तू औरत है औरत...प्रतिक्रिया ना दे
शादी से पहले यौन सम्बन्ध बनाना अपराध नहीं है. इन मुद्दों को इतना complicated बना कर मजेदार तरीके से परोसना, डिस्कशन करते वक़्त चेहरे पर एक घटिया मुस्कराहट, चीप लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते हुए परसनल प्रहार बेहद आम है. जब भी इस तरह के किसी मुद्दे पर टीवी शो में किसी महिला को बुलाया जाता है तो मर्दों को घटियापन पर उतरते देर नहीं लगती... डीबेट प्रोग्राम्स में पूजा भट्ट पर बातों बातों में कीचड़ उछालना लगभग सभी ने देखा होगा. एक सज्जन ने एक शो में बहस के दौरान स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस प्रीती को कहा था 'अगर आप को सड़क चलते कुछ भी पहनने का अधिकार है, तो मुझे भी आपके साथ कुछ भी करने का अधिकार है'
यौन सम्बन्ध अपराध हो ना हो पर ऐसे टुच्चे शब्दों का इस्तेमाल वो मानसिकता दिखाता है जो पूरे समाज पर छाई हुई है.
अगर आपको अपनी so called आबरू प्यारी है तो इनसे लड़ा भी नहीं जा सकता..लफ़्ज़ों से आपके कपडे नोच लेंगे, नज़रों से आप को बेआबरू कर देंगे...मज़े की बात तो ये है की ये वही लोग हैं जो नारी जाती की भलाई और इज्ज़त की दुहाई देते हैं. जबकि खुद मौका मिलते ही अपना नकाब उतार फेंकते हैं, उस परदे के पीछे का चेहरा सड़क चलते लड़कियों की कमर पर हाथ मार कर निकल जाने वालों से हुबहू मिलता है.
शादी के बाद पति की पत्नी पर जोर ज़बरदस्ती को ये कह कर ढंका जाता है की पत्नी अगर शारीरिक ज़रूरतों को पूरा नहीं करेगी तो पति बाहर का रास्ता देखेगा. वहीँ अगर यही बात पत्नी पर लागू की जाए तो वो औरत बदचलन कहलाएगी. अगर दो लोग अपनी मर्ज़ी से करीब आते हैं तो इस पर ख़राब करेक्टर का दोष भी लड़की पर. अभी हाल ही में एक किस्सा बहुत करीब से देखा एक कपल को ऑफिस में 'किस' करते देखा गया. (जो की मैं मानती हूँ की personal रिश्तों को प्रोफेशनल जगहों से दूर रखना चाहिए या कम से कम प्रोफेशनली बिहेव करना ही चाहिए). इन हालात में वही हुआ जो होता आया है. लड़की को terminate कर दिया गया जबकि वो लड़का अब भी ऑफिस में धड़ल्ले से काम करता है हँसता बोलता है.
किसी भी फिसिकल इन्वोल्व्मेंट में लड़की का ही सर झुकता है जबकि उसमें आदमी और औरत दोनों भागीदार होते हैं.
कहते हैं इज्ज़त लुट गयी...अरे काहे की इज्ज़त जो कुछ हुआ उसमें क्या लड़कों का कोई role नहीं होता या तो दोनों की इज्ज़त लुटी या तो किसी की भी नहीं...इज्ज़त का टोकरा औरत ही क्यूँ उठाये.
कभी अपना दुपट्टा सही से ओढ़ लो और कहीं अपना मुंह चुपचाप बंद कर लो...तुम औरत हो प्रतिक्रिया देना तुम्हारा काम नहीं.
"कहते हैं इज्ज़त लुट गयी...अरे काहे की इज्ज़त जो कुछ हुआ उसमें क्या लड़कों का कोई role नहीं होता या तो दोनों की इज्ज़त लुटी या तो किसी की भी नहीं...इज्ज़त का टोकरा औरत ही क्यूँ उठाये.
ReplyDeleteकभी अपना दुपट्टा सही से ओढ़ लो और कहीं अपना मुंह चुपचाप बंद कर लो...तुम औरत हो प्रतिक्रिया देना तुम्हारा काम नहीं."
वैसे तो यह पूरी पोस्ट ही एक अलग तेवर में है लेकिन उपर की इन चन्द लाईनों में वो गुस्सा साफ-साफ सामने आ रहा है. यह् गुस्सा अकेले किसी फौज़िया का नहीं है. ये अलग बात है कि बहुत सारी लड़कियां चाह कर भी अपने इस गुस्से का इज़हार नहीं कर पाती हैं.
फ़ौज़िया जी,
ReplyDeleteशब्द तीखे हैं और लाज़िमी भी क्युंकि इसमें कुछ चीखें भी छिपी है. रोष जायज़ है. गरियाते रहिये इन निकम्मे मर्दों को.
बस एक ही चाहत है कि सारी महिलायें इसी तरह बग़ावत पर उतर जायें, और मर्दों को उनकी औक़ात याद दिलाती रहे. सब के सब भूल जाते हैं कि उन्हे जनमाने वाली एक औरत ही थी.
एक ही बात समझ में नही आती कि शुरु के नौ महीने औरत के साथ रहने के बावुजूद भी ये मर्द ऐसे कैसे हो सकते हैं.
आग लगाती रहें और इसे बुझने ना दें.
आलेख पढ़ा। इज्जत का टोकरा सिर्फ लड़की ढोए तो फिर ये गलत है। लेकिन शादी से पहले यौन संबंधों की जहां तक बात है ये दो लोगों का आपस का निजी मामला है। इस पर किसी दूसरे तीसरे को टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। हां इतना जरूर है कि इंसान को सार्वजनिक स्थल पर इस तरह के निजी मामलों को अंजाम नहीं देना चाहिए, क्योंकि ये निजी मामला है।
ReplyDeleteअरे काहे की इज्ज़त जो कुछ हुआ उसमें क्या लड़कों का कोई role नहीं होता या तो दोनों की इज्ज़त लुटी या तो किसी की भी नहीं...इज्ज़त का टोकरा औरत ही क्यूँ उठाये.
ReplyDeletei m proud of u.very very nice post.
Nice Post...
ReplyDeleteविषय एक विस्तृत बहस की मांग करता है ...पर ये तय है के दिमागी ताले अभी खुलने बाकी है ...
ReplyDeleteबिलकुल सही फरमाया फौजिया .. पर ये ही सच्चाई है ... लड़कियां कितनी भी सफाई क्यूँ न दे दें
ReplyDeleteपर नतीजा तो वही ढाक के तीन पात ... ये दर्द तो बस लड़कियां ही समझ सकती है ... इस तरह की हरकत करने वाले लड़के कभी ये नहीं सोचते की उनकी कोई बहन भी है और कोई इस तरह की हरकत उनकी बहन के सथ करे तो उन्हें कैसा लगेगा ... काश समाज से ये बुराई मिट पाए
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletepadhate hue man aakrosh se bhar utha. sach kahun thodee der sochaa ki aap kitanaa sahee hain. aapakee baaton se mai bhee sahamat hun. lekin ye jo tamaam daleelen aapane dee hain usme mere khyaal se kuch chootataa ja raha hai. kuch kaary hamare awchetan me chalataa rahataa hai, ham (shoshit) har badalaaw kee baad karate hain, aadhunikataa hame bhee bhaatee hai, lekin baat jab beeda uthaane kee hotee hai tab peeche ho jate hain. baat wahee hai na bhagat singh paidaa hon lekin padosee k ghar me. mai manataa hun ki pauraanik kaal se hee stiriyon ko itanaa dabaaya gaya hai ki wo ab ise apanee niyatee maan baithee hain. jab har cheez me aapaka nazariya badal raha hai to yahan aa kar aapka hausalaa past kyun ho jaataa hai, kyun apanaa leteen hain rakshaatamak rawaiyaa, kyun nahee foonk deteen hain widroh ka wigul apane hee ghar se, kyun wahan ho jata hai unakaa bhaawnaatmak bhatakaaw. unhen aaj tak samajh nahee aayaa aur na hee aayegaa ki unhen aaj bhee sirf aur sirf bhogyaa samajhaa jaataa hai. aapane bhee sunaa hogaa "yatr naaree pujyate ramante tatr devtaa"...mala japiye isakaa, kahan tak laagu hotaa tha aur hotaa hai.
ReplyDeletemaine bahut pahale bhee kaha tha aur fir kah raha hun mahilaayen khud jaane-anjaane me hee sahee apane shoshan ko badhaawa detee hain!
यह किसी एक के लिये नही है यह सबके सोचने का प्रश्न है लेकिन इस तरह नही ।
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट...
इसी तरह के विचारों वाले मेरे लेख तकरीबन 13-14 साल पहले एक अखबार के महिला-पृष्ठ पर छपे थे। 3-4 लेख ही छपे होंगे कि किसी ने हमारे घर के बाहर वाले आंगन में मानव-मल से भरी पौलीथिन फेंकनी शुरु कर दी। दो-तीन और लेखों के बाद मेरी जगह एक अन्य सज्जन के ‘नयी बोतल में पुरानी शराब’ टाइप की महिला-मुक्ति की ‘प्रेरणा’ देते लेख छपने लगे। इसका वर्णन कभी अलग से विस्तार से करुंगा कि किस तरह कभी विरोध करने वाले लोग बदलाव आते ही चेहरे बदलकर सबसे आगे आ खड़े होते हैं।
ReplyDeleteएन.डी.टी.वी. का वह प्रोग्राम भी मैंने देखा था जिसमें एक सवर्ण गांधीवादी संपादक ने सुनीता जैन से यह अश्लील और भद्दा वाक्य कहा था। उनकी जगह किसी और जाति-वर्ण का विद्वान होता तो यही लोग उसका ख़ून पी गए होते। पर क्या करें कि यहां असली चरित्र से ज़्यादा झूठी इमेज और मैनेज की गयी प्रतिष्ठाएं काम आती हैं।
बिलकुल सही लिखा आपने।
@फौजिया
ReplyDeleteहर लड़की के मन में यही सवाल उठते है पर उनको अलफ़ाज़ देना हर किसी के बस की बात नहीं.... मोहल्ले के चबूतरों पर बिना बनियैन पहने लुंगी में बैठे हुए समाज के ठेकेदार जो स्वयं तो नग्न है पर सर झुका कर गुजरती लड़की की दिखती एड़ी में भी वासना ढूंढ लेते है... पता नहीं ये विचारों की सडांध कब समाप्त होगी
मन छू लिया आपने
Fauziya,
ReplyDeleteSabse pehle badhai, sashakt lekhan ke liye!
Dekhiye, ek vahiyaat si film mein ek behad sateek dialogue tha: Aadmi kutta hota hai, Aadmi ki nasl kutte ki hoti hai!
Kuchh aur kehne ki zaroorat hai kya???
Sorry ! galti se Preeti ko Sunita likh gaya.
ReplyDeleteबहुत अच्छे फ़ौज़िया. मैंने आज सुबह फ़िरदौस का लेख पढ़ा था. शाम को आपका पढ़ रही हूँ. मुझे लगता है कि आप और फ़िरदौस बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात रखती हैं. बहुत ही विचारोत्तेजक और विचारणीय लेख है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक लेख।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
सवाल है:-
क्यों किसी भी फिजिकल इन्वोल्व्मेंट में लड़की का ही सर झुकता है जबकि उसमें आदमी और औरत दोनों भागीदार होते हैं ?
जवाब:-
इसका कारण हैं समाज के अंदर और मोहल्ले के चबूतरों पर बिना बनियान पहने लुंगी में बैठे हुए समाज के ठेकेदार जो स्वयं तो नग्न है पर सर झुका कर गुजरती लड़की की दिखती एड़ी में भी वासना ढूंढ लेते है... (ध्यान रहे यह ठेकेदार अपने ब्लॉगवुड में भी मौजूद हैं)
धन्यवाद फौजिया, यूं ही लिखते रहो, आइना दिखाते रहो, यह सडांध और यह ठेकेदारी ऐसे ही खत्म होगी !
फौजिया बहुत उम्दा लेख.. और बहुत उम्दा सोच.. मैं आपसे बिल्कुल मु्तफिक हूं... आपने अपने अल्फाज़ों में हर लड़की के मन की बात कह दी..
ReplyDeleteयह रोग इसी तरह के विरोध से ही दूर होगा
ReplyDeleteलिखते रहिए
a well thought write up...we as women encounter this every day..i feel like cursing those roving eyes i encounter everyday...if someone protests they say the girls should come wearing descent clothes!!Now who gets to decide the decency of attires???
ReplyDeletebahoot badhiya.....
ReplyDeletebahoot khoob... bahoot khoob...
ReplyDeletekuch log ese hote h jinhe dosro ki ijjat ko sarerah lane m h hi mja aa ta h or y karke vo apne aap ko mahan samjte h. Aap ki likhi bato ko shayd samaj kr koi apni soch badal de. Likhte rahiye..
ReplyDelete"विचारणीय लेख फौज़िया, पर पूरा का पूरा दोष सभी पुरूषों पर नहीं लग सकता पर यकीनन टोटेलिटी में आपकी बात सही हो सकती है........"
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
बहुत ही अच्छा लेख है .और शायद आप ध्यान ना दे पाई हों पर कुछ परिवर्तन भी हुआ है आपके इस लेख से ..कुछ घोर स्त्री विरोधी भी आपके इस लेख की प्रशंसा कर रहे हैं
ReplyDeleteबहुत ही जरूरी सवाल उठाये हैं.,आपने...सिर्फ औरतों को ही हर मामले में दोषी करार क्यूँ दिया जाता है...पर समाज की यही मानसिकता है....जिसे बदलने में ना जाने कितने साल लगेंगे...
ReplyDeleteशायद जबतक हमारे देश की हर लड़की शिक्षित हो अपने पैरों पर ना खड़ी हो जाए और ईंट का जबाब पत्थर से देना ना सीख ले, तब तक ,ऐसी ही फ़ब्तिउओन की शिकार होती रहेगी..
well said dear.. keep up this spirit
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bahut sahi likha aapne...samaj ke in thekedaaro ko jab tak inke shabdo me jawab na diya jaye ye samjhege nahi...
ReplyDeleteTaaliyon ki awaz aap tak kaise pahunchaaun pata nahin.. ummeed hai itna hi behtar radio par bhi bolti hongeen.. kash sun pata.
ReplyDeleteफौजिया जी, आपका यह लेख पढ़ कर तो मै यही कहूँगा की ऊपर वाले ने गजब की लेखनी और अजब के भाव दिए है. इन भावो को सुन्दर शब्दों में पिरो कर जो पोस्ट लिखी है उसके लिए आप मेरी बधाई स्वीकार करे. कुछ ऐसे ही भावो से मै भी गुफ्तगू करता हूँ. कभी समय निकाल कर मेरी गुफ्तगू में शामिल हो.
ReplyDeletewww.gooftgu.blogspot.com
"मेरा मासूम होना ही मेरे मरने का सबब था,
ReplyDeleteकातिल तो कातिल था मगर तेरी बेरुखी से भी मौत आती रही।
पर अब वो जो इतने हाथ बढे है मेरी ओर
लगता है मेरा मरना उनके लिए सबक था । "
baap re baap......itne gusse men to main likhtaa hun.....aap bhi......???
ReplyDeleteacchhi post......
aapki is post ko to mera dher sara vakt chaahiye...!!
ReplyDeleteसबसे पहले तो यह कि इस आलेख में कुछ शब्द लोगों को आपत्तिजनक लग सकते हैं....मगर मैं उन्हें नहीं बदल सकता.....क्यूंकि जो कुछ मैं देखता आ रहा हूँ....वो इतना वीभत्स और भयावह है....कि उसकी तुलना में ये शब्द कुछ भी नहीं बल्कि मैं इतना व्यथीत हूँ....कि लिखूं तो क्या लिखूं यह भी समझ नहीं आता....फिर भी फौजिया जी आपसे सबों से माफीनामे के साथ......
ReplyDeleteमैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
यह जो विषय है....यह दरअसल स्त्री-पुरुष विषयक है ही नहीं....इसे सिर्फ इंसानी दृष्टि से देखा जाना चाहिए....इस धरती पर परुष और स्त्री दो अलग-अलग प्राणी नहीं हैं...बल्कि सिर्फ-व्-सिर्फ इंसान हैं प्रकृति की एक अद्भुत नेमत.. !!...इन्हें अलग-अलग करके देखने से एक दुसरे पर दोषारोपण की भावना जगती है....जबकि एक समझदार मनुष्य इस बात से वाकिफ है की इस दुनिया में सम्पूर्ण बोल कर कुछ भी नहीं है
मैं देखता हूँ....कि स्त्रियों द्वारा लिखे जाने वाले इस प्रकार के विषयों पर प्रतिक्रिया में आने वाली कई टिप्पणियाँ [जाहिर है,पुरुषों के द्वारा ही की गयीं...]...अक्सर पुरुषों की इस मानसिकता का बचाव ही करती हुई आती हैं....तुर्रा यह कि महिला ही "ऐसे पारदर्शी और लाज-दिखाऊ-और उत्तेजना भड़काऊ परिधान पहनती है....बेशक कई जगहों पर यह सच भी हो सकता है....मगर दो-तीन-चार साल की बच्चियों के साथ रेप कर उन्हें मार डालने वाले या अधमरा कर देने वाले पुरुषों की बाबत ऐसे महोदयों का क्या ख्याल है भाई....!!
जब किसी बात का ख़याल भर रख कर उसे आत्मसात करना हो....और अपनी गलतियों का सुधार भर करना हो.. तो उस पर भी किसी बहस को जन्म देना किसी की भी ओछी मानसिकता का ही परिचायक है...अगर पुरुष इस दिशा में सही मायनों में स्त्री की पीडा को समझते हैं तो किसी भी भी स्त्री के प्रति किसी भी प्रकार का ऐसा वीभत्स कार्य करना जिससे मर्द की मर्दानगी के प्रति उसमें खौफ पैदा हो जाए....ऐसे तमाम किस्म के "महा-पुरुषों" का उन्हेब विरोध करना ही होगा....और ना सिर्फ विरोध बल्कि उन्हें सीधे-सीधे सज़ा भी देनी होगी...बेशक अपराधी किसी न किसी के रिश्तेदार ही होंगे मगर यह ध्यान रहे धरती पर हो रहे किसी भी अपराध के लिए अपने अपराधी रिश्तेदार को छोड़ना किसी दुसरे के अपराधी रिश्तेदार को अपने घर की स्त्रियों के प्रति अपराध करने के लिए खुला छोड़ना होता है...अगर आप अपना घर बचाना चाहते हो तो पडोसी ही नहीं किसी गैर के घर की रक्षा करनी होगी...अगर इतनी छोटी सी बात भी इस समझदार इंसान को समझ नहीं आती...तो अपना घर भी कभी ना कभी "बर्बाद"होगा....बर्बाद होकर ही रहेगा....किसी का भी खून करो....उसके छींटे अपने दामन पर गिरे बगैर नहीं रहते....!!
अगर ऐसा कुछ भी करना पुरुष का उद्देश्य नहीं है तो ऐसी बात पर बहस का कोई औचित्य....?? अगर इस धरती पर स्त्री जाति आपसे भयभीत है तो उसके भय को समझिये....ना कि तलवार ही भांजना शुरू कर दीजिये....!!
आप ही अपराध करना और आप ही तलवार भांजना शायद पुरूष नाम के जीव की आदिम फितरत है.....किंतु अपनी ही जात की एक अन्य जीव ,जिसका नाम स्त्री है....के साथ रहने के लिए कुछ मामूली सी सभ्यताएं तो सीखनी ही होती है....अगर आप स्त्री-विषयक शर्मो-हया स्त्री जाति से चाहते हो तो उसके प्रति मरदाना शर्मो-हया का दायित्व भी आपका है कि नहीं....कि आपके नंगे-पन को ढकने का काम भी स्त्री का ही है....??ताकत के भरोसे दुनिया जीती जा सकती है.....सत्ता भी कायम की जा सकती है मगर ताकत से किसी का भी भरोसा ना जीता जा सका है....ना जीता जा सकेगा.......!!ताकत के बल पर किसी पर भी किसी भी किस्म का "राज"कायम करने वाला मनुष्य विवेकशील नहीं मन जा जा सकता....बेशक वो मनुष्यता के दंभ में डूबा अपने अंहकार के सागर में गोते खाता रहे......!!दुनिया के तमाम पुरुषों से इसी समझदारी की उम्मीद में......यह भूतनाथ....जो अब धरती पर बेशक नहीं रहा....! ..
nice post bahut hi sarthak soch hai aap ki
ReplyDeleteभावो को सुन्दर शब्दों में पिरो कर जो पोस्ट लिखी है उसके लिए आप मेरी बधाई स्वीकार करे!...सिर्फ औरतों को ही हर मामले में दोषी करार क्यूँ दिया जाता है...पर समाज की यही मानसिकता है
ReplyDeleteऐसे आर्टिकल्स की जरुरत है.. थोडा ही सही बदलाव तो आये..
ReplyDeleteadbhut...daring post and thoughts...break the walls. let fresh air come inside..
ReplyDeleteThanks for ur comments on my blog.
ReplyDeleteI agree with ur views in this post
Fauziya,
ReplyDeleteSabse pehle badhai, sashakt lekhan ke liye!
फौजिया बहुत उम्दा लेख.. और बहुत उम्दा सोच.. मैं आपसे बिल्कुल मु्तफिक हूं... आपने अपने अल्फाज़ों में हर लड़की के मन की बात कह दी..
ReplyDeleteetni badiya post ke liye danyavaad faujiya ji. man ki bat kah di apne.
ReplyDeleteaaj aap ka pahli baar blog dekha aur aap ke lekhan se bhi ru-baru hua.lekhan men gambhirta hai -samajik muddon par aap ki kalam ki dhaar ko dekha-achcha lga-bdhai.
ReplyDeletebdhai is baat ki - ki gambhir lekhan men mahilaon ko ham kam paate hain.ese men aap jese lekhkon ko jab padhte hain to khushi hoti hai.
ARIF JAMAL
EDITOR/PUBLISHER
NEW OBSERVER POST - HINDI DAILY
QUTUB MAIL - URDU DAILY
These are truly great ideas in concerning blogging.
ReplyDeleteYou have touched some good factors here. Any way keep up
wrinting.
my web page: my source