Friday 31 December 2010

हिप-हॉप पर हाय हाय

वैसे तो हिप-हॉप जेनरेशन से लोगों को ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं. बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं की देश का भविष्य नरक में है क्यूंकि वो एक ऐसी पीढ़ी के हाथों में है जिसके बायें बाजू पर बड़ा सा टेटू है और दायें हाथ में अंग्रेजी गानों से भरा आई पोड. शिकायत ये भी है की आज की जेनरेशन बोले तो 'हिप-हॉप पीढ़ी' बस पार्टियाँ करने में और सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर चेटिंग करने में व्यस्त है. नाराज़गी के अंबार की तरफ नज़र दौडाएं तो ऐसी अनगिनत उलझने दिख जायेंगी जो बड़े बुजुर्गों को परेशान किये हुए है.

चारपाई पर बैठे एक अंकल हुक्का गुडगुडाते हुए कहते हैं 'आज की पीढ़ी नहीं जानती की संस्कृति किसे कहते हैं'
सच है तभी तो आज की कथित बिगड़ी जेनरेशन मंदिर में हाथ भी जोड़ लेती है और गुरूद्वारे में माथा भी टेक लेती है, दोस्तों के साथ चर्च जा कर मोमबत्ती जलाने में भीं इस जेनरेशन को कोई आपत्ति नज़र नहीं आती. साथ ही मज़ारों पर जा कर ख्वाहिशों के धागे भी बाँध लेती है. उनकी भगवान एक है वाली फिलोसफी किसी को अच्छी नहीं लगती. आज के बच्चे यारी दोस्ती को इतनी एहमियत देते हैं की धर्म और जाती जैसे ढकोसले उनके लिए मायने नहीं रखते. माता पिता कितना भी समझाएं ' वो छोटी ज़ात का है उसके साथ मत रहा करो' या 'वो अपने धर्म का नहीं है उससे दोस्ती मत बढाओ' ये जुमले आज के बच्चों पर असर नहीं करते. एक वक़्त था जब बच्चे माँ-बाप की इस बात को गाँठ बाँध लेते थे की 'दोस्ती हमेशा बराबरी में होती है' मगर आज की बदनाम पीढ़ी के दोस्तों की फेहरिस्त में हर क्लास और सोसाइटी के युवा शामिल होते हैं.
कौन बिगड़ रहा है इसका फैसला किस बात से होता है. हम कितनी बार बड़ों के पैर छूते हैं या इस बात से की हम किसी बुज़ुर्ग महिला को बस में सीट देते हैं, किसी नेत्रहीन का हाथ पकड़ कर रास्ता पार करवाने में मदद करते हैं. हिप-हॉप जेनरेशन की कौन सी बात सबसे नागवार गुज़रती है. शायद अपनी जिद पर अड़ जाना या शायद मस्त रहना. क्या खुश रहना ग़लत है, बेवजह हँसना ग़लत है या अपनी सोच को साबित करने की ललक ग़लत है ? आज बच्चे पंद्रह साल की उम्र में ही तय कर लेते हैं की उन्हें क्या करना ही, उन्हें ज़िन्दगी से क्या चाहिए. इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी ने आज के युवाओं को सब कुछ एक साथ संभालना सिखा दिया है. दौड़ इतनी तेज़ है की सब भाग-भाग के हकलान हो रहे हैं, रुकने का वक़्त नहीं है, नब्बे प्रतिशत नंबर लाने का प्रेशर भी सर पर सवार है इस पर भी ये हिप-हॉप गेनरेशन वक़्त निकालती है अपने लिए, सड़कों पर मटरगश्ती करने के लिए, सिनेमा हॉल में सीटियाँ बजाने के लिए और तो और बेधड़क ऊँची आवाज़ में गाने बजाने के लिए.

मुंह में पान चबा रहे एक अंकल ने सड़क किनारे पीक थूकते हुए पेशानी पर हाथ रखते हुए कहा ' नौजवान पीढ़ी ज़िम्मेदार नहीं हैं' माना आज की जेनरेशन का नारा है 'जागो रे' माना की आज के युवा वोटिंग को एहमियत देते हैं, माना की आज के युवा अपने स्कूल-कॉलेजों में सोशल इशुज़ पर सेमीनार और डिबेट प्रोग्रामस आयोजित करते हैं, माना की आज के युवा गेर सरकारी संस्थाओं से जुड़ कर ख़ामोशी से कोई हल्ला मचाये बिना काम करते हैं, पर इससे क्या होगा.

टीवी के सामने बैठे चाचा जी हेलेन का 'पिया तू अब तो आजा' देखते हुए कहते हैं आज कल बच्चे सिर्फ नाच गाने की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, पर शायद चाचाजी ने इस बात को जानने की ज़हमत नहीं उठाई की जिन म्यूजिक चेनल्स पर कल तक सिर्फ अंग्रेजी गाने चलते थे और जिन पर हिंदी भाषा में एक लाइन बोलना भी शर्म की बात समझा जाता था आज उसके होस्ट्स हिंदी क्यूँ बड़बड़ाते हैं. म्यूजिक चेनल्स जो दस साल पहले लव प्रोब्लेम्स सोल्व करने और दूसरों को बकरा बनाने का काम करते थे आज ड्रग्स से बचने, ट्रेफिक नियमों का पालन करने और बिजली-पानी बचाने का सन्देश क्यूँ देते हैं. क्या सही में हमारी यंग जेनरेशन के बदलने से कोई ख़ास नुक्सान हुआ है ?

यंग जेनरेशन का तो मतलब ही जोश होता है. तो जाहिर है जोश तेज-तर्रार होगा, कभी-कभार आपे से बाहर भी हो सकता है. फिर आज ही क्यूं ये तेजी तो आज से बीस साल पहले के युवाओं ने भी महसूस की होगी और उन्हें भी रास्ता भटकने के ताने सुनने ही पड़े होंगे. घर की ज़मींदारी और पिता की दुकान पर बैठने की जगह खुद अपना काम शुरू करने से लेकर सरकारी नौकरी के लिए कदम बढ़ाना, पचीस-तीस साल पहले युवा पीढी के ठोस कदम थे. और अगर बात की जाए साठ-सत्तर बरस पहले की तो उस वक्त युवा पीढी ने अंग्रेजों की सत्ता को स्वीकार करने की जगह अपनी पहचान के लिए हथियार उठाएँ थे. यंग जेनरेशन बदनाम थी, बदनाम रहेगी.

हिप-हॉप जेनरेशन के बायें हाथ पर टेटू और दायें में अंग्रेजी गानों से भरा आई पोड ज़रूर है पर दिल और दिमाग में एक जज्बा है, नेक नियत है, ओब्सर्वेशन पॉवर है जिसे तानो की नहीं तालियों की ज़रुरत है.

7 comments:

  1. jawab nhi fauziya tumhara...
    maza aa gaya padhke...
    jis mastmaula andaz me ye lekh likha gaya ha i wish pdne wale bhi use usi andaz me padhe...

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  2. विचार के स्तर पर मैंने ख़ुदको हमेशा नया ही पाया। नयी पीढ़ी का धर्म के प्रति अतार्किक झुकाव और पैसे के लिए कुछ भी करना जैसी बातें ज़रुर उलझन में डालतीं हैं, बाक़ी सब आशा जगाता है।

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  3. sanjay jee kee baaton se bahut had tak sahmat hoon... lekin fauziya dwara sujhaaye baakee tathya hauslaa badhaate hain.. shukriyaa

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  4. विचार अच्छे हैं, पर हिंदी कमजोर है. प्रयास सराहनीय है. नववर्ष शुभ हो.

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  5. या तो ऊर्जा को एक सार्थक प्रवाह दे दें या उत्श्रंखल बहने दें। आपके कर्तव्यों में आपके अधिकार छिपे हैं।

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  6. बहुत दिनों बाद कोई अपनी सी सोच वाला मिला. आपके बाकी पोस्‍ट्स धीरे धीरे पढूंगा। बेहतरीन लेखनी को नमन।

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  7. बहुत दिनों बाद कोई अपनी सी सोच वाला मिला. आपके बाकी पोस्‍ट्स धीरे धीरे पढूंगा। बेहतरीन लेखनी को नमन।

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