आज़ादी इस साल फिर उसी वक़्त आएगी. १५ अगस्त की रात से ही मेसजेस की कतार लग जाएगी. इनबॉक्स आज़ादी के जश्न से भर जाएगा. सुबह एक-आध लोग फ़ोन भी कर लेंगे. दोपहर में टीवी चेनलों पर 'ग़दर एक प्रेम कथा' देश भक्ति की दुहाई देगी. सनी देओल का अकेले पचास पाकिस्तानियों को पीटना और 'भारत माता की जय' चिल्लाना दर्शकों को देश भक्ति की भावना से लबालब भर देगा. दिन भर रेडिओ पर 'ये देश है वीर जवानों का' चलेगा. दूरदर्शन मणि रत्नम की 'रोजा' दिखा कर तसल्ली कर लेगा. कुछ लोगों को मनोज कुमार की भूली बिसरी फिल्मे याद आएँगी. सड़क किनारे बिकने वाले गुब्बारों से लेकर हाथों में खनकने वाली चूड़ियां भी तिरंगी हो जायेंगी. प्रधान मंत्री देश से मुखातिब हो कर 'हिंदी' में भाषण देने की जी तोड़ कोशिश करेंगे. राष्ट्रीय पति महोदया कुछ एक अवार्ड-रिवार्ड बाँट कर घर चली जायेंगी. कल्बों में 'इंडीपेंडेंस डे मिक्स' बजेगा. मेरे देश की धरती सोना उगले के रीमिक्स वर्जन पर जाम छलकेंगे लोग नाचेंगे गायेंगे.
आज़ादी एक कोने में खड़ी ये सब तकती रहेगी. रात गए लौटते वक़्त कुछ झोपड़ों को देखेगी. कुछ गेर कानूनी बस्तियों की तरफ नज़र दौडाएगी. फ्लाय -ओवर के नीचे सोये अधनगे बच्चों को देखेगी. सड़क किनारे लेटे कुछ भिकारियों के साथ सो रहे आवारा कुत्तों से डरेगी.
किसी खेत के पास से गुजरेगी तो लहलहाती फसलों को निहारेगी पर तभी खाट पर लेटे किसान के पिचके पेट और उभरी हड्डियों पर नज़र पड़ेगी. बाढ़ पीड़ित इलाकों के पास से गुजरेगी तो आँख कान बंद कर लेगी. राजघाट के पास से जाते हुए कुछ पल को रुकेगी. खुद को टटोलेगी. parliament स्ट्रीट की साफ़ शफ्फाक सड़कों पर चलते हुए एक तंज़िया नज़र इंडिया गेट पर डालेगी.
मॉल्स में ब्रांडेड कपड़ों पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 50 % ऑफ का पोस्टर दिखेगा. शो रूम्स में वाशिंग मशीन, फ्रिज, टीवी, फर्नीचर इन्देपें डेंस स्कीम के साथ मिलेंगे. बाज़ार में कपडे धोने वाला ब्रुश भी तीन रंगों का होगा जब कोई कहेगा "अरे भैया कोई और रंग नहीं है?" तो दुकानदार कहेगा 'मेडमजी स्वतंत्रता दिवस करीब है तो यही ट्रेंड में है"
कुछ बुजुर्गों के बीच चल रही बहस सुनते हुए वहीँ खड़ी हो जायेगी. "अजी हमने आज़ादी के लिए इतनी कुर्बानियां दी तब जा कर मिली है, ये नौजवान पीढ़ी क्या जाने गुलामी क्या होती है" तभी भेड़ बकरियों की तरह कॉल सेंटरों की केब में बैठे नौजवान खुद को तसल्ली देते सुनाई देंगे "ड्यूटी-अवर्स १० घंटे है लेकिन १० हज़ार महिना भी तो मिलता है" कहीं से कोई जोश से कहेगा "हमें बोलने की आज़ादी है, अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी है" तो प्रतिबंधित किताबें, कला-कृत्यां और पेंटिंग्स मुह चिढाने लगेंगी. कोई फिर विश्वास से बोलेगा "हम पर कोई पहरा नहीं है, हम अपने हिसाब से जी सकते हैं" ये सुन आज़ादी को फिर ढाढस बंधेगी लेकिन वैसे ही असम, कश्मीर, छत्तीसगढ़ से रोते बिलकते बच्चों की चीख सुनाई देने लगेगी. एक बार फिर कोई बोलेगा "राईट तू इन्फोर्मेशन " तभी कॉमन वेल्थ की कान चीरती हंसी आज़ादी को होश में ले आएगी. जैसे जैसे रात ढलेगी आज़ादी के जोश की तरह वो खुद भी अगले साल तक के लिए सो जाएगी.