भारतीय सिनेमा में हीरो वो होता है जो दस गुन्डों से अकेले लड़ जाए, जो इन्सानियत की मूरत हो और जो कभी गलत न हो. काला रंग बॉलीवुड के ’हीरो’को छू कर भी नहीं गुज़रता. वहीं अभिनेत्री आदर्श पत्नी या प्रेमिका होती है. वो बस कुरबानियां देती है वो नाचने वाली नहीं होती. अगर होती है तो उसे उस शख़्स से प्यार हो जाता है जो उसके कुंवारेपन को विदा करता है. मसलन उमराव जान या अनारकली. यहां तक कि ’नो एन्ट्री’की बिपाशा बसु जैसे किरदारों को भी किसी मजबूरी से जोड़ कर जस्टीफ़ाय किया जाता है. अगर कोई बार डांसर है तो वो बेशक ही बुरी औरत होगी जो चालाकियां करती है और बेचारी सती-सावित्री हिरोइन को सताती है.
फ़िल्म गाइड इन सभी स्टीरिओ टाइप किस्सों और हिस्सों से परे है. यहां वहीदा अपने पति को छोड़ती है, पैरों में घूंघर बांधती है पर किसी मजबूरी के तहत नहीं बल्कि अपने शौक और अपनी कला के लिए. अपने प्रेमी यानि राजू की मदद और प्रोत्साहन से खूब पैसा कमाने के बाद भी वो उसके चरणों की दासी नहीं बनती. बल्कि उलटा वो उससे ऊबने लगती है. राजू को शराब से झूलता और जूए में झूमता देख वो उसे लौटा लाने की कोशिशें नहीं करती. गाइड का राजू शरत चन्द्र का देवदास नहीं है वो अपनी अकड़ का गुलाम नहीं है ना ही उसे इस बात पर गुरूर है कि वो कभी झुकता नहीं. उसकी कमज़ोरियां उस पर हावी नहीं है. वो बहुत ही आम सा शख़्स है अपनी ज़िन्दगी में मौजूद औरत के लिए धोखाधड़ी कर सकता है,अपने यहां काम करने वाले लोगों पर गुस्से में चिल्ला सकता है यहां तक की मुसीबत में डर कर भाग सकता है. राजू की कमज़ोरियां उतनी ही आम या खास हैं जितनी किसी भी ऐसे मध्यवर्गी आदमी की होंगी जिसके पास अचानक से खूब सारा पैसा आ जाए. तो ऐसा क्या है जो देवसाहब की गाइड हिन्दी सिनेमा की क्लासिक है.
जेल, प्रेम, दुनिया और फिर स्वामी. फ़िल्म ’गाइड’ का राजू अहसासों से होता हुआ, पैसे में तैरता हुआ, ताश के पत्तों में भटकता हुआ, प्रेम की डोर को कभी थामता हुआ कभी काटता हुआ इन्सान के अनगिनत रूपों का मेल है बल्कि इन्सान के अन्दर छुपे कई इन्सानों को समेटता हुआ वो सबके जैसा होते हुए भी सबसे अलग है. रोज़ी उर्फ़ नलिनी शादी के बंधन को तोड़ते हुए, खुद की ज़िन्दगी और इच्छाओं के लिए खड़े होते हुए फिर प्रेम में गिरफ़्त होकर कमज़ोर होने वाली मगर प्रेम पर आंखें बंद कर विश्वास ना करने वाली, प्रेमी के शराब और जूए में डूबने से रोने नहीं झल्लाने वाली आम होते हुए भी बेहद खास औरत है.
सच और झूठ से चरित्र का निर्माण नहीं होता, चरित्र का निर्माण इन्सान के उठाए कदमों से होता है. इस एक बात से ही राजू किताबी और फ़िल्मी पुरुष से ऊपर उठ जाता है. वो एक शादीशुदा औरत से प्रेम करता है, उसके सो चुके ख़्वाबों को जगाता है. उससे दूर हो जाने के डर से धोखाधड़ी करता है. पकड़ा जाता है जेल पहुंचता है फिर लौट कर नहीं आता, चला जाता है एक ऐसी दुनिया में जहां लोग उसे महात्मा मानते हैं.वहां राजू मन्दिर में रहता है, गांव की तरक्क़ी के लिए काम करता है तो भोलेभाले लोग गांव में स्कूल और अस्पताल खुलने को चमत्कार समझ बैठते हैं. सूखा पड़ने पर जब मौत गांव पर अपने पंख फ़ैला देती है तो गांव वालों का अपने महात्मा पर किया अटूट विश्वास हिम्मत बंधाने लगता है. उम्मीद जब विश्वास से जुड़ती है तब आखों के सामने का सच बेमायने हो जाता है, आखें वही देखती हैं जिसकी परछाई ज़हन में तैर रही होती है. कई दफ़ा खुद का सच दूसरे के यकीन के आगे दम तोड़ देता है राजू भी अपने सच को किनारे रख चल पड़ता है उम्मीद और विश्वास के उस रास्ते पर जहां से गुज़रना उसे ढोंगी भी बना सकता था. बिलखती गिड़गिड़ाती आस्था के आगे राजू झुकता है और उस आस्था को ओढ़ बारिश के लिये उपवास रखता है.
सही-गलत, सच-झूठ, विश्वास-अंधविश्वास इन्सान के अन्दर होने वाले लड़ाईयों से शुरू होकर दुनिया में जंग का रूप लेता है. अगर मन में सवाल ही ना रहें तो जवाब के लिए ना भटकना होगा ना तड़पना होगा. हम क्यूं हैं, ज़िन्दगी का मतलब क्या है, सैंकड़ों लोगों में हमारे दर्द कितनी एहमियत रखते हैं, क्यूं दिन रात महनत करके कमाना है, क्यूं फिर उस कमाई को खुद पर ही उड़ाना है. ज़िन्दगी माना क़ीमती है पर जीना है क्या ? क्या यूंही पैदा होने, पढ़ने-लिखने, नौकरी की तलाश करने, टीवी देखने, खरीदारी करने, खूब घी-तेल खाने, जिम में जाकर वज़न घटाने, मीठे के लिए बेसब्र होने और फिर डायबटीज़ से जूझने...दिली ख्वाहिशों के पीछे भागते हुए एक दिन दिल के दौरे से ख़त्म हो जाने के लिये। ये चक्कर पूरी दुनिया को हर सांस को, हर आत्मा को दबोचे हुए है।
इसी चक्कर से मुक्त होते हुए राजू की आवाज़ बहुत तेज़ गूंजती है पर उसका शरीर इतना विशाल हो जाता है कि वो गूंज उसके अंदर ही ऊंची, धीमी,बेहद धीमी और फिर विलीन हो जाती है. राजू को मरने से पहले एक साफ़ रास्ता दिख जाता है जहां वो गर्म ठंडक और सर्द गर्मी महसूस करता हुआ. बारिश ले आता है, ज़मीन उसे समा लेती है जैसे बारिश की बूंदों को सोख लेती है.
अब तक की चुनिंदा फिल्मों में से एक..
ReplyDeleteजीने के मेरे नजरिये को बदल देने वाली कुछ फिल्म्स में से यह एक है.किसी महान व्यक्ति...किसी प्रसिद्द लेखक....माता पिता गुरुओ को श्रेय देने की परंपरा के बीच मेरा यह बोलना...बताना आपको अनकम्फर्ट लग सकता हैकिन्तु ...मेरे दिल के बहुत करीब रहा है राजू का चरित्र (फिल्म से ज्यादा) एक साधारण के जीवन को एक साधू के द्वारा राजू गाइड को ठंड से सिकुड़ते देख अपना पीताम्बर ओधाना और...उस एक कपड़े के साथ जुड़े विशवास,आस्था,श्रद्धा ने उसका जीवन बदल दिया.फर्जी हस्ताक्षर करके गबन करने वाला सजायाफ्ता कैदी राजू गाँव वालों के विशवास को नही तोड़ सका.
ReplyDeleteएक सन्देश.....कितने भी बुरे हों या....अपराध किये हो.....अच्छा इंसान बन सकते हैं.
अंत समय में...राजू और उसके अंतर्मन के बीच हुई बात और भीतर के आलोक से दमकता पूरा वातावरण 'ओरा' के असर को बताता है न जो अच्छे कामों से कोई भी सामान्य व्यक्ति भी अपने व्यक्तित्त्व को निखर सकता है.....दूसरों के लिए जिया जा सकता है और.....मरा भी.
ये इश्क के नाम पर भागना या आत्म हत्या करने वालों को देखनी ही चाहिए.सुपर सितारा रोज़ी सब ठुकरा कर राजू के पास आ जाती है.राजू की मंजिल रोज़ी के प्यार से उठकर जनसमुदाय का....समाज का ,समाज के लिए हो गया.
बहुत कुछ लिख सकती हूँ इस फिल्म और राजू पर.....उसने मेरे जीवन को एक दिशा दी.....व्यर्थ न गंवा देने की प्रेरणा दी.अब मौत से डर नही लगता........और अपने 'प्रियतम से' अपने 'उस पिता' से जनर मिला सकूंगी.
लिखा क्या है लड़की! तुमने ठहरे हुए पानी कंकड फेंक मारा है.
ये गाने हटा दो या बंद करने का ओप्शन बता दो.ये रचना में डूबने से रोकते हैं.रात को ब्लॉग खोलते डर लगता है .....नींद उड़ न जाए किसी की इसलिए........ प्लीज़.
गाइड ने प्रभावित किया था, लोगों की श्रद्धा व्यक्ति को बदल देने में सक्षम है।
ReplyDeleteदिक्कत यही है फौजिया जी कि ये ज्ञान १०० में से २ को और भी कई बार अंतिम समय में ही मिलता है. मतलब हमेशा देर ही हो जाती है.
ReplyDeleteऔर कई कई लोग अंत तक ये खोजते रह जाते हैं, कई राजू होना चाहते हैं लेकिन सबका अंत एक सा नहीं होता कई राजू होने के बारे में भी नहीं सोच सकते कईयों के लिए ये प्रश्न ही बेमानी है. कई बस ता-उम्र भटकते रहते हैं.
ReplyDeleteवैसे आपने बहुत अच्छा लिखा है, सोचने पर मजबूर कर रहा है. इस फिल्म पर बहुत बात हुई है खुद आपने भी शानदार लिखा है. शुक्रिया.
इन्दुपुरी जी को मेरा सलाम मिले
ReplyDeleteek link aur ...
ReplyDeletehttp://anuragarya.blogspot.com/2011/07/blog-post.html
सच ही कहा कि जब तक ज्ञान प्राप्त होता है, देर हो जाती है.
ReplyDeleteगाइड फिल्म और उस के गीत कल भी फेमस थे और आने वाले कल में भी फेमस रहेंगे
ReplyDeleteगाइड एक मील का पत्थर है फिल्मों की दुनिया में
ReplyDeleteOh! I read this blog after the demise of Devanand ji. Tribute to him.
ReplyDeleteफौजिया, क्या लिखा है तुमने. फिल्म कई बार देखि है और कई बार इसके बारे में भी पढ़ा है.लेकिन जो तुमने लिखा, वो कमाल है
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