मैं
शादी क्यूं करूं? क्या इसलिये कि सब कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो सब धोखेबाज़ियां, जालसाज़ियां
भी कर रहे हैं. तो आज से ही शुरु कर देती हूं. बड़ी खाला पिछले दिनों घर आई तो कह रही
थीं “दुनिया की ज़रूरत है शादी.” मैंने कहा “दुनिया की ज़रूरत तो पट्रोल भी है, अब क्या
कूंआ खोदने लगूं.” खाला चिढ़कर बड़बड़ाने लगीं “अरे, भई…कोई साथी तो होना चाहिये ना, पूरी
पच्चीस की हो गयी हो” मैंने इतराते हुए खाला के कंधे में हाथ डाला “साथी की फ़िक्र क्युं
करती हैं, बिटिया आपकी इतनी बुरी भी नहीं“ ये खाला के सब्र की इन्तेहा थी “सारा दिमाग
पढ़ाई ने खराब किया है, अब तक मैं मैदान में उतर चुकी थी “लो, मानो जब आदम-हौआ ज़मीन
पर आए तो अल्लाह ने साथ में काज़ी भी भेजा था.”
मां
बताती है, बचपन में मैं अपने टिफ़िन बॉक्स में चाय ले जाने की ज़िद करती थी. जब टीवी
पर कूकिंग ऑयल का विज्ञापन आता भाग कर किचन में जाती और प्लेट लेकर आ जाती कि टीवी
में से पूड़ियां और पकौड़े निकालेंगे. वो बचपना था. अट्ठारह साल की उम्र में दुनिया जीत
लेने वाला एहसास टीन-ऐज का जोश था. यानि अब तक सब नॉर्मल ही था. किसी को बताउंगी तो
वो इन बातों से इत्तेफ़ाक रखेगा कि सबके साथ ऐसा ही होता है. फिर आज मेरा हर कदम, मेरी
हर बात सबको खटकती क्युं है? बचपन में ज़्यादातर बच्चियां शादी के ज़िक्र पर शर्माकर
बुदबुदाती हैं “मुझे शादी नहीं करनी.” उस वक्त सब हंस देते हैं. लेकिन जब यही बात पच्चीस
साल की कोई लड़की कहती है तो उसे फुंकार समझा जाता है.
“तुम
शादी कब करोगी?” ये सवाल हर बार एक अलग शक़्ल लिये मेरी चौखट पर घंटी बजाता है. जब दादी
सर पर हाथ रखकर “बिटिया” कह कर पूछती हैं तो मैं दरवाज़ा खोलती हूं और कहती हूं, “दादी
अभी तो बच्ची हूं, देखिये ना मेरा कद सिर्फ़
पांच फ़ुट ही है” दादी मुस्कुराती हैं और बताती हैं “ बहनी, हम तेरह साल की थीं जब बिदा
हो गयी थीं, हम तब चार फ़ुट की रहीं. तुम्हरे दादा पंद्रह साल के रहे, ओ वक़्त हमसे लम्बे
थे, पांच फुट के रहे. फिर धीरे-धीरे हम छ: फुट की हो गयीं और वो छोटे ही रह गये” दादी
के इस मज़ेदार किस्से के साथ बात का रुख घूम जाता. अपने से छोटी किसी लड़की की शादी में
जाना भी एक चैलेंज है. पिछले महिने ज़रीन की छोटी बहन ज़ैनब का निकाह था. स्टेज पर जब
उससे मिलने गयी तो कहने लगी “बाजी, अब आप भी निकाह पढ़वा ही लो.” मैं उसके चेहरे से
भी बड़ी नत्थ को देखती रही जो बार-बार उसके गोटे वाले दुपट्टे की झालर में फंस रही थी.
उसके पर्स से मैचिंग, कस्टम- मेड जूती ने मेरा ज़ायका इतना बिगाड़ दिया कि कबाब का लुत्फ़
भी नहीं उठा सकी.
हर
जगह बगावत का झंडा बुलंद करने से अच्छा होता है, बस बालकनी से झांक कर सवाल को रफ़ा-दफ़ा
कर दो, जैसे किसी सहकर्मी के पूछने पर कह दो, अच्छा रिश्ता मिलेगा तो ज़रूर कर लूंगी.
बैंगलोर से जब बड़ी बहन फोन करती है तो बिना लाग लपेट वाला जवाब देती हूं “पहले इतने
पैसे हो जायें कि अपना घर खरीद सकूं, तब शादी पर गौर फ़रमाया जायेगा.” वो परेशान होकर
कहती है “बहना, उसमें तो सदियां लग जायेंगी, क्या बुढ़ापे में शादी करेगी.” मैं पलटकर पूछती हूं “शादी का जवानी से क्या लेना
देना” तो वो कुछ ना कहना ही बेहतर समझती है.
हद
तो आज हुई जब मेरे रेडियो प्रोग्राम के दौरान लिस्नर का मैसेज आया “ईश्वर से प्राथना
करूंगी कि आपकी शादी जल्दी हो जाये” मानो मुझे कोई जानलेवा बीमारी हुई हो जिसे ठीक
करने के लिये दुआ की ज़रूरत हो. चार शादी याफ़्ता सलमान रुश्दी ने कहा था, लड़कियां शादी
इसलिए करती हैं क्युंकि उन्हें शादी का जोड़ा पहनने का शौक होता है. सोच रही हूं करीना
ने तो कोई खास जोड़ा नहीं पहना था...हां, लेकिन उसके पास अपना घर खरीदने जितने पैसे
ज़रूर होंगे.
फौजिया .... ये सवालों के भूत जिद्दी होते है ...शादी कर लोगी तो खुशखबरी कब सुना रही हो के सवाल के साथ चिपट जायेंगे
ReplyDeleteसब बातों का वक़्त निश्चित है ..... जब वक़्त आएगा तो शादी भी हो जाएगी ... पर लोगों को कुछ न कुछ कहना है , सोनल की बात से इत्तेफाक रखती हूँ ।
ReplyDeleteVery Intrusting. Keep it up.
ReplyDeleteजय जवान जय किसान जय हिन्द - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहुम्म्म्म्म ..तो फ़ौज़िया को सबने परेशान कर रखा है। सबको शादी की पड़ी है और फौज़िया को पहले घर ख़रीदने जितने पैसे जोड़ने हैं। मैं सोच में हूँ कि दादी की पार्टी में रहूँ या फ़ौज़िया की हाँ में हाँ मिलाऊँ? फ़ौज़िया की नयी सोच, दुनियादारी को देख-देख कर उबाल मारता विद्रोह, कुछ नया करने का जज़्बा, ज़माने से कुछ नाराज़गी ...कुल मिलाकर एक ईमानदार ज़िन्दगी जीने का ख़्वाब। और दादी....? उन्होंने अपनी दुनिया देखी है ..ख़्याल उनके भी गलत नहीं। तीस के बाद की उम्र ख़ानदान चलाने के लिहाज़ से रिस्क फ़ैक्टर के अंतर्गत मानी जाती है ...ऐसा मेडिकल साइंस का कहना है। मगर फ़ौज़िया तुम यह मत समझना कि मैं दादी और खाला जी की पार्टी में शामिल हो गया हूँ।
ReplyDeleteसोनल जी! आप फ़ौज़िया जी को डरवा रही हैं क्या?
ReplyDeleteअब मेरे बोलने लायक़ कुछ बचा ही नहीं... वैसे मसला तो बहुत पुराना है बेटी के जवानी के दहलीज पर कदम रखते ही शादी का अखंड जाप शुरू हो जाता है। बेटियां इसको ज्यादा बेहतर समझती होंगी।
ReplyDeletebahut khoob likha hai..rochak dhnag se.
ReplyDeleteshubhkamnayen
ये सवालों के भूत जिद्दी होते है .... Bahut Sahi Farmaya aapne..
ReplyDeleteवक़्त नहीं बीतता, उम्र बीतती है... फिर सवाल ज़िन्दगी का वक्त का कैदी क्यूँ है?
ReplyDeleteभला शादी क्यों करे..कुछ लोग तो इतने खुशनसीब होते हैं की..
ReplyDeleteऔर शादी करने से विभिन्नताएं कहा मिलती हैं..
आज कल बॉयफ्रेंड का जमाना हैं..शादी किये बिना शादीशुदा जिंदगी जी जा सकती हैं..तो फिर शादी करने से क्या फायदा..
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