मेरी मां की एक सहेली है. किसी भी मध्यवर्गीय हिन्दुस्तानी औरत की तरह मेरी मां की उस सहेली को भी धार्मिक कर्मकांड बहुत सुहाते हैं. उनकी बैचैन ज़िन्दगी बच्चों के दिन-रात परेशान करने, एक-एक पैसे का हिसाब रखने और पति के हर वक्त के गुस्से के बीच गुज़र रही है. ऐसे में उनके पास शांति के दो ही रास्ते हैं. एक तो औरत को साज़िशों का पिटारा बताने वाले टीवी सीरियल या फिर पूजा-पाठ को सुख का रास्ता बताने वाले मौलाना. अपने पति के दिमाग को ठंडा रखने और अपने बच्चों के परीक्षाओं में अच्छे नम्बर लाने की उम्मीद में वो मौलानाओं को झाड़-फूंक के लिए पैसे देती रहती हैं. अक्सर ही उन्हें अपने बेटे के गले में कोई नया ताबीज़ पहनाते हुए या चादर के नीचे मौलाना की दी हुई चीनी बिछाते हुए देखा जा सकता है. पिछले दिनों कुछ ऐसा हुआ कि उनके धार्मिक विश्वास को बहुत बड़ा झटका लगा.
तकरीबन पंद्रह दिन पहले की बात है, उनके पति ने घर पर एक मौलाना को बुलाया. शाहीन बाग़ (दिल्ली) में रहने वाले ये मौलाना इनके घर अक्सर आते रहते थे. उस दिन घर पर सिर्फ़ पति-पत्नी थे. दोपहर का वक्त था और बच्चे कहीं बाहर गए हुए थे. मौलाना ने घर में घुसते ही ऊंची आवाज़ में कहा “तुम्हारी पत्नी के ऊपर बुरा साया है, इसके अन्दर गंदगी घुस गई है जिसे बाहर निकालना होगा.” पत्नी घबरा गई और पति की तरफ़ देखने लगी. ऐसे में उस मौलाना ने पति की तरफ़ इशारा करके कहा कि तुम किचन में जाओ और थोड़ा सा आटा गूंध कर लाओ. मैं तुम्हारी पत्नी को ठीक करूंगा. उसके बाद उस मौलाना ने पत्नी को सामने एक कुर्सी पर बिठा लिया और उसके चहरे, गले और फिर सीने पर हाथ चलाने लगा. पत्नी अपने ऊपर बुरे साए की बात सुन कर पहले ही घबराई हुई थी और फिर मौलाना के इस तरह की हरकत से बिल्कुल रुंहासी हो गई. मौलाना की हिम्मत खुल गई और वो कुछ और करने के लिए आगे बढ़ने लगा, ऐसे में वो झट से खड़ी हुईं और उसे पीछे हटने के लिए कहा. तब तक उनके पति कमरे में आ चुके थे और हालात कुछ-कुछ समझ गये थे. मौलाना के जाने के बाद पति ने पत्नी से सवाल-जवाब शुरु किए जैसे उसके तुम्हारे साथ क्या किया, कहां-कहां छुआ और ये कि अगर उसने तुम्हें सीने पर हाथ लगाया है तो मैं तुम्हें तलाक़ दे दूंगा. पत्नी ने डर से अपने पति को एक लफ़्ज़ भी नहीं कहा और इतनी बड़ी बात चुपचाप सह गई. मेरी मां को ये सब बताते हुए वो बुरी तरह रो रही थीं और कह रही थीं कि मैं अब नरक में जाउंगी, मैं अपवित्र हो गई हूं.
मां को अपनी सहेली के आंसुओं में लाचारी दिखी, लेकिन मुझे उन आसुंओ में दो सवाल चमकते नज़र आए. ये कैसी व्यवस्था है जो पीड़ित को दोषी बना देती है. हमारा समाज बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामलों से इस तरह पेश आता है जिसमें अपराधी गर्व का पात्र बनता है. एक आदमी को ये गर्व से कहते सुना जा सकता है कि मैंने तो अपनी जवानी के दिनों में बहुत सी लड़कियां छेड़ीं. आज होने वाले हर अपराध को यह कह कर पल्ला झाड़ा जा सकता है कि कलयुग में पाप का वास रहेगा. लेकिन ये कोई आज की कहानी नहीं है. हमारे पुराणों में अहल्या बस्ती है. जिसके शरीर को इन्द्र ने छल से हासिल किया. इन्द्र को स्वर्ग का देवता माना जाता है, अगर स्वर्ग का शासक ऐसा है तो बेशक स्वर्ग किसी स्त्री के लिए सुरक्षित नहीं होगा. खैर, उस समय गौतम महर्षि ने अहल्या को शाप देकर पत्थर का बना दिया था. अर्थात उन्होंने अहल्या को त्याग दिया था. सतयुग और कलयुग में फ़र्क कहां है. आज भी जिस्म पर बात आए तो औरत की गलती मान कर उसे तलाक दे दिया जाता है और उस समय भी औरत को इन्सान नहीं खाने की चीज़ समझा जाता था जिसे अगर जूठा कर दिया जाए तो खा नहीं सकते.
इस घटना ने एक और सवाल उठाया है और वो ये है कि हम टीवी पर आने वाले निर्मल बाबा पर शोर मचाते हैं लेकिन गली-गली में बैठे ऐसे हज़ारों ठगों को नज़र अन्दाज़ क्यूं कर देते हैं. हमारे विवेक पर मिट्टी डालने का काम कोई एक खास बहरूपिया नहीं कर रहा बल्कि छोटे-बड़े स्तर पर आज हर मौहल्ले में ऐसे ढोंगियों ने लूट मचाई हुई है. अगर आज शाहीन बाग़ के उस मौलाना के खिलाफ़ कोई आवाज़ उठाए तो धर्म पर हमले का हावाला देकर, कई गुट खतरनाक हालात पैदा कर सकते हैं. किसी भी अच्छे या बुरे काम की शुरुआत एक छोटे क़दम से ही होती है. अगर हम एक अच्छे काम को उसके शुरुआती दौर में ना सराहें तो मुमकिन है कि वो जल्दी सांस तोड़ दे. उसी तरह अगर हम गलत क़दमों को शुरु में ही ना रोकें तो वो बढ़ते चले जाएंगे, हम पर चढ़ते चले जाएंगे. सौ-दो सौ रुपए लेकर घर में सुख-शांति का दावा करने वाले और सौ- दो सौ करोड़ का चैनल चलाने वाले, ’ऑनलाइन’ पैसा मंगाने वाले बाबाओं में ज़्यादा फ़र्क नहीं है. बस इतना कि एक गली में गुंडा-गर्दी करने वाला मवाली है और एक ए.सी में बैठकर ड्र्ग डीलींग करता डॉन.
सबसे बड़ी व्यथा ये है कि औरत कमज़ोर है इसलिए किसी गैर के छूने से तलाक़ के लायक हो जाती है. लेकिन ऐसे कपटी बाबाओं और मौलानाओं के पीछे खड़ी भीड़ के डर से हम उनपर उंगली उठाने से भी डरते हैं.
हमारा समाज बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामलों से इस तरह पेश आता है जिसमें अपराधी गर्व का पात्र बनता है.'
ReplyDeleteआज के समाज का चरित्र दोहरा है. कथनी और करनी, आचरण और व्यवहार सब व्यथित हैं.
तथाकथित बाबा और ... के जाल में जो फंसा होता है उसे खुद ही पता नहीं होता. चैनल जो समाचारों में 'निर्मल' को अनिर्मल साबित कर रहें हैं वही सुबह सुबह प्रवचनों का प्रसारण कर रहे हैं (बेशक विज्ञापन के तौर पर ही सही).
सहमति के साथ अच्छे आलेख के लिए बधाई!
ReplyDeleteअच्छे आलेख के लिए बधाई!
ReplyDeleteऐसी घटनाओं के कारण ही धार्मिक गतिविधियों पर चीन की तरह प्रतिबन्ध लगाये जाने की बात पर भारत में भी विचार किये जाने की आवश्यकता महसूस होती है।
ReplyDeleteसच में यह बड़ी समस्या है, पता नहीं लोग वह कृपा कैसे कर देते हैं और अपने ऊपर नहीं कर पाते हैं।
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