Thursday, 26 January 2012

हम धर्मनिरपेक्ष नहीं…

तो आखिरकार ना सलमान रुश्दी हिन्दुस्तान आ सके और ना ही उन्हें वीडिओ कॉन्फ़रेन्स के दौरान देखा-सुना जा सका. जीत मिली तलवार हाथ में लिये और जायमाज़ कंधे पर टांगे हुए जाहिलों को. सफ़ेद कुर्ता पहने और लाल बत्ती की गाड़ी में बठे मतलब-परस्तों को, और सिरदर्द गया खाकी वाले टेबल तोड़ते कामचोरों का. तो फिर नुकसान किसका हुआ, जब भी कोई लड़ाई, जंग या बहस होती है. तो कोई ना कोई तो हारता है, किसी ना किसी का तो नुकसान होता ही है. हां, तो घाटे में गये फिर हर बार की तरह हम, हम लोग.

सलमान रुश्दी का हिन्दुस्तान ना आना हमारी हार है. उस देश की, उस जनता की जो खुद को उदार कहती है. उस शासन पर लानत है जो एक लेखक को कुछ घंटों के लिए भी सुरक्षा नहीं दिला सकता. राजस्थान पुलिस यह कह कर अपना पल्ला झाड़ती रही कि रुश्दी की जान को खतरा है, उनके नाम की सुपारी दी गयी है. पुलिस इस लिये है कि दंबगों को काबू में करके तयशुदा कार्यक्रम चलता रहने में मदद करे या इसलिये कि गुंडों की धमकी के बारे में जानकारी देकर आपको डर कर घर बैठने के लिए कहे. जो सोचते हैं, फ़र्क नहीं पड़ता कोई रुश्दी आये या ना आये. या समझते हैं, क्या हुआ जो ‘इन्टरनेट’ के खुले मंच पर धर्म का बैनर हाथ में लिए, जनसमूह की आवाज़ को दबाने की चाल चली जा रही है. वो ये नहीं जानते, साथ खड़े शख्स का कटता गला देख कर चुप रहोगे तो तुम भी मरोगे.

अगर हिन्दुस्तान धर्मनिरपेक्ष देश है तो फिर जब यहां धार्मिक व्यक्ति को पूजा-पाठ करने, मंदिर-मस्जिद जाने, अज़ान देने, घंटी बजाने, ताज़िया या मुर्तियां निकाल कर सड़क जाम करने की अज़ादी है. तो एक नास्तिक व्यक्ति को अपने विचार रखने की आज़ादी क्युं नहीं होनी चाहिए. अगर कोई मज़हब नहीं मानता और फिर भी हर रोज़ मन्दिर की घंटियों की आवाज़ उसके कान में जाती है या सुबह-सुबह ना चाहते हुए भी उसे अज़ान सुननी पड़ती है. तब वो नहीं चिल्लाता कि मेरी भावनाएं आहत हो रही हैं, तो फिर मज़हब वाले ही क्युं इतनी छुई-मुई हैं. इस सहनशील देश में अगर किसी ने आपके धार्मिक ग्रंथ के बारे में कुछ कह दिया तो आपने दंगों की धमकी दे डाली, किसी ने आपके पूजनीय देवता की पैंटिंग बना दी तो आपने तलवारें निकाल लीं. किसी ने कहा ये मज़हब बेरहम है आपने इस मजाल पर उसकी गरदन काट ली. जैसे ही किसी ने चूं तक की आपने उसके खिलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया. और फिर फ़तवा जारी करने के बाद भी चैन नहीं. जब आप सलमान रुश्दी के खिलाफ़ फ़तवा जारी कर ही चुके हैं तो आपका उनसे कोई मतलब तो रहा नहीं वो कहीं भी आये जायें, कुछ भी कहें, कुछ भी करें. अब वो आप के मज़हब के तो रहे नहीं जो उनके कुछ ‘गलत’ कह देने से आपकी नाक कट जाएगी. फिर भी देवबंद जैसी दकियानूसी सोच वाली संस्था इस मुल्क में बड़ी शान से अपनी मनमानी करती है. अगर कोई मज़हब को नहीं मानता तो क्या उसे इस मुल्क में अपनी मर्ज़ी से जीने का, सोचने का, रहने का अधिकार नहीं है. किसी धार्मिक ग्रंथ के खिलाफ़ बोलने से या किसी मुर्ति या पैग़म्बर की कपड़ों या बिना कपड़ों की तस्वीर बना देने से हज़ारों मुक़दमे दर्ज हो जाते हैं. यहां तक कि धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुंची कह कर हमारे कोर्ट फ़ैसले भी सुना देते है.

दुनिया भर में कभी किसी काफ़िर ने ऐसा कोई मुक़दमा नहीं किया कि फ़लां ग्रंथ पर प्रतिबंध लगाओ उसमें लिखा है काफ़िरों को आग में जलाया जायेगा. ना ही कभी ऐसा हुआ, किसी नास्तिक ने एफ़.आई.आर की हो कि होली में मुझ पर रंग डाला गया या दिवाली, क्रिस्मस या ईद की पार्टी के नाम पर मुझसे ऑफ़िस, कॉलेज या स्कूल में ’कम्पलसरी डोनेशन’ वसूला गया. अगर एक धार्मिक व्यक्ति अपने दिल की बात कह सकता है तो एक नास्तिक का भी शब्दों पर उतना ही अधिकार है. हमारा मुल्क किताबों पर रोक लगाने में तो महारथी हो ही चुका है. लेखकों, आर्टिस्टों को बेइज़्ज़त करने में भी हमने विदेशों में खूब नाम कमाया है, अब हममें इतनी भी सहनशीलता नहीं बची कि किसी लेखक को कम से कम सुन सकें. उस सरकार का क्या अर्थ जो अपने ‘पी.आई.ओ होल्डर’ लेखक को सुरक्षा के साथ एक आयोजन का हिस्सा न बनने दे सके. ऐसी सरकार या पुलिस पर हमें भरोसा क्युं होना चाहिए जो देवबंद नामी संस्था से डर जाए. ये सरकार कटपुतली है जो सही-गलत का फ़ैसला नहीं कर सकती. यह एक विशेष धार्मिक संस्था को इतनी शय देती है कि वो संस्था किसी के कानूनी अधिकार को छीन ले. और फिर यही सरकार धर्मनिरपेक्षता को अपनी ‘यू.एस.पी’ भी कहती है.

मुम्बई पुलिस के सूत्रों की खबर से ये बात सामने आयी है कि राजस्थान पुलिस ने सलमान रुश्दी को झूठ कह कर आने से रोका. हालांकि राज्य सरकार अपने इस दावे पर कि रुश्दी की जान को खतरा था अभी भी अड़ी हुई है. अगर ये बात सही है तब भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पुलिस रुश्दी को सुरक्षा देने की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते. क्रिकेटरों और फ़िल्मी सितारों को आये दिन जान से मारने की धमकी मिलती रहती है. ऐसे में इन सिलेब्रिटीज़ को ’ज़ेड’ सुरक्षा उपलब्द कराने में ग़ज़ब की तेज़ी दिखाई जाती है. उन्हें स्टेडियम में जाने या शूटिंग करने से रोका नहीं जाता है.

ये वो मुल्क है जो खुद को कलात्मक समझता है, पर अपने कैनवास के हीरो हुसैन को इज़्ज़त ना दे सका. ये वो मुल्क है जो कहता है हमारा ह्रदय विशाल है लेकिन पड़ोसी मुल्क की शरणार्थी लेखिका को रहने के लिये थोड़ी ज़मीन ना दे सका. ये वही मुल्क है जहां गुरुदावारे के तहखानों में कटारें, मन्दिर के आहाते में लठबाज़ और मस्जिद के कुतबों में नफ़रत की बू मिलती है. क्या हमें इसी हिन्दुस्तान पर गर्व है. क्या हम आने वाली पुश्तों को यही मुल्क सौंपना चाहते हैं.

14 comments:

  1. आपका आक्रोश समझ में आता है, लेकिन अफ़सोस कि आज देश में हर ओर सहिष्णुता दिखाई पड़ रही है। लोग दिद को दिन और रात को रात कहने से भी बचते हैं।
    हाँ, प्रशासन पंगु न होता तो हमारा इतना पतन नहीं हुआ होता।
    गणतंत्र दिवस की बधाई!

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  2. वोटों के लिए टुकड़े भी करवा सकते हैं किसी के भी.

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  3. धर्मनिरपेक्षता और\या धर्म सापेक्षता हमेशा से ही विवाद का विषय रहा है, न हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष देश ही बन पाये हैं और न ही धर्मसापेक्ष।
    ऐसी घटनाओं से उद्वेलना जरूर बढ़ती है, इसमें कोई शक नहीं। जब तक संबंधित पक्षों की पहचान धर्म, जाति, लिंग, वर्ग के आधार पर होती रहेगी, कानून के निष्पक्ष पालन की आशा करना व्यर्थ है।
    बेबाक विचार अच्छे लगे।

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  4. लगे हाथों कल राष्ट्रपति जी का राष्ट्र के नाम सन्देश भी सुन लीजिये. मामला साफ़ है. असहमति की जगह नहीं है... अमेरिका की तर्ज पर यही मानिए की जो हमारे साथ नहीं है वो हमारा विरोधी है, उसकी यहाँ जगह नहीं है.


    अगर धर्मनिरपेक्ष शाहरुख़ के सुपरस्टार और अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति बन जाने से ही मान्य हो तो हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है.

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  5. फौजिया तुम्हारी बातों से सहमत हूँ.
    मगर ये कैसी अभिवक्ति की आजादी है -- जो किताब भारत में कानूनी रूप से प्रतिबंधित है , उसके अंश जानबूझकर उस तथाकथित 'लिटरेचर' फेस्टिवल में चार-चार लेखकों के द्वारा मंच से डंके की चोट पर पढ़े जाएँ. क़ानून को हाथ में लेने की आजादी किसी को नहीं दी जा सकती.( राजस्थान सरकार इसलिए हरकत में आयी)

    रहा सवाल रुश्दी का ... वे दूध के धुले नहीं है... पिछले दस साल से वे ऐसे हंगामें की तलाश में थे. उनका मकसद पूरा हो गया.

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  6. समयानुसार परिभाषायें गढ़ लेना कोई हमसे सीखे...

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  7. इस बहाने आपके द्वारा कही गई बातें लाजवाब हैं...

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  8. भारत में यदि अभिव्याक्ति की स्वतंत्रता न रही होती तो आज हम चार्वाक के नास्तिक दर्शन के बारे में न जान पाते. किन्तु यह अतीत की बात हो चुकी है. किसी भी विचार पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता....प्रतिबंधित विचार उतनी ही तेजी से प्रचारित -प्रसारित होता है. जिन चीज़ों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिये उन पर प्रतिबन्ध लगा पाने में हम बुरी तरह असफल रहे हैं. बस्तर में हो रही नक्सली हिंसा में चीनी हथियार मिलने की पुष्टि हो चुकी है...इस पर प्रतिबन्ध नहीं लग पाता. धर्म निरपेक्षता की आड़ में हम अधार्मिक कृत्यों के अभ्यस्त होते जा रहे हैं. हमारी सरकार धर्मोन्मादियों से डरती है और उन्हें संरक्षण देती है....बहाने कई हैं.

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  9. अच्छा लिखा गया है. प्रतिरोध के स्वर में भी क्रियटिवीटी. काश, सलमान साहब का विरोध कर रहे लोग भी थोड़े लिखाड़ और क्रिएटीव टाईप के होते. पता नहीं इस देश की पुलिस को क्या हो गया है. हालत तो ऐसे बनते जा रहे हैं कि अगर गली का कुत्ता भी किसी राहगीर पे जोड़ से भुंकने लगे तो सरकार और पुलिस कह देगी कि उधर से मत जाइए. कुत्ते हैं. हम आपको सुरक्षा नहीं दे पाएंगे. आखिर में सारा मामला वोट बैंक की तरफ ही मुड़ता दिखता है. जय हो इस देश के राजनैतिक पार्टियों का. जय हो ऐसे गुंडा टाईप विरोधियों का और जय हो इस देश की सुरक्षा एजेंसियों का.

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  10. घंटे घड़ियाल ,या अज़ान की आवाज़ों पर नास्तिकों के विरोध के बाबत कही गई आपकी बात के मद्देनज़र गौरतलब ये है कि दुनिया में नास्तिकों की संख्या बहुत कम है . और उनमें भी सच्चा नास्तिक कौन है ये व्यक्ति विशेष स्वयं ही जानता है . ईश्वर पर आस्था सिर्फ और सिर्फ भय के चलते ही उत्पन्न होती है पर अभय कौन है ये भी कोई खुद ही बेहतर जानता है .
    तो इतने अल्पसंख्यक नास्तिक , विद्रोह भला किस मुँह से करें . और ये भी है कि दुनिया में अक्सर टकराते दो अलग - अलग विश्वास वाले लोग ही हैं क्योंकि उनमें से हर एक ये सिद्ध करना चाहता है कि उसकी आस्था का विषय श्रेष्ठ है.उसके तौर तरीक़े बेहतर हैं . मगर जो इस परिधि से खुद को पूरी तरह बाहर ले जा चुका होता है फिर उसकी बुद्धि इन तुच्छ बातों पर नहीं जाती . वैसे आज की दुनिया में ऐसे विवादित विषय उठाना जिन से समाज की तनिक भी भलाई न हो , मात्र अपने हित साधने के लिए ही होता है फिर चाहे ये काम रुश्दी करें ,हुसैन करें या फिर लाल कृष्ण आडवाणी करें . आप भी ऎसी बातें लिखते समय आत्म निरीक्षण करें , प्रयोजन पर गौर करें तो अच्छा रहेगा. शांति , प्रेम और भाई चारे का स्थान सदैव इस किस्म के साहित्य और कला से ऊपर है .

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  11. सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म एक दूसरे के विलोम है । जब सत्यनिरपेक्षता व न्यायनिरपेक्षता शब्द व्यावहारिक नहीं है तब धर्मनिरपेक्ष शब्द व्यावहारिक कैसे हो सकता है । इसलिए भारत पंथ निरपेक्ष देश है ।

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