Monday, 5 April 2010

कॉमनवेल्थ कॉमन लोगों के लिए नहीं

हम खेलेंगे हम कैसा भी खेलें पर खेलने का जज्बा होना चाहिए. अरे ना भी खेल पाए तो क्या हुआ बड़े बड़े स्टेडीयम ऐसे ही थोड़े ना बन रहे हैं कुछ तो होगा ही। खेल होंगे खेल का जज्बा हर दर्द से ऊँचा है, हर गरीबी हर मुफ्लसी से ऊँचा है खेल का जज्बा. यक़ीनन खेल होने चाहिए चाहे मजदूरों के बच्चे सड़क किनारे खेलते रहे, मिट्टी में लोटते रहे. बेशक खेल होने चाहिए चाहे किसान आत्महत्या करते रहे. अरे क्यूँ नहीं होंगे खेल ? भले ही बाल मजदूर भट्टियों में झुलसते रहे. आलिशान होटलस तो बनने ही चाहिए, चाहे इंदिरा आवास योजना के नाम पर गरीब रिश्वत दे कर भी अपना हक ना पा सके. फ्लाईओवेर्स फटाफट बनने चाहिए भले ही गाँव देहात में नदी पार करने को पुल ना हों. असल खेल का जज्बा तो इसी को कहते हैं ना की कुछ भी हो हम खेलें और खेलने दें.

वो पागल हैं जो बिना मतलब दंगों पर चिल्लाते हैं, देश में लोग एक दुसरे के घर जला रहे हैं तो क्या हुआ, दुकानें लुट रही हैं तो क्या हुआ. हम ग्लोबल रिश्ते सुधार रहे हैं. बेधड़क गैर मुल्की लोगों के आराम के लिए हमारी राजधानी प्रगति कर रही है. हम तैयार हो रहे हैं दूसरों के लिए. अरे भई अपने अपनों के लिए कोई इतनी मेहनत थोड़े ही करता है. वो आयेंगे रहेंगे सब कुछ कम्फर्टेबल होना चाहिए ना, हमे तो आदत है अनकम्फर्टेबिलिटी में कम्फर्ट ढूंढ लेने की. विदेशी खिलाडी आयेंगे तो घांस अच्छी होनी चाहिए, ड्रेससिंग रूम बढ़िया होने चाहिए, अपने खिलाडियों को तो पथरीले मैदानों में हाथ पैर छिलवाने की आदत है.

ब्लू लाइन बसें हटवाएंगे, शानदार डीटीसी सड़कों पर बिछवाएंगे, मेट्रो पूरे शहर में नाचवाएंगे. तो क्या इतना झमेला अपने लिए है, बिलकुल नहीं. विदेशी मेहमानों की एवज़ में हम भी लाभ उठा लेंगे. ब्लू-लाइंस तो जब रेड-लाइंस हुआ करती थीं तब से ही दहशत मचाये हुए हैं पर अब नाक का सवाल है, किसी भी मिडिल क्लास परिवार की तरह यहाँ भी जान से ज्यादा नाक प्यारी है. अब तक ना जाने कितने दब के मरे पर दुःख नहीं लेकिन इज्ज़त का मामला है अब तो ब्लू को रेड सिग्नल दिखाना ही पड़ेगा.

सड़कें चमकनी चाहियें, शहर जगमगाना चाहिए, लीपा-पोती होनी चाहिए. मेहमान भगवान होता है उसकी खातिर में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. अपना क्या है हम तो टूटी-फूटी सड़को के आदी हैं. अक्सर सड़कों के गड्ढों के सबब स्कूटर और बाइक्स उलटती हैं तो क्या हुआ. मेहमानों की गाड़ियाँ सड़कों पर तैरनी चाहिए. बाद में जो मेकअप टूट टूट कर बाहर आएगा वो तो हम देख लेंगे. अपना क्या है हम तो हर साल ही सड़कों की त्वचा बदलते देखते हैं.

बस जज़्बा होना चाहिए और वो तो हम में कूट कूट का भरा है, खेल करवा कर ही रहेंगे. लगता है देश को थोड़ा कनफयुजन है, अरे !! कॉमनवेल्थ खेल कॉमन लोगों के लिए नहीं होते पब्लिक तो बिना मतलब ही एकसाइटिड होती है.

13 comments:

  1. बढिया लिखा है आपने फौज़िया.
    कुछ दिनों में जो गेम राजधानी में होने हैं वो कहीं से आमलोगों के लिए नहीं है लेकिन यह गेम आम लोगों की कीमत पर होंगे.

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  2. "माँ बरसों से कह रही है कि उसकी आँखों का मोतियाबिंद पक रहा है डॉक्टर को दिखा दो मगर किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता वहीं नई-नवेली दुल्हन की आँखों में धूल का छोटा-सा कण पड़ जाए तो डॉक्टरों की पूरी फौज खड़ी हो जाती है..आखिर कॉमनवेल्थ खेलों की ज़रूरत ही क्या है..सारगर्भित पोस्ट........."

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  3. कामनवेल्थ गुलामी का ऐसा प्रतीक हैं जिसे भारत जबरदस्ती ढोए जा रहा है। बुरा ये कि इस जिद की कीमत आम-जनता को चुकानी पड़ रही है।

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  4. Bahut khoobsurat vyang hai..Fouziya ji.. badhai... bechara mango man..

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  5. व्यंग्य नहीं चिढ... जो जायज़ है!!

    दो चीज़ों को एक साथ रखकर आपने जो टीस जतायी है.. उसके लिये निःशब्द हूं

    आभार
    राहुल कुमार

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  6. well this world has two types of people : Haves & Have-nots... And the haves will always call the shots... Good that u think of the lot of have-nots...

    Lekin itna pessimistic kyun hain aap... isi bahane kuchh improvement to ho raha hai is sheher me... Aur videshi mehman tamaam umr ye facilities ka faayada to lenge nahi... a bigger cause of concern is why are the MLAs eyeing those luxury flats at the cost public money...

    anyways... ye gussa jaayaz bhi hai, aur mulq ke liye achchha bhi

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  7. yeh vyangya ki hi shaili hai. vyangya me chidh isi tarah vyakt hoti hai. achchha likha hai.

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  8. sahi likhte ho aap fauji bhai

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  9. Sach bataiye, aap Radi Jockey hi hain?
    Aapki lekhnee se nahin lagta! Behad sanjeeda hai isliye!

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  10. फौजिया कभी खुश भी हुआ करो किसी काम से....अरे भई कई लोगो को काम मिल रहा है इस बहाने....गरीबी हटानी है भई....नहीं तो गरीब ही हटा देंगे....नई बस चलानी है..देश का हाल खराब है...सो अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ जमा कर दिया तो तुम्हें क्या प्रारब्लम है.....आम जनता के लिए शहर नहीं होंगे भई शहर बनता है पैसो से..आईपीएल कराएंगे..भावनाओं से कमाएंगे....काहे को इतना जलती हो....

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  11. sach kahaa aapne...aur is baat par main kahun bhi to kyaa kahun....!!

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  12. Duvidhame hun...kya kahun?

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