी एक खेती के समान है जिसे अपनी मर्ज़ी से काटा और फिर बोया जा सकता है, नारी को मर्द की पसली से बनाया गया है. धार्मिक ग्रंथों ने औरत को जिस कुँए में धकेला है वहां से वापस आने के लिए आज की पीढ़ी सीढियां ढूंढ रही है, ऐसे में इस तरह की कौमार्य वापस लाने वाली सर्जरी विज्ञान को तो आगे पहुंचा रही है पर औरत के आत्मसम्मान को कहीं नीचे ढकेल रही है.
एशियाई देशों में औरत की विर्जिनिटी को उसकी इज्ज़त कहा जाता है शायद इसीलिए अगर किसी लड़की का कोई वेह्शी बलात्कार करता है तो वो लड़की आत्महत्या कर लेती है. बलात्कार के बाद आत्महत्या करना कोई बड़ी बात नहीं है. और अगर कोई लड़की ऐसा ना भी चाहे तो समाज उस पर ऐसी ऐसी ताना कसी करता है जैसे उसने खुद को थाली में परोस कर उस भेडिये के आगे रखा हो. अगर आप बेख़ौफ़ हैं और अपने शारीरिक संबधों को सामाजिक स्तर पर स्वीकार करती हैं तो आप वैश्या हैं. वहीँ कोई मर्द अपने तजुर्बों को शान के साथ पेश कर के अपनी मर्दानगी साबित करता है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक फैसला सुनाते वक़्त बयान दिया था की अगर कोई पीड़ित महिला अपने रेपिस्ट से शादी करना चाहती है तो अपराधी को उससे शादी करनी होगी. कुल मिला कर मतलब यही की तुम्हारी इज्ज़त लुट चुकी अब तुम्हे कौन अपनाएगा, बेहतर है अब उसी जंगली जानवर को अपना लो जिसने तुम्हे शरीरिक और मानसिक यातना दी।
औरत की पवित्रता तो हर बात पर खंडित हो जाती है. अगर आप की हंसी की गूँज किसी गैर मर्द को सुनाई दे गयी या आप पर किसी मर्द की नज़र पड़ गयी तो आप अपवित्र हो गयी. अब अगर सजदे में झुकना है तो फिर से खुद को पानी की छींटों से पवित्र कीजिये. किसी की गन्दी नज़रों ने आपको छुआ आप नापाक हो गयी लेकिन वो अब भी धड़ल्ले से सीना चौड़ा करके सजदे में झुकेगा और मज़हब की दुहाई देगा. हर महीने औरत का रक्त स्वच्छ होता है, शरीर की सारी गन्दगी बह जाती है. उस Hygienic Process को अपवित्र बताते हुए हर कथित पवित्र काम से दूर रखा जाता है. इस दुनिया में एक नई ज़िन्दगी लाने के बाद, इस धरती को एक नई सांस देने के बाद वो चालीस दिनों तक नापाक रहती है. जबकि उस दौर में औरत सबसे ज्यादा पाक होती है क्यूंकि वो अपनी जान से एक नई जान वुजूद में लाती है. अपने जीवन से एक नया जीवन पैदा करने के बाद उसे सबसे अलग थलग कर बंद कमरे में डाल दिया जाता है. मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है. हर महीने दर्द की आग में जल कर वो सोना बनती है. इस सोने को ज़रूरत पड़ने पर धारण तो किया जाता है लेकिन फिर नापाक करार देकर अछूत भी बना दिया जाता है. नारी नरक का द्वार है,ये हमेशा गलत रास्ते पर चलने को उकसाती है, नारी एक खेती के समान है जिसे अपनी मर्ज़ी से काटा और फिर बोया जा सकता है, नारी को मर्द की पसली से बनाया गया है. धार्मिक ग्रंथों ने औरत को जिस कुँए में धकेला है वहां से वापस आने के लिए आज की पीढ़ी सीढियां ढूंढ रही है, ऐसे में इस तरह की कौमार्य वापस लाने वाली सर्जरी विज्ञान को तो आगे पहुंचा रही है पर औरत के आत्मसम्मान को कहीं नीचे ढकेल रही है.
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ReplyDeleteकल BBC पर इस बारे में लेख पढ़ा था..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख... आपकी कलम बहुत तीखी है... आप चोखेर बाली पर लिखें अच्छा रहेगा
ReplyDeleteउस दौर में औरत सबसे ज्यादा पाक होती है क्यूंकि वो अपनी जान से एक नई जान वुजूद में लाती है.
ReplyDeleteएक सशक्त और आवश्यक आलेख
धीरे-धीरे ही सही पुरूष मानसिकता में बदलाव ऐसे ही लेखों के द्वारा आयेगा जी
प्रणाम स्वीकार करें
apna astitva banaye rakhne ke liye aurat ki kabhi na khtm hone wali jang jari hai..bahut hi acchi tarah se is lekh ko gadha hai aapne!
ReplyDeleteफ़ौज़िया, फौज़िया,
ReplyDeleteआपके इस लेख के बारे में कहना चाहूंगा -बहादूर लेख, मजबूत और प्रहार करते शब्द लेख के अंत तक अनगिनत प्रहार करते हैं.
आपके इस लेख के लिए इससे बेहतर शब्द नहीं खोज पा रहा हूं.
फ़ौज़िया,
ReplyDeleteसुन्दर आलेख तो नहीं कहुंगा.. क्योंकि ये कुरूप है... मगर सच है.
असल में औरतों की ताक़त बर्द्दाश्त कर पाना मर्दों के वश की है ही नहीं. हम मर्द ये तो जानते हैं कि हमारी बहन को कोई घूरे ये सही नहीं है, पर हमे लाइसेंस मिला है कि हर नुक्कड़ हर चौराहे पर किसी लड़की को देख कर हम आहें भरें... तब तक घूरे जब तक वो नज़रों से दूर ना हो जाये.
जिस मासिक धर्म की बात आपने की है उसी की दुहाई देकर हिन्दु धर्म में भी औरतों को अपवित्र बताया जाता है. ये दुर्भाग्य ही है कि जिन औरतों के खिलाफ़ धर्म का सारा ताना-बाना गढ़ा गया है, वही कम से कम हिन्दु धर्म में तो सबसे बड़ी पुजारिन बनी घूमती हैं.
मर्द को भेडिया संबोधित कर आपने कुछ ग़लत नहीं कहा.. पर औरते भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं.
ek sashakt aalekh..........aurat kabhi apavitra nahi hoti ye sirf purush mansikta ki shikar hoti hai ye soch hi apavitra hai.
ReplyDeleteऔर जो वर्जिनीटि की बात है उस पर भी कुछ कहो
DeleteSamay badal raha hai...awareness is on rise !
ReplyDeleteEducation is the key !
सही बात कही है आपने... धीरे-धीरे ही सही बदलाव अवश्य आयेगा.. बस मुझे डर यह है कि कहीं कट्टरपंथी आपको भी खारिज न कर दें..
ReplyDeleteआपने सही सवाल उठाए । 2008 में "चोखेरबाली" पर हमने भी समाजशास्त्रीय नज़रिए से हाइमेनोप्लास्टी पर विचार व्यक्त किए थे-
ReplyDeletehttp://blog.chokherbali.in/2008/06/blog-post_16.html
वर्जिनिटी ऑन सेल या रीवर्जिनेशन या कहें कौमार्य बिकता है ,खरीदोगे ?
आप बहुत कुछ ठीक कहती हैं यह धर्म ही सिखा रहे हैं--
ReplyDeleteबाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत्माणिग्राहास्य यौवने,
पुत्राणं भर्तरि प्रेते न भजेत्स्त्री स्वतंत्रताम् --- मनु स्मृति 5 /148
अर्थात स्त्री बचपन में पिता के, जवानी में पति के और पति के मर जाने पर बुढापे में पुत्र के अधीन होकर रहे, वह कभी स्वतंत्र होकर न रहे
उनकी (स्त्रियों) सृष्टि करते समय मनु ने उनकें अपनी शैया, अपनी पीठ पर अपने आभूषणों, अपवित्र इच्छाएं, क्रोध, बेईमानी, दुर्भावना, कदाचार भर दिए (IX/17)
सृष्टिकर्ता ने स्त्री की सृष्टि करते समय उसमें जो विशेषता भर दी उसे जानते हुऐ पुरूष को उस पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयत्न कना चाहिए (IX/16)मनु स्मृति
स्त्रियां सुंदरतता पर ध्यान नहीं देती, आयु पर ध्यान नहीं देतीं, पुरूष होना पर्याप्त है, वे स्वयं को सुदर या कुरूप को अर्पित कर देती हैं (IX/14)मनु स्मृति
स्त्री पति के साथ जुडी होती है और उसके पुत्रों को जन्म देती है-- इसलिए पति को अपनी पत्नी पर सावधानी से नजर रखनी चाहए ताकि संतान शुद्ध हो (IX/9)मनु स्मृति
Good reference cited
Deleteसबल प्रहार, सच्चाई को उजागर करता आलेख
ReplyDeleteइन बातों को कहने वाले धार्मिक ग्रंथों को आग के हवाले क्यों नहीं कर देती हैं, औरतें?
ReplyDeleteदिनेशराय जी द्विवेदी साब वर्जिनिटी के बारे मे जो बात बताई गई है वो सही है या गलत यदि आपसे ही पूछ लिया जाए तो क्या जवाब दोगो शादी से पहले किसी लडकी द्वारा वर्जिनिटी भंग होना सही है या गलत
Deleteइस बारे में चोखेर बाली पर पढ़ चुका हूँ.. वाकई बहुत कम्भिर मुद्दा है..
ReplyDeleteअच्छा लिखा है। सही मुद्दा उठाया है।
ReplyDeleteदेश और सामाजिक स्थिति की जानकारियों का सजीव चित्रण करता हुआ एक विचारणीय रचना के शानदार प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /औरत तो इन्सान का वह रूप है,जिसकी वंदना भगवान भी करते है /यह अलग बात है,की औरत हो या मर्द मजबूत चरित्र तो इन्सान की पहली पहचान है / इसके बिना इन्सान का वजूद किसी काम का नहीं है / ऐसे ही विचारों के सार्थक प्रयोग ब्लॉग के जरिये करने से ही ब्लॉग को सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में सहायता मिलेगा / हम आपको अपने ब्लॉग पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में ,विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने का भी प्राबधान कर रखा है / पिछले हफ्ते उम्दा विचार व्यक्त करने के लिए अजित गुप्ता जी सम्मानित की गयी हैं /
ReplyDeleteहम भी यही कह रहे है कि चरित्र मजबूत होना चाहिए चाहे वो स्त्री हो या पुरूष
DeleteBahut hi accha mudda uthaya hai apne. Jaise - Jaise logo ka gyan badhta jayega thik usi tarah se log apne samaj main parivartan late rahenge.
ReplyDeleteMasik chakra ke dauran aurat kabhi bhi apvitra nahi hoti hai.
Kisi bhi samaj main agar koi dharmik parampara hai to uska kanhi na kanhi sarthak matlab bhi hota hai, jarurat hai to dhyan dene ki.
Hindu Dharm main Peepal, Neem, Tulsi jaise paudho ko pujyaniya paudha bataya gaya hai, aur lagbhag sabhi Hindu in pedo ki puja bhi karte hain , lekin uska adhar kuch aur hi hai. Ye paudhe 24 Hrs Oxigen dete hai. shyad isiliye in paudho ki ijjat karna ek dharmik karmkand ban gaya hai.
Shayad aise hi koi wajah ho
आपका लेख सच में अपने गिरेबान में झाँकने के लिए मजबूर करता है!बड़ी इमानदारी से आपने अपनी भावनाओं का खुलासा किया है!
ReplyDelete"मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है. हर महीने दर्द की आग में जल कर वो सोना बनती है. इस सोने को ज़रूरत पड़ने पर धारण तो किया जाता है लेकिन फिर नापाक करार देकर अछूत भी बना दिया जाता है."
सच में आपने किसी को भी नहीं बख्शा!सभी को ही आइना दिखता आपका यह लेख!
कुंवर जी,
jo maene chokher baali par tab kehaa thaa ab bhi wahii kahungi
ReplyDeletejis ko jo pasand haen usko us tarah rehnae kaa adhikaar haen
naari ko samjhane kaa prayaas ki uskae liyae kyaa sahii haen aur kyaa galat apane aap mae galat haen
naari ko sakshm karey ki wo samjh sakey usko kyaa karna haen aur jab wo karey to us par prashn chinh naa lagaye
क्या नारी सम्बन्धी आपने मेरा कोई लेख कभी पढ़ा है ?
ReplyDeleteए कमबकख्त डाक्टर तेरे ही ब्लाग पर शायद कमेंटस में हमने पढा है
ReplyDeleteबाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत्माणिग्राहास्य यौवने,
पुत्राणं भर्तरि प्रेते न भजेत्स्त्री स्वतंत्रताम् --- मनु स्मृति 5 /148
अर्थात स्त्री बचपन में पिता के, जवानी में पति के और पति के मर जाने पर बुढापे में पुत्र के अधीन होकर रहे, वह कभी स्वतंत्र होकर न रहे
उनकी (स्तियों) सृष्टि करते समय मनु ने उनकें अपनी शैया, अपनी पीठ पर अपने आभूषणों, अपवित्र इच्छाएं, क्रोध, बेईमानी, दुर्भावना, कदाचार भर दिए (IX/17)
सृष्टिकर्ता ने स्त्री की सृष्टि करते समय उसमें जो विशेषता भर दी उसे जानते हुऐ पुरूष को उस पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयत्न कना चाहिए (IX/16)
स्त्रियां सुंदरतता पर ध्यान नहीं देती, आयु पर ध्यान नहीं देतीं, पुरूष होना पर्याप्त है, वे स्वयं को सुदर या कुरूप को अर्पित कर देती हैं (IX/14)
स्त्री पति के साथ जुडी होती है और उसके पुत्रों को जन्म देती है-- इसलिए पति को अपनी पत्नी पर सावधानी से नजर रखनी चाहए ताकि संतान शुद्ध हो (IX/9)
नयी पढ़ी के युवाओं की मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है. मुझे नहीं लगता कि एक आधुनिक सुशिक्षित युवा कौमार्य को शादी की एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में देखेगा.
ReplyDeleteहमें आशा रखनी चाहिए. यह मानसिकता जरूर बदलेगी.
बात कौमार्य की नहीं है सतीशचंद्र सत्यार्थी बात यह है कि लडकी चरित्रवान होनी चाहिए यदि चरित्रवान होगी तो उनका कौमार्य भंग नही होगा बुधिमान होगी तो स्वत ही चरित्रवान होगी फिर कौमार्य भंग की बात तो बहुत दूर की है इसलिए चरित्रवान पर कायम रहने का पाठ पढो और पढओ
Deleteफोजिया जी का लेख पढ़ा लड़कियों की ओर ऐसे लेख आज कल आम बात हे यह बेचारी पढ़ती व्ध्ती तो हे नहीं बस सुनी सुनाई बातो पर टिपण्णी कर के खुद को बुद्धि जीवी मानलेती हें लेख मैं धर्म गरंथ के नाम पर शायद कुरान को निशाना बनाया लगता हे ,जब कभी एसा लेख आता हे तो इस्लाम विरोधयों की तो जेसे चांदी कट जाती हे ,हालांकि यह एक दम सतही ओर सरसरी अध्यन का पता दे रहा हे,जेसे महोदया लिखती हें ,कि रक्त स्वछन्द या बच्चा जानने के बाद उसे नापाक कह कर हर कथित पवित्र काम से दूर रखा जा ता हे ,,,, अरे भाई नमाज़ ओर रोज़े की छूट देने का मतलब अपवित्र होना आप ने केसे मान लिया ? क्या आप यह चाहते हें कि इन दिनों मे भी जिन मैं बेचारी ने ( आप के बकोल एक न्या जीवन पैदा किया हे )उस पर नमाज़ या रोज़े का बोझ लाद दिया जाए , यह तो वः बात हुयी की घोड़े को दिया नून उस ने कहा ,,मेरी आँख फोड़ दी .
ReplyDeleteठीक कहते हैं कासमी साहब, जितने दिन खून जारी रहेगा उतने दिन नमाज रोजा सबसे छूट और पति को नहीं उन दिनों केवल बच्चे का प्यार देना है
ReplyDeleteवाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ वाउ
ReplyDeleteमन कर रहा है कि....करके होठों को गोल, सीटी बजा के बोलूं ऑल इज होइंग वैल..हा हा हा हा .....
मजा आ गया....क्या बात है....क्या मार लगाई है फौजिया....जबरदस्त..जब औऱत बोलती है तो हर तथाकथित पोगा पंडित हाय हाय मचाता है.....कई पोगा पंडित..या मौलवी कहो.. हाय हाय मचा चुके हैं....भारतीय सभ्यता के पतन का कारण बनी....जब आदमी ने शुचिता के सारे नियम औरत पर ही लाद दिए और उसके त्याग को उसकी नियती बना दिया....औऱ खुद छुटे सांड की तरह विचरने लगा....जो नियम औऱत के लिए थे वही पुरुष के लिए होने चाहिए..कुछ कुछ परिस्थितियों के कारण जो बदलाव करने पड़े फिर उस में संशोधन करना लोग भूल गए....रुका हुए पानी की तरह हमारा हाल हो गया..सब सड़ गया....... Hygienic Process के वक्त औऱत को आराम की सलाह दी गई थी..पर उसे धर्म से जोड़ दिया और अर्निवाय बना दिया गया....अशक्त औऱ रोगी पुरुष को भी किसी तरह के धार्मिक कार्य न करने की छुय होती है..ऐसे में अगर औऱत कोई को किसी काम से छुट दी गई थी तो वो गलत नहीं था, पर उसे उस पर थोप दिया गया.....यही तो हमारी प्रारब्लम है.....हर नियम को मान तो लिया पर भूल गए कि उसके पीछे कारण क्या था..नियम क्या था..
मन कर रहा है गाना गाउं....होठों को करके गोल बोल....ऑल इज हो जाएगा वैल....
फोजिया ने धर्म को निशाना बनमा या तो धर्म विरोधयों की बगलें खिल गयीं ओर पागलों ने हा, हा, कर ठाठे लगाए, किसी ने स्थिति का विश्लेषण नहीं किया ,परन्तु कान ओर बुद्धि खोल कर रखये मुझे कुछ कहना हे ,
ReplyDeleteलेखिका ने धर्म के साथ समाज को भी ताना देते हुए लिखा हे कि अगर कोई मर्द कही मुंह कला कर आए तो उस का कुछ नहीं बिगड़ता जब कि अगर कसी महिला का बलातकार हो जाये तो वह समाज को स्वीकार्य नहीं होती , दूसरी ओर एक विशेष धर्म गरंथ पर उन्हें इस बात को लेकर गुस्सा हे कि उस ने उन्हें खेती कहा हे ,आज इन दोनों बातों पर ही मुझे कुछ कहना हे ,
बिंदु (१) कुरान पर कटाक्ष कर ने से पहले उसे पढ़ लेती तो अच्छा होता क्यों कि उसमें आप कि समस्सया का हल मोजूद हे , सूरः बक़र कि आयत नम्बर २२८ ,,, सामान्य रूप से पुरुषों ओर महिलाओं के एक दूसरे के प्रति सामान अधिकार हे ,परन्तु (एक विशेष उद्देश्य से )पुरुष को एक दर्जा बढ़ा कर रखा गया हे ,,,,,(सूरः बक़र) जब प्रक्रति ने दोनों को भिन्न भिन्न उद्देश्य से भिन्न बनाया हे ओर पुरुष को एक दर्जा बढ़ा कर रखा गया हे ,जेसे ऊपर कि स्थिति मे कि लड़का कहीं मुहं मार आए तो कोई बात नहीं,ओर लड़की का बलात्कार हो तो उसकी इज्ज़त गयी( ध्यान रहे कि धर्म कि निगाह मे दोनों बराबर के गुनाहगार हें )परन्तु एसा क्यों ?वह इस लिए कि लड़की कुछ करवा कर आती हे तो पेट में एक पिट्ठू लेकर आती हे ,लड़का कुछ कर के आता हे तो साथ में कोई निशानी नहीं लाता ,(करने ओर करवाने के शब्दों पर धियान दीजिये)आपने जिसे अन्याय कहा वह अन्याय नहीं प्राक्रतिक स्थति हे , अब आप के पास केवल एक ही विकल्प हे ,कि आप मोजुदा सूरत ए हाल को स्वीकार करलें ,अथवा समाज ओर धर्म को ताने देदे कर दुनया ओर आखरत दोनों ख़राब करलें, शायद करने ओर करवाने के शब्द आप को बुरे लगे हों , क्रप्या बुरा न मान्येगा केवल यह बताना हे कि कुदरत ने दोनों को भिन्न बनाया हे तो दोनों के नियम भी भिन्न हें ,ऐसे ही जेसे दोनों के लिए शब्दों का प्रयोग भी भिन्न हे,बात कुछ लम्बी हो गयी ,इस लिए मुख्तसर करते हुए दूसरी बात पर आता हूँ ,आप को शिकायत हे कि कुरान में ओरत को खेती क्यों कहा गया हे, ,,हाँ बात जरा कडवी सी हे मगर सच तो कडवा ही होता हे ,पेड़ फल देता हे इसलिए वह खेती हे ,खेत अनाज देता हे इस लिए वह खेती हे ,ओरत बच्चा देती हे इस लिए वह खेती हे , ओरत खेती नहीं तो किया मर्द खेती हे? सच्चाई को आप कब स्वीकार करना सीखोगे ?
प्रतिभा पटेल,इंदिरा गाँधी, सोनिया गाँधी,मीरा कुमार के ज़माने में तो होश में आ जाओ.
ReplyDeleteदीमक लगी रुढियों का बखान न करो. बल्कि क्रांति कर उसे जडमूल से मिटाओ
औरत/आदमी जीवन-गाड़ी के दो सामान पहिये हैं. छोटा बड़ा बनाने से गाड़ी गडबडा जाएगी.
अपने घर गृहस्थी की गाड़ी ठीक चलाना चाहते हो तो सही से रहो.
और वर्जिनिटी और चरित्र की बात आए तो पुरूषो को चुप रहना चाहिए क्यो शारदा मोंगाजी स्त्रीयां अपने मे स्वतन्त्र होती है उसे कुछ मत कहना चाहिए यही बात सही है क्यो
Deleteहा हा हा......"चोर कि दाढ़ी में तिनका"!
ReplyDeleteमै ये नहीं कहना चाह रहा कि सभी दाढ़ी वाले ही चोर है,पर चोर खुद ही दिखा जाते है अपनी औकात या जात,कुछ भी कहो,है तो एक ही बात!
मुझे तो लगा था ये सभी के लिए है पर ........!खैर छोडो!
कुंवर जी,
पर क्या ये जरुरी है कि औरते - लड़कियां अपने आप को आधुनिक दिखाने के लिये अपना कौमार्य खोयें हा खोंयें, क्या अपने आप को शादि तक शारीरिक सम्बंधों से बचाना औरतों के लिये इतना ही कठिन है?
ReplyDeleteमेरा मानना है कि शादी से पहले शारीरिक संबंध किसी भी समाज और समय में अच्छे नहीं है। आप ये तो कहिये कि पुरुषों को भी इस तरह के काम शादी से पहले नहीं करने चाहिये बजाय इसके कि महिलाओं से कहा जाये कि वो अपनी वर्जिनिटी को आधुनिक बनने के लिये खोयें।
वाह क्या बात है आपने तो कमाल कर दिया बहुत अच्छा लिखा
Delete"तीखे तेवरों से युक्त पोस्ट । ये एक गम्भीर समस्या है यकीनन। पर हम जितना इस समस्या के बारे में विचार करेंगे उतना ही ये समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी क्यों कि हम उसी समस्या को आकर्षित कर रहे है
ReplyDelete। ज़रूरत समाधान की है......."
Keep it up Fouzia!!!!!!
ReplyDeletemere kuch line apke is post ke liye....
खुद बनाये राहो मैं खुद को चलाता रहा...
अपने वजूद को अपने हाथो से मिटाता रहा...
दर लगता था खुद से इसीलिए अपने जज्बातों को जलाता रहा...
यूँ तो बना चूका हूँ एक दिवार की सच दस्तक न दे जाये...
पर क्या करता जब सच आइना बन कर सामने आता रहा, डराता रहा...
फौज़िया जी को मेंरा सलाम! आपने जिस तरह मर्दो की बुराईयों के खिलाफ आवाज़ उठाई, वह वाकई में काबिले-तारीफ है। और मर्दो में अक्सर होने वाली बुराईयों का विरोध अवश्य ही होना चाहिए। अब तक औरतें निरक्षरता की वजह से बेवकूफ बनती आई हैं और अक्सर मर्द अपने अहम के कारण उनको पैर की जूती समझते आए है। यह एक अमानवीय व्यवहार है और इसको बर्दाश्त करने वाले हम जैसे लोग भी इसके लिए उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितने इस तरह की सोच रखने वाले अन्य मर्द। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की कोई भी धर्म उनको ऐसा करने की इजाज़त देता है। दरअसल सारा मसला शुरू होता है अपने-अपने हिसाब से धर्मग्रन्थों की गई व्याख्याओं से। दुनिया को बेवकूफ बनाने के इरादे से कुछ धर्मगुरू चाहते ही नहीं थे कि धर्मग्रन्थों की शिक्षा आम हो ताकि उनकी दुकानें चलती रहें। लेकिन जिस तरह शिक्षा आम हुई और लोगो ने धर्मग्रन्थो को भी समझने की कोशिश शुरू की तो इन तथाकथित मुल्ला-पंडितो के अधकचरे ज्ञान भी सामने आने लगे। अगर ध्यान से देखा जाए और सही संक्षेप में समझा जाए तो सारी की सारी मिथ्या एवं भ्रामक बातें स्वतः समाप्त हो सकती हैं।
ReplyDeleteइस्लाम में पाक अथवा पाकी (पवित्रता) का सबसे अधिक महत्त्व है, यहां तक की इसको आधा ईमान बताया गया है। लेकिन यह पाकी आमतौर पर प्रयोग में आने वाले शब्द ‘पवित्र’ से कुछ अलग है, यहां ‘पाक’ का अर्थ शारीरिक स्वच्छता से है। जैसे कोई भी मर्द अथवा औरत अगर मल-मूत्र त्याग करने के बाद शरीर के संबधित हिस्से को पानी से अच्छी तरह से नहीं धोता है और गंदगी उसके शरीर में लगी रह जाती है तो वह शरीर उस समय पूजा के लायक नहीं होता है (हाँ अगर पानी उपलब्ध ही ना हो तो अलग बात है), इसी तरह औरत और मर्द दोनों के कुछ ‘पल’ नापाकी के होते हैं और नहाने के बाद ही पूजा करने की इजाज़त होती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की औरत या मर्द तब अपवित्र हो जाते हैं, उन पलों में सामान्यतः प्रभु को याद करने तथा उसकी उपासना करने की पूरी इजाज़त होती है, केवल उन कार्यो की मनाही होती है जिन्हे करने के लिए स्वच्छता अतिआवश्यक होती है। और इसकी वजह कुछ शारीरिक बदलाव होने के कारण होने वाली अस्वच्छता के अलावा और कुछ भी नही होता, इसलिए इसे अन्यथा ना लेकर सामान्य प्रक्रिया समझना चाहिए। नापाकी के समय औरत को अछूत समझना बेवकूफी ही नहीं बल्कि जाहिलियत है। ऐसे समय में तो औरत को और भी अधिक अपनों के साथ की आवश्यकता होती है। इस्लाम के मुताबिक जब औरत किसी बच्चे को जन्म देती है तो उस पर जन्नत (स्वर्ग) वाजिब (आवश्यक) हो जाती है। इसे एक औरत का दूसरा जन्म समझना चाहिए, क्योंकि औरत मौत के मूंह से वापिस आती है।
ReplyDeleteजैसा कि आपने कहा किः "अगर आप की हंसी की गूँज किसी गैर मर्द को सुनाई दे गयी या आप पर किसी मर्द की नज़र पड़ गयी तो आप अपवित्र हो गयी. अब अगर सजदे में झुकना है तो फिर से खुद को पानी की छींटों से पवित्र कीजिये.
ReplyDeleteइस तरह की किसी भी बात से कोई भी औरत अथवा मर्द नापाक नहीं होता है और इसके लिए खुद को पानी की छींटों से पाक करने की कोई भी आवश्यकता नही होती है। यह तो कतई जाहिलियत की बात है और अगर कहीं ऐसा होता है तो हमें जमकर इसका विरोध करना चाहिए। इस्लाम की बुनियादी बातों में से एक यह भी है कि जिस कार्य के लिए अल्लाह का हुक्म नहीं है, उसे इस्लाम के नाम पर करने की सख्त मनाही है।
ईश्वर के लिए मर्द और औरत बराबर है और दोनो ही से उसने जीवन यापन के तरीको का हिसाब लेना है। दोनो के साथ एक जैसा ही इंसाफ होना है, यहां तक कि फेल और पास का फल भी दोनो के लिए एक जैसा है। स्वर्ग का आशीर्वाद महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसा हैं] वहाँ दो लिंग के बीच एक छोटा सा भी अंतर नहीं है। यह सुरा: अल-अह्जाब से स्पष्ट है:
मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाले पुरुष और आज्ञापालन करने वाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धरी रखने वाली स्त्रियाँ, विनर्मता दिखाने वाले पुरुष और विनर्मता दिखाने वाली स्त्रियाँ, सदका (दान) देने वाले पुरुष और सदका देने वाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले पुरुष और रक्षा करने वाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करने वाले पुरुष और यद् करने वाली स्त्रियाँ - इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है। [सुर: अल-अहज़ाब, 33:35]
जहां तक बात हूर की है तो यह जानना आवश्यक है कि हूर शब्द का प्रयोग औरत और मर्द दोनो के लिए किया गया है, हूर शब्द का अर्थ शोभयमान आँखे वाला/वाली है (विस्तृत जानकारी के लिए 'हमारी अंजुमन, http://hamarianjuman.blogspot.com' में मेंरा लेख ‘शोभयमान आँखे वाली हूर’ पढें). शब्द हूर, अहवार (एक आदमी के लिए) और हौरा (एक औरत के लिए) का बहुवचन है। इसका मतलब ऐसे इंसान से हैं जिसकी आँखों को "हवार" शब्द से संज्ञा दी गयी है। जिसका मतलब है ऐसी आंखे जिसकी सफेदी अत्यधिक सफ़ेद और काला रंग अत्यधिक काला हो। शब्द अहवार (हूर का एकवचन) शुद्ध या शुद्ध ज्ञान का भी प्रतीक है। और स्वर्ग में औरत और मर्द दोनो को ही हूरे मिलने का वादा है तो इसका अर्थ नौकर, साथी अथवा मित्र इत्यादि हो सकता है। जहां तक स्वर्ग में अनछूई हूरों की बात है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उनके साथ सहवास के लिए प्रेरित किया गया है। इसका अर्थ है जिन्हे दुनिया की किसी आँख ने कभी नहीं देखा और जो अपने मालिक/मित्र/साथी के प्रति वफादार हैं। और मेरे विचार में औरत और मर्द का एक दूसरे के प्रति वफादार होना कोई बुरा काम नहीं है, बल्कि यह तो मज़बूत रिश्ते की बुनियाद है।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
http://shnawaz.blogspot.com
Bahtu Achha lekh likha hai, Akhir kab tak Nari Zulm sehti rahegi. Kitne nirdayi hote hai vah jo Nariyo par Zulm karte hai Akhri kab tak karte rahenge? Ab to Nariyo ko Jagna hi padega.
ReplyDeleteविप्र, मुल्ला, पादरी सब,
ReplyDeleteहैं चोर की बिरादरी सब,
मूढ़ तुलसी कहता है कि नारी,
होती है त्रिया चरित्र वाली,
और कुरान में कहीं इस बात का उल्लेख है,
नारियां नर की ख़रीदी हुई एक खेत है.
हर कहानी ग्रन्थ की सिर्फ एक षडयंत्र है,
झूठ हर इक तंत्र, और ढोंग हर इक मंत्र है,
षडयंत्र है ये, अधिकार हनन करने का,
नारी शक्ति और मान मर्दन करने का,
इबादत करना भी गुनाह है बैठ मर्दों के संग,
अल्लाह के दरबार का यह कैसा ढंग?
हवसी है पंडित, उसे क्यूँ भगवान् का डर,
वैश्या बनाता बच्चियों को देवदासी कहकर,
हर मजहब एक-दूजे का संगी है,
सब हवसी, कपटी, पाखंडी है....
फौज़िया,
ReplyDeleteये तो इसी देश में हो चुका है...मध्य प्रदेश में सामूहिक विवाह से पहले सरकार ने लड़कियों के कौमार्य टेस्ट की शर्त रख दी थी...बवाल मचा तो ये कहा गया कि कुछ शादीशुदा औरतें भी सरकारी लाभ लेने की खातिर सामूहिक विवाह में अपने नाम पेश कर देती हैं...इसे रोकने के लिए ये जाना जा रहा था कि कौन वर्जिन है और कौन शादीशुदा...
लेख शानदार है...मेरा बस एक जगह मतभेद है कि लेख पुरुषों को जैनरलाइज़ करते हुए लिखा गया है...हाथ की पांच उंगलियां बराबर नहीं होती...
जय हिंद...
गंभीर मुद्दा है और आपने सही लिखा है. कलम तेज़ और तीखी सही लेकिन सच बयाँ करती है . बहुत आवश्यकता है इसकी ...
ReplyDelete"मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है."
ReplyDeleteAchchha hai ki ab aurteN khud aise sawaal utha rahi haiN. Shukriya.
मर्दो के गलत व्यवहार के खिलाफ अच्छा लेख लिखा है आपने फौज़िया जी. मगर कुछ बाते कुछ गलत लगती हैं. जैसे कि सब मर्द एक जैसे नहीं होते हैं और ना ही हमारे धर्म की किताब में औरतो के खिलाफ कुछ भी लिखा है. मैं अक्सर ही इसे पढ़ती हूँ.
ReplyDeleteवहीं शाहनवाज़ भाई ने भी बिलकुल सही लिखा है.
bahut khoob likha hai aap ne ...pahli baar blog par aane ka mouqa mila ....achcha laga badh kar
ReplyDeleteसभी धर्म पितृसत्तात्मक सामंतवाद को मजबूत करते हैं। इन थियरी तो कुछ हद तक सभी धर्म सहिष्णु नजर आते हैं लेकिन इन प्रैक्टिस सभी धर्म स्त्रियों के शोषण को जारी रखते हैं।
ReplyDeleteकिसी किताब में क्या लिखा है यह बहस बेकार की है यदि दुनिया में उसका कोई अमल कहीं नहीं दिखे। गीता में क्या लिखा है इससे ज्यादा जरूरी है यह देखना कि गीता पढ़ने वालों के बीच 'गीता' को क्या झेलना पड़ा !!
अरे भाई क्यों झूटी पर्शंसा करते हो ,अगर फोजिया को ऐसा ही शोक हे तो जाएँ रोज़ अपनी वर्जिनिटी ख़त्म करवाएं ,कोन रोकता हे ,परन्तु मर्दों को फ़िज़ूल में कियों दोष देते हो?
ReplyDeleteमानव के कुछ नियम होते हें .दानव के नहीं. आप बेनियम का दानव बनना कहते हें .बनये.मोहल्ले के सारे नोजवानों का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा .वह भी खुश ओर आप भी ..
ReplyDeleteओर यह जो झूटी वाह वाह कर रहे हें न यह सब आप के मित्र नहीं आप के धर्म के शत्रु हें. इन्हों ने इस परकर कभी मनु के नियमों का खंडन नहीं किया जिस के यहाँ महिला शूद्र की भांति हें ,नंदू गुजरती की डाक देखें, मैंने तो आज से मनु स्मरति को बिकुल छोड़ दिया
ReplyDeleteapna astitva banaye rakhne ke liye aurat ki kabhi na khtm hone wali jang jari hai..bahut hi acchi tarah se is lekh ko gadha hai aapne!
ReplyDeleteमफूज़ जी यह ओरतें किराए की पठ्या हें यह एक विशेष धर्म पर निशाना साधती हें इनका उद्देश्य उन आकाओं की चाप्लोसी करना हे जिनके अपने धर्म में तो कुछ हे नहीं वह दुसरे धर्म को भी एसा ही देखना चाहते हें
ReplyDeleteओर भारती जी में आपकी बात से सहमत तो हूँ परन्तु इन लड़कियों को यह मशविरा भी देना चाहूंगा की इस सम्बन्ध में अपने माता पिता से भी परामर्श कर लें
ReplyDeleteब्लाग पर आना सार्थक हुआ
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ़ प्रस्तुति
आपको बधाई
सृजन चलता रहे
साधुवाद...पुनः साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
ब्लाग पर आना सार्थक हुआ
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ़ प्रस्तुति
आपको बधाई
सृजन चलता रहे
साधुवाद...पुनः साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
आवेश तेरे बोलते हैं
ReplyDeleteभेद सारे खोलते हैं
तराजू बने शब्द तेरे
हम खुद को तोलते हैं
इमानदार पाठक ही
अंतर्मन टटोलते हैं
फोजिया खान ने लिखा हे कि,,,,, एक धार्मिक किताब में साफ साफ लिखा हे कि अच्छे करम करने वाले पुरुषों को जन्नत में अन छुई हूरे मिलेंगी ,,,,, हमें यह कहना हे कि हम ने वह धार्मिक ग्रन्थ पूरा पढ़ डाला परन्तु यह हमें कहीं भी साफ साफ लिखा हुआ नहीं मिला नहीं मिला ,,,,, अब फोजिया जी ही निशंदाही करदें तो बड़ी महरबानी होगी
ReplyDelete@ Aslam Qasmi-
ReplyDelete@-एक धार्मिक किताब में साफ साफ लिखा हे कि अच्छे करम करने वाले पुरुषों को जन्नत में अन छुई हूरे मिलेंगी ,,,
Bhagvad Gita mein likha hai...."Do your duty, reward is not thy concern"
Janaab Aslam,
-Are you not ready to grow?
-Do you do good deeds just to get 'hoors' in return?
-Do you have any agenda of speaking against Firdaus ji?
-Can't you use your common sense and believe that good deeds are good. Do you need proofs for this simple fact?
-Is it necessary to pull someone's leg , if the person is on the path of humanity?
-Don't you believe in brotherhood?
Majhab ke naam pe jang padhe-likhe logon ko shobha nahi deti hai.
Aslam miyaa - Fauziya Reyaz... Fauziya Khaan nahi... Jab tumhe naam dekh ke padhna nahi aataa to quraan kee aayat kyaa khaak dikhegi...
ReplyDeleteQuraan to maine bhee poori padhee hai aur bahut saaree vaahiyaat cheezen bhee padhee hai... aayat, sooraa sab ginaa doongaa to yahaan se bhaag jaaoge.. itraate raho apne quraan aur geetaa pe... tabhee is mulq kaa ye haal hai..
tumhaare jaise kathmulle aur majhab ke thekedaaron ne hee vikaas kaa bedaa gark kiyaa huaa hai...
sab bakvaas hai - hindu, muslim, sikh, isaai... sab ke sab bakvaas hain.
@ Bharat Bharti - abe saale jokar... tarkon se ladaai kar, kutarkon se nahi...
ReplyDeletepadh likh kar baat kar to behtar hogaa...
han to ab pata cala he ki firdos aor foziya yh sab tumhari behnen hen jo chadm naam se islam par parhaar kiya kartee hen imhe samjhaao yh apne asli namon de likha karen
ReplyDeleteAbe oye Aslam miyaa - faaltu ki bakvaas kiyaa karta hai saale darpok.... dojakh se darta hai aur usi ki vajah se sach hazam nahi ho raha hai naa tumhe... abe saale mohammad kee chhadee pe naachne waale putle... badan me jaan laa.. aur sach ko qubool kar.. agar teraa allaah hai to wo waaqai bahut badaa kameenaa hai jo apni shakal nahi dikhaataa... aur ghatiyaa se ghatiyaa usool banaa gayaa hai... aur ye mohammad to aur nautanki hai... wo allaah kaa putlaa... tum uske putle...
ReplyDeleteaslam bhai@ aapaki galati nahi hai. aap jaise dharm ke pakhnadiyon ki yehai asli mansikta hai.
ReplyDeleteaapaki galati nahi hai miya.
jab fauziya ya firdaus islam ke baare me( yaa kahen to jo sahi hai us baare men) likhti hain to vo aapako kisi dusre dharm ki lagti hai.
vaise hi jab rahul jaise kuchh himmti log hindu dharm ke baare me bolata hai to log rahul ko hindu hi nahi mante.
ho sake to aap apana ilaj karvaiye bhai sahab.
aapako aaraam ki jarurtat hai. aisa lagata hai ki aap jaise dharm ke thekedaar apane-apane dharm ka bojh uthate-uthaate bahut thak gaye hain.
nice
ReplyDeleteइस तरह के बेबाक विचार रखने की ही जरूरत है । आप निरंतर ऐसा कर रही हैं । साधुवाद !
ReplyDeleteऔरत यदि विचार करे , तो वही सबसे पहली होगी किताबों को नकारने वाली । क्योंकि वहॉं उसके लिए अपमानजनक बाते हैं । हर तरह के समाज की नियामक होने का दावा करने वाली पुस्तकों में । उन पुस्तकों को पढकर पुरुष भी वाहियात पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो जाता है ।
इसलिए यह बिंदु सार्वाधिक महत्वपूर्ण है कि औरत कब तक अपनी ही बेडियों और उसे बनाने वालों का पूजा / सजदा करती रहेगी ।
बढिया लिखा है आपने
ReplyDeletejin ki dharm pustakon men paghand hi paghand he vh chahte hen ki har dharm pustak ko nakar diya jae parantu thhoda nishpaksh ho kar sochen islam men esa nahin ,mere piyare bhai anbhiggy,aor vikas, bat galiyon se nahi tarkon se ki ja ti he,eeshvar aap ko raherast par lae
ReplyDelete@ Aslam Qasim - tumhara islaam to lagta hai phoolon se bhara para hai... tum jaise mardon kee jamaat ne likh daalaa hai jahan auraton ke liye jhak maarne ke sivaa kuchh hai hee nahee...
ReplyDeletetum par to mujhe hansi aati hai.. kyunki tum to ek kathputle ho.. jo bnae banaaye dharre par chalte ho.. naa apna dimaag istemaal kar sakte ho, naa dil... kyunki islaam tumhe sirf wahi karne kee aazaadi detaa hai jiski tumhe chhoot hai..
असलम भाई, सबसे पहले तो बात गाली-गलौज के बारे में कर ली जाए.
ReplyDeleteआपने कहा कि हम गाली से बात न करें. सही कह रहे हैं आप. बात हमेशा सही तरीके से ही होनी चाहिए. लेकिन शायद आप भुल रहे हैं कि ऊपर जब भारत भारती ने कुछ गलत लिखा था तो आपने उसका समर्थन किया था. उसके बोल को मजबूत किया था. पूछ सकता हूं कि क्यों आपने भारत भारती को सही ठहराया और समर्थन किया.
असल बात तो यह है कि, जब किसी ने आपको उसी श्ब्दों में जवाब दिया जिसका आपने ऊपर समर्थन किया था तो आपको मिर्च लग गई.
जहां तक आपने कहा कि जिसके अपने धर्म में कुछ नहीं होता वो दुसरों के धर्म के बारे में लिखते और बोलते हैं .
असलम मियां, हम और हमारे दोस्त ऐसे नहीं हैं जो केवल दूसरों की बुराईयां देखते हैं. हम दूसरों के बारे में कुछ कहने से पहले अपने-आप को देखते हैं और अपनी बुराई करते हैं. फौज़िया, फिरदौस, रहुल और भी बहुत सारे लोग ऐसा ही कर रहे हैं लेकिन आप जैसे कथित धार्मिक लोग अपने को हमेशा पाक-साफ बताते फिरते हैं और दूसरों पर उंगली उठाते हैं.
मैंने आपका ब्लौग देखा है. हिन्दू धर्म की ऐसी तैसी कर रखी है आपने. लेकिन मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है. कोई परेशानी नहीं है. अच्छा होता अगर आप साथ-साथ अपने धर्म की भी बखिया उधेरते लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते क्योकि आप बेहद डरपोक हैं. आपको अपने अल्लाह और मोहम्मद साहब से डर लगता है.
फिर भी कोई बात नहीं. अगर आप डरपोक हैं तो चुप तो रह ही सकते हैं. जो हिम्मत कर रहे हैं जो बोलना चाह रहे हैं उम्हें गलत तरीके से चुप कराने की कोशिश क्यों?
एक बात का ध्यान रहे. जो अपने भगवान, अल्लाह से नहीं डरा वो किसी असलम-वसलम की फालतू बातों पर तो कान भी नहीं देता.
अगर आपको भारत-भारती से इतना ही प्यार है तो उसे अपने घर बुलाइए. दावत खिलाइए और हो सके तो रात को अपने ही घर पे रोक लीजिए शायद उसका और आपका कुछ भला हो जाए.
क्या जमाना आ गया है. खुद गाली-गलौज का समर्थन करने वाले और फालतू की बात करने वाले तर्क की बात करते हैं.
सारे धर्मग्रन्थ औरतों के खिलाफ़ हैं... सभी धर्मों की औरतों को इन्हें सिरे से नकार देना चाहिये. औरतों को एक होकर आवाज़ उठानी चाहिये, यही सबसे सही होगा...
ReplyDelete@ Zeal, जो लोग आज भी सदियों पुराने धर्मग्रन्थों का हवाला देते हैं कि उसके अनुसार आचरण करना चाहिये, जो लोग अपने धर्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाली औरतों को दूसरे धर्म का एजेंट करार दे देते हैं, उनसे न उलझना ही बेहतर है.
Yes Mukti, You are absolutely correct. No point messing with such people.
ReplyDeleteभाड़ में जाए कौमार्य और अनछुआपन
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन फौजिया! अधिकारों और मज़हब पर मर्दों के कब्ज़े को हजरत राबिया अल्बसरी के बाद से किसी ने चैलेन्ज ही नहीं किया है! आगे की तरफ बढ़ना होगा, मगर इस बात का ख्याल भी आपको ही रखना है है की प्रगति शीलता की निरंतरता बनी रहे और एक संक्रीनता से निकल कर दूसरी संक्रीनता में आप ना उलझ जाएँ! आलोचनाओं और आलोचकों को अक्सर विरोध झेलना होता है! मुझे उम्मीद है आप झेलेंगी क्योकि सवाल सिर्फ आपका नहीं वैश्विक व्यवस्था का है अंध पित्र्सत्ता का है! और इसके चक्र में धर्मों का चक्र बेहद गहरा है इसको तोड़ने में आपको ज्यादा मेहनत करनी है!
दूसरी बात जो मै राय के तौर पर कहना चाहता हूँ वो है की तमाम चीजों को पुरे तर्क के साथ रखें! जैसे किसने ऐसा कहाँ कहा तो आपके लेखों पर समाज में बहस होगी और वो बहस तार्किक होगी जिसकी दिशा ज़रूर ही बेहतर होगी! हाँ मगर बेतुके तर्कों को नज़रंदाज़ करना ही बेहतर है!
धर्मों ने ही नहीं तमाम तरह की व्यवस्थाओं ने औरतों को औज़ार बनाने की कोशिश की है!
ज्यादा भाषण नहीं बस इतना की मै आपके साथ हूँ
स्त्रियां सुंदरतता पर ध्यान नहीं देती, आयु पर ध्यान नहीं देतीं, पुरूष होना पर्याप्त है, वे स्वयं को सुदर या कुरूप को अर्पित कर देती हैं
ReplyDeleteलेख शानदार है.
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteश्री अनभिग्य ओर श्री विकास जी ,,, मैंने कब कहा की आप गालियाँ न दें मैंने तो केवल यह कहा था की बात गलियों से नहीं तर्कों से होती हे ,,,रही बात गलियों की तो मेरे भोले भाले भाइयों आप यह शोक शोक के पूरा कीजिये ,में हूँ न गलियां खाने को , रही बात डरपोक होने की , हाँ में डरपोक भी हूँ , ओर एक इनसान अगर किसी स्थान पर स्वयं को कमज़ोर , या दूसरे के मुकाबले असहाय महसूस करता हे तो उसे अपने से ताक़तवर से डरना ही चाहिए ,ओर मेरा मानना हे कि अगर हर इनसान को मरना हे जिस से किसी को इनकार नहीं हो सकता ,अगर इनसान यह मानता हे कि उसकी मोत ज़िन्दगी दुसरे के हाथ में हे ,अगर वह मोत के समय स्वय को असहाय महसोस करता हे तो फिर उसे डरना ही चाहिए उस से जिस के सामने वह छोटा या असहाय हे ,,, सोचो कब सोचोगे ,,,, मोत आजायगी तब सोचोगे ,,,,,, ?
ReplyDeleteअब हिजड़े "फौजिया शर्मा" के नाम पर "इस्लाम" का प्रचार कर रहे हैं
ReplyDeleteAslam Qasmi यह हरामी यहाँ भी आ गया
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ReplyDeleteIslam is not for me.
ReplyDeleteकड़वी सचाई को शब्द देकर आयना दिखा दिया आपने बहसी जानवरों को
ReplyDeleteमैं भी आपके लेख की तारिफ करूंगा। अच्छा लिखा है आपने फोजिया जी...
ReplyDeleteमैं भी आपके लेख की तारिफ करूंगा। अच्छा लिखा है आपने फोजिया जी...
ReplyDeleteKya likha jaye .Betuki aur sterheen comments ne zayka kharab kar deya.Chal Kabir bhagen yahan se.
ReplyDeletenice keep it up
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है हमारे जीवन में व्याप्त एक सच्चाई है लेकिन यह लड़ाई स्त्री को ही लड़नी होगी | स्त्री छठ और करवा चौथ का व्रत रखकर अंततः पुरुष के अहंकार को पोषित ही करती है ,यह सब ===?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है हमारे जीवन में व्याप्त एक सच्चाई है लेकिन यह लड़ाई स्त्री को ही लड़नी होगी | स्त्री छठ और करवा चौथ का व्रत रखकर अंततः पुरुष के अहंकार को पोषित ही करती है ,यह सब ===?
ReplyDeleteमैं इसे एक महत्वपूर्ण आलेख समझता हूँ जिसे सभी को पढ़ना चाहिए…
ReplyDeletebhut hee badhiya...
ReplyDeleteaaj samaaj ko aaina dikhane ki zarurat aan hee padhi hai aurat k aage.