Sunday 26 September 2010

बरसात की उलझन

ज़मीन पर आवाज़ गूंजी "यार ये बारिश क्यों होती है? बरसात कब खत्म होगी? ये बरसात आती ही क्यों है? उफ़्फ, बरसात इस शहर के लायक है ही नहीं...।" ये चुभती हुई आवाजें बरसात के कानो तक पहुंची। बरसात ने चेहरे से बादल हटाये और मचलते हुए फिर थिरकने लगी. एक आवाज़ फिर गूंजी- "इस बारिश ने तो नाक में दम कर दिया है, मुझे बरसात से नफरत है...।" इस बार बरसात चौंकते हुए रुकी, थिरकन थामते हुए उसने नीचे देखा। दूर दूर तक गाड़ियां। हज़ारों गाड़ियां। लाखों लोग। सब परेशान हाल। ट्रैफिक सिग्नल पर बेतहाशा छोटी-बड़ी गाड़ियों का जमघट। सिग्नल रुका हुआ और लोग बरसात की मेहरबानी के बावजूद दुखी। ट्रैफिक जाम की वजह से हर तरफ लोग चिढ़े हुए थे, गुस्से में थे। बरसात ने तय किया कि ट्रैफिक जाम से बात करके मामला सुलझाया जाए और उसने आगे बढ़ कर ट्रैफिक जाम का दरवाज़ा खटखटाया.

बेतहाशा शोर की वजह से दरवाज़ा देर से खुला। ट्रैफिक चौखट पर खड़ा नींद में बेसुध लग रहा था। बरसात चिढ कर बोली- 'एक बात बताओ, तुम मेरे आने पर ठहर क्यों जाते हो? क्यों तुम्हारे आसपास इतना जमघट लग जाता है? बताओ क्या तुम सही रफ़्तार से क़दम नहीं बढ़ा सकते? रुकने का क्या मतलब है? तुम्हारे आलस की वजह से मुझसे सब खफा हो जाते हैं? कोई मेरे आने पर बेफिक्री से भीगने नहीं उतरता। तुम्हारी वजह से कोई घर जल्दी नहीं पहुंचता और घर बैठी बीवी मेरे आने की ख़ुशी में पकौड़े नहीं तलती, बल्कि चिंता में खिड़की पर टंगी रहती है।' यह सुन कर ट्रैफिक जाम अपनी बाहें फैलाता हुआ अंगडाई लेते हुए बोला- 'देखो बरसात, इसमें मेरी कोई गलती नहीं। मैं तो जहाँ मौका मिलता है, वहीं फ़ैल जाता हूँ। अब सडकें पतली हैं, हर जगह पानी है, गढ्ढा है तो ऐसे में मैं क्या करूं। मुझे बिखरना पसंद है मैं तो मौका मिलते ही बिखर जाऊंगा। तुम्हे दिक्कत है तो सड़क से बात करो। उससे कहो कि वह साफ-सुथरे तरीके से बिछी रहे।"
इतना कह कर ट्रैफिक सिग्नल ने दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया। बरसात ने फिर एक बार बादलो की टोह से नीचे देखा। पतली-पतली सड़कों पर दूर तक पानी भरा हुआ था। कई जगहों पर लोग कपड़ों को संभाले पानी में से गुज़र रहे थे. बरसात ने यह देख कर अपनी जुल्फें समेट लीं। पर इस बार आंखों से आंसू छलछला आए और बूंदें ज़मीन को छूने चली गईं। भीगी जुल्फों से न सही, आंखों से सही, बारिश लगातार जारी रही। अब बरसात से रहा नही गया। काफी मशक्क़त के बाद उसने सड़क का घर ढूंढ़ निकाला।

बरसात अपनी मायूस आंखों के साथ सडक के द्वारे जा पहुंची। थोड़ी देर दरवाज़ा खटखटाने पर भी जब आवाज़ नहीं आई तो बरसात ने झांक कर देखा। सड़क आईने के सामने बैठी खुद को देख रही थी। यह देख बरसात को गुस्सा आया और वह अन्दर आकर बोली- 'अच्छा, तुम यहां खुद को निहार रही हो और मैं तुम्हारी वजह से कितना कुछ सह रही हूं। एक वक़्त था जब लोग मेरे आने की दुआएं मांगते थे। मुझे याद करके खुश होते थे। मगर तुमने सब बिगाड़ दिया। तुम्हारे पल-पल बदलते रूप ने लोगों को मेरे खिलाफ कर दिया है। बरसात ने तड़पते हुए सड़क का आंचल पकड़ लिया और कहा- "क्यों तुम मुझे बदनाम कर रही हो? तुम मेरी छुअन बर्दाश्त नहीं कर पाती। मेरे आते ही तुम उधड़ने लगती हो, घुटने लगती हो।"
सड़क ने खामोशी से आईने की ओर इशारा किया और पूछा- "क्या तुम बूढ़े होने का दर्द समझती हो?" बरसात ने सवालिया नज़रों से सड़क की तरफ देखते हुए 'नहीं' का इशारा किया। सडक उठ कर आईने के सामने से हट गयी और अपना आंचल बरसात के हाथों से खींचा। बरसात ने गौर किया कि सड़क का आंचल जगह-जगह से फटा हुआ है। बरसात ने महसूस किया की सड़क के आंचल से बदबू आ रही है। इतनी कि बरसात से बर्दाश्त नहीं हुई और वह आंचल छोड़ कर खड़ी हो गयी। सड़क ने अपना आंचल फिर से ओढ़ लिया और बोली- "बरसात, मैं अब बूढी हो चुकी हूं। कई साल से मुझ पर खूब मेकअप किया जा रहा है। देखो, पानी लगने से मेकअप तो उतरता ही है। असल में मेरा मेकअप वाटर रेजिस्टेंट होता है। वाटर प्रूफ मेकअप कभी लगाया ही नहीं गया। इसलिए मेरा रंग तुम्हारे आते ही बदल जाता है। लोग मुझसे डरने लगते है। मेरे चेहरे के गड्ढों को देख कर मज़ाक उड़ाते हैं। ऐसे में मुझे गुस्सा आ जाता है तो मैं भी अपने गड्ढों में पानी जमा होने देती हूं और आते-जाते लोगों को इसमें गिरने का मज़ा चखाती हूं। अगर तुम्हें इतनी ही तकलीफ है तो जाकर "डेवलपमेंट" से बात करो। उसी की वजह से मेरा ये हश्र हुआ है। मुझे तोडा-मरोड़ा और नोचा जा रहा है।" इतना कह कर सड़क वापस आईने के सामने बैठ गयी।
बरसात जाने का इशारा समझ कर बाहर आ गई। उसने सुना था "डेवलपमेंट" ऊंची इमारतों में रहती है। सो, गरीबी-मुफ़लिसी के झोपड़ों से गुजरते हुए मध्यम वर्ग के डोलते आशियाने से होते हुए वह "डेवलपमेंट" की चमकदार ऊंची इमारत के सामने जा पहुंची।

पहले तो बरसात ने बाहर से आवाज लगाई। फिर कुछ देर बेल बजाई और जब गुस्से में दरवाजा तोड़ने जा रही थी तो "डेवलपमेंट" बाहर आई। बेहद खूबसूरत चमकदार आंखें, चेरहे पर इतनी कशिश थी कि बरसात इंसान की दीवानी की वजह समझ गई। बरसात ने फिर अपना दुखड़ा होना शुरू किया। डेवलपमेंट चुपचाप सुनती रही। जब बरसात रोते-रोते चुप हो गई तो "डेवलपमेंट" ने बरसात का हाथ पकड़ कर इमारत के अंदर खींच लिया। अंदर पहुंचते ही बरसात खामोश हो गई। उसकी आंखें भौंचक्की-सी हो गईं। उसने देखा कि इमारत अंदर से खोखली है, जो बाहर से दिखता है वह अंदर से कुछ और है। चमक के अंदर खालीपन है। बरसात घबरा कर चिल्लाई- "...ये क्या है? तुम... तुम तो झूठ हो...।"
"डेवलपमेंट" हंसी औऱ बरसात को दरवाजे के बाहर धक्का देते हुए बोली- "मेरे नाम पर क्या-क्या नहीं होता...। लेकिन दरअसल मैं वह हूं, जो होकर भी नहीं है...।"
बरसात डर कर बादलों में जा छुपी और उसने फिर कभी किसी से बात नहीं करने की कसम खा ली।