दिल और दिमाग का आपसी ताल मेल ना है ना कभी होगा, क्या चाहिए क्या करना है..कौन सा रास्ता सही है...इसमें हमेशा ही दिल और दिमाग बेहस करते हैं और इस बहस में मरते हैं हम यानी इंसान...
घुटते हैं हम तड़पते हैं हम....वैसे scientificly ये prove हो चुका है की सोचने समझने का काम हमारा brain करता है पर लोगों ने दिमाग और दिल की category बनाई जो अपनी जगह बिलकुल सही है...हम जो कुछ महसूस करते हैं हमारी हंसी हमारा दर्द हमारी उलझने दिल से जुडी होती है और हमारे मज़बूत फैसले, mature decisions दिमाग की देन होते हैं...मतलब जो बेसाख्ता हो वो दिल...और जो चालाक हो वो दिमाग. यानी हमारे अन्दर ही दो शख्स.
दिल ओ दिमाग की जंग में पल पल मरते हैं,
अब तो खुद ही से डरते हैं खुद ही से डरते हैं
ख्वाहिशें अब करते नहीं हम,
जो की थी हसरतें उन्ही से डरते हैं
खुद कलामी कर लिया करते थे हम,
अब तो हाल ये हैं आईने से डरते हैं
ना पूछो मेरी शरारतें मेरी शोखी कहाँ गयी,
सच कहें तो अब हम कहकहों से डरते हैं.
दिल हमेशा ऐसे रास्ते पर चलने को कहता है जो खतरनाक होता है, रिस्की होता है और दिमाग हमेशा सुरक्षित रास्तों की तलाश में रहता है, इसी उधेड़ बुन को दिल और दिमाग की जंग कहा जाता है...मतलब फैसला कोई भी हो बेबस इंसान ही होगा...क्यूंकि दिल सा वाकई कोई कमीना नहीं...
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ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है, दिल सा कमीना नहीं है कोई......
ReplyDeleteमुझे भी लगता है कि अगर इन्सानी शरीरे से इसे निकाल कर चलना संभव होता तो ज़िन्दगी एक तरह से चलती. चाहे इधर चाहे उधर.
इधर, उधर में झुलना न पड़ता.
दिल ओ दिमाग की जंग में पल पल मरते हैं,
ReplyDeleteअब तो खुद ही से डरते हैं खुद ही से डरते हैं
...दिल और दिमाग की पहेली आज तक कोई समझ पाया है?..
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विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
ना पूछो मेरी शरारतें मेरी शोखी कहाँ गयी,
ReplyDeleteसच कहें तो अब हम कहकहों से डरते हैं.
बहुत खूब!
ज़िंदगी की उठापटक में हम इतने गाफिल हो जाते हैं, कि अपना ध्यान रहता है.. न दिलो-दिमाग का.. बस यूं ही कुछ फैसले हो जाते हैं... और हम सारा दोष दिल पर मढ़ देते हैं.. फिर कहते हैं कि ये दिल तो कमीना है...
ReplyDeleteदिल तो बच्चा है जी
ReplyDeleteऔर बच्चा हमेशा निर्लिप्त और भयहीन होता है
दिमाग सारे विध्वंशों की जड़ है
"बहुत खूब पोस्ट लिखी फौज़िया ...वैसे अगर हम होश में रहें तो दिल और दिमाग एक साथ मिलकर दोस्तों की तरह काम करते हैं...."
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
dil kee suniye... dimaag ko goli maariye!! dimaag rok-tok kartaa hai... dil aazaadee detaa hai!!
ReplyDeletebahut achhee post!!
ना पूछो मेरी शरारतें मेरी शोखी कहाँ गयी,
ReplyDeleteसच कहें तो अब हम कहकहों से डरते हैं...
bahut sundar pankti...
achchi post...
साथियो!
ReplyDeleteआप निसंदेह अच्छा लिखते हैं..समय की नब्ज़ पहचानते हैं.आप जैसे लोग यानी ऐसा लेखन ब्लॉग-जगत में दुर्लभ है.यहाँ ऐसे लोगों की तादाद ज़्यादा है जो या तो पूर्णत:दक्षिण पंथी हैं या ऐसे लेखकों को परोक्ष-अपरोक्ष समर्थन करते हैं.इन दिनों बहार है इनकी!
और दरअसल इनका ब्लॉग हर अग्रीग्रेटर में भी भी सरे-फेहरिस्त रहता है.इसकी वजह है, कमेन्ट की संख्या.
महज़ एक आग्रह है की आप भी समय निकाल कर समानधर्मा ब्लागरों की पोस्ट पर जाएँ, कमेन्ट करें.और कहीं कुछ अनर्गल लगे तो चुस्त-दुरुस्त कमेन्ट भी करें.
आप लिखते इसलिए हैं कि लोग आपकी बात पढ़ें.और भाई सिर्फ उन्हीं को पढ़ाने से क्या फायेदा जो पहले से ही प्रबुद्ध हैं.प्रगतीशील हैं.आपके विचारों से सहमत हैं.
आपकी पोस्ट उन तक तभी पहुँच पाएगी कि आप भी उन तक पहुंचे.
मैं कोशिश कर रहा हूँ कि समानधर्मा रचनाकार साथियों के ब्लॉग का लिंक अपने हमज़बान पर ज़रूर दे सकूं..कोशिश जारी है.
bilkul sahi aapne likha hai dil hi jo sab kuch karne par insaan ko amaada karta hai ....jo bhi ho acha mazmum hai ...aap bahut dino baad kuch likha dekhkar khushi hui ...apse guzarish hai jab bhi aye to hamare blogs par tashreef lana na bhule kyuki aap jaisi shakhshhiyat ka aana hamari hausala afzai hogi ....
ReplyDeleteमतलब जो बेसाख्ता हो वो दिल...और जो चालाक हो वो दिमाग. यानी हमारे अन्दर ही दो शख्स
ReplyDeleteबहुत बढिया
प्रणाम