Strength– धुन और धार. संगीत किसी भी फ़िल्म का साथी होता है अगर अच्छा हो तो सफ़र को खुशनुमा बनाता है वरना अच्छे खासे रास्ते को भी झिलाऊ कर देता है. विशाल की पहचान फ़िल्म के हर गीत पर है यहां तक की रॉक गीत ’दिल-दिल है’ पर भी. विशाल संगीत से खेलना जानते हैं वो आपके जज़्बातों को ’डार्लिंग’ पर नचायेंगे और ’बेकरां’ पर रुमानियत से भर देंगे. कहानी चाहे बेहद सुलझी हुई हो या फिर घुमावदार, मायने रखता है उसका treatment. चौंकाने वाली शुरुआत के बाद अगर दर्शक अगले २० मिनट को माफ़ कर सकें तो ’सात खून माफ़’ धार पकड़ लेती है. जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं धार तेज़ होती रहती है. दर्शक अपने अंदाज़े लगाता रहेगा और कहानी कभी उसकी समझ के अनुसार और कभी समझ के विपरीत चलेगी. ’स्क्रीनप्ले’ अपनी नोक के साथ चुभन गहरी करता रहेगा.
Loopholes-
1. Expectations - बॉलीवुड में hype create की जाती है, फ़िल्मस्टार फ़िल्म का नाम दर्शक की ज़ुबान पर चढ़ाने के लिये कभी मॉल में लोगों के बाल काटते हैं तो कभी प्रेम की अफ़वाहें उड़ाते हैं. मगर ज़रूरी नहीं कि हर बार ये उत्तेजना फ़ायदेमंद ही साबित हो जैसा कि ’सात खून माफ़’ के साथ हुआ है. विशाल की पिछली फ़िल्में और उनसे जुड़ी कामयाबी ने ’सात खून माफ़’ को रिलीज़ से पहले ही उम्मीदों की नाव पर चढ़ा दिया. ऐसे में ज़रा भी कम-ज़्यादा हुआ नहीं कि ’बैलेंस’ बिगड़ा.
2. Women-oriented - जिसे भारतीय दर्शक पैसा खर्च कर के नहीं देखना चाहता
3. Pace – कहीं कहीं धीला पड़ता हुआ
4. World Cup – क्रिकेट वर्ल्ड कप शुरु होने को है और आप इस वक्त फ़िल्म रिलीज़ कर रहे हैं
5. Black humour – तथाकहित मल्टीप्लेक्स दर्शक भी मुश्किल से समझता है
6. Make-up – 20 साल की या 50 साल की प्रियंका में कोई खास फ़र्क नहीं. बस विग बदलने और make-up हटाने से काम नहीं चलता
7. Climax – इतने बवाल के बाद इतना फ़िल्मी, मज़ा नहीं आया
Hit Or Flop - अगर फ़िल्म के ’हिट’ होने का मतलब अपना पैसा recover करके थोड़ी बहुत कमाई करना होता है तो ’हां’ ये चलेगी. पर अगर ’हिट’ का मतलब distributers को मालामाल करना और बॉक्स-ऑफ़िस कलेक्शन में कोई रिकोर्ड बनाना होता है तो ’सात खून माफ़’ नहीं चलने वाली.
Story- बॉलीवुड में फ़िलहाल प्रियंका ही ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्हें लीड में रख कर कहानी बुनी जा सकती है. कमाल की एक्टिंग, डायलॉग डिलीवरी और स्क्रीन प्रेज़ेन्स. विवान शाह का narration, उनकी आवाज़, उनका अभिनय नसीरुदीन शाह की विरासत को आगे बढा़ते हुए. एक लड़की जिसका नाम है ’सुसेना एना-मैरी जोहेनस’, जितना लंबा नाम ज़िन्दगी जीने की उमंग उससे कहीं लंबी. अपने नौकरों के साथ रहती है बल्कि वही उसका परिवार भी हैं. वो बड़ा दिल रखती है, हिम्मत वाली है और प्यार में यकीन करती है. उसे प्यार में धोखा मिलता है, शक्की पति से वास्ता पड़ता है, बेरहम साथी के जड़े थप्प्ड़ चहरे पर निशान देते हैं पर वो हर बार उठती है और एक नये रिश्ते को मौका देती है. वो किसी अपराध-बोध में नहीं जीती बल्कि अपनी नाकामयाब शादियों और उनके परिणामों से मज़बूत होती जाती है. वो पागल नहीं है उसकी परेशानी ये है कि वो ज़ुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकती. जो उसकी ज़िन्दगी को नर्क बनाने की ओर ले जायेगा वो उसे खत्म कर देगी. उसके एक नौकर के अनुसार ’मदाम रास्ता नहीं बदलतीं वो कुत्तों को मार देती हैं’. विशाल भारद्वाज की फ़िल्में आपके ज़हन को भारी कर देती हैं दिल में खलिश पैदा करती हैं, ’सात खून माफ़’ इस कसौटी पर तो पूरी उतरती है. एक और चीज़ जो विशाल के सिनेमा की पहचान है वो है ’नारीवाद’. यहां वो भी भरपूर है. छोटे से किरदार का भी कमाल का अभिनय हो या फिर मज़ेदार डीटेलिंग जैसे टीवी पर चलती खबर के तहत time-frame समझाना. विशाल भारद्वाज की ’सात खून माफ़’ भले ही ’मक्बूल’ या ’ओंकारा’ जैसी ना हों पर ये बेशक ’विशाल छाप’ है.
"विशाल भारद्वाज की फ़िल्मों को सराहने वाले ’सात खून माफ़’ ना देखें तो नाइंसाफ़ी हो."
ReplyDeleteऔर कुछ कहने की जरुरत ही नहीं..
बहुत बढ़िया समीक्षा.
ReplyDeleteआपका स्क्रीन प्ले भी बहुत बढ़िया रहा.
तमाम कमियां गिनवाते हुए भी आपने पाठकों की दिलचस्पी कम नहीं होने दी.
एक बार तो जरूर देखनी पड़ेगी.
सलाम.
thaksss
ReplyDeletedekhte he
देखना पड़ेगा।
ReplyDeleteआपकी समीक्षा भी विशाल ठाकुर स्टाइल में है।
ReplyDeleteलेकिन आपकी नजर पारखी है..इसमें कोई शक नहीं।
बेहतरीन समीक्षा... यह फिल्म देखने वाला हर गंभीर दर्शक आपसे इत्तेफाक रखेगा।
आशीष मिश्र