
एशियाई देशों में औरत की विर्जिनिटी को उसकी इज्ज़त कहा जाता है शायद इसीलिए अगर किसी लड़की का कोई वेह्शी बलात्कार करता है तो वो लड़की आत्महत्या कर लेती है. बलात्कार के बाद आत्महत्या करना कोई बड़ी बात नहीं है. और अगर कोई लड़की ऐसा ना भी चाहे तो समाज उस पर ऐसी ऐसी ताना कसी करता है जैसे उसने खुद को थाली में परोस कर उस भेडिये के आगे रखा हो. अगर आप बेख़ौफ़ हैं और अपने शारीरिक संबधों को सामाजिक स्तर पर स्वीकार करती हैं तो आप वैश्या हैं. वहीँ कोई मर्द अपने तजुर्बों को शान के साथ पेश कर के अपनी मर्दानगी साबित करता है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक फैसला सुनाते वक़्त बयान दिया था की अगर कोई पीड़ित महिला अपने रेपिस्ट से शादी करना चाहती है तो अपराधी को उससे शादी करनी होगी. कुल मिला कर मतलब यही की तुम्हारी इज्ज़त लुट चुकी अब तुम्हे कौन अपनाएगा, बेहतर है अब उसी जंगली जानवर को अपना लो जिसने तुम्हे शरीरिक और मानसिक यातना दी।
औरत की पवित्रता तो हर बात पर खंडित हो जाती है. अगर आप की हंसी की गूँज किसी गैर मर्द को सुनाई दे गयी या आप पर किसी मर्द की नज़र पड़ गयी तो आप अपवित्र हो गयी. अब अगर सजदे में झुकना है तो फिर से खुद को पानी की छींटों से पवित्र कीजिये. किसी की गन्दी नज़रों ने आपको छुआ आप नापाक हो गयी लेकिन वो अब भी धड़ल्ले से सीना चौड़ा करके सजदे में झुकेगा और मज़हब की दुहाई देगा. हर महीने औरत का रक्त स्वच्छ होता है, शरीर की सारी गन्दगी बह जाती है. उस Hygienic Process को अपवित्र बताते हुए हर कथित पवित्र काम से दूर रखा जाता है. इस दुनिया में एक नई ज़िन्दगी लाने के बाद, इस धरती को एक नई सांस देने के बाद वो चालीस दिनों तक नापाक रहती है. जबकि उस दौर में औरत सबसे ज्यादा पाक होती है क्यूंकि वो अपनी जान से एक नई जान वुजूद में लाती है. अपने जीवन से एक नया जीवन पैदा करने के बाद उसे सबसे अलग थलग कर बंद कमरे में डाल दिया जाता है. मज़े की बात तो ये है की जो समाज और जो धार्मिक ग्रन्थ औरत को सबसे ज्यादा नीचा दिखाते हैं. वही समाज और उन्ही ग्रंथों को औरत सर आँखों पर रखती है. हर महीने दर्द की आग में जल कर वो सोना बनती है. इस सोने को ज़रूरत पड़ने पर धारण तो किया जाता है लेकिन फिर नापाक करार देकर अछूत भी बना दिया जाता है. नारी नरक का द्वार है,ये हमेशा गलत रास्ते पर चलने को उकसाती है, नारी एक खेती के समान है जिसे अपनी मर्ज़ी से काटा और फिर बोया जा सकता है, नारी को मर्द की पसली से बनाया गया है. धार्मिक ग्रंथों ने औरत को जिस कुँए में धकेला है वहां से वापस आने के लिए आज की पीढ़ी सीढियां ढूंढ रही है, ऐसे में इस तरह की कौमार्य वापस लाने वाली सर्जरी विज्ञान को तो आगे पहुंचा रही है पर औरत के आत्मसम्मान को कहीं नीचे ढकेल रही है.