समाज,
सुना है आज कल तुम मुझसे बहुत परेशान हो. मेरी दिन ब दिन बढ़ती हिम्मत ने तुम्हारी नीदें उड़ा दी हैं तो सोचा आज आमने सामने बात हो ही जाए. तुम कहाँ से शुरू हुए इसका कुछ सीधा-सीधा पता तो है नहीं मगर कहते हैं जब औरत और मर्द ने साथ रहना शुरू किया तुम्हारी नीव वहीँ पड़ी. तुम्हे मुझसे बहुत सी शिकायतें हैं और वक़्त बेवक्त तुमने इन शिकायतों के चलते मुझ पर अनगिनत वार भी किये हैं. मैं कई साल से तुमसे बात करने की सोच रही थी पर आज ये हिम्मत मुझमे मेरी बहन खुशबू की जीत ने भरी है. तुमने उसे बहुत सताया, खून के आंसू रुलाया यहाँ उसके घर पर पत्थर भी बरसाए. खुशबू का गुनाह इतना था की उसने 2005 में एक मेंगज़ीन को दिए अपने एक interview में कहा था कि "मैं शादी से पूर्व बनाये यौन संबंधों को बुरा नहीं समझती लेकिन इसके लिए सारी सावधानियां बरतनी चाहियें". उसने ये भी कहा "किसी भी पढ़े लिखे इंसान को ये शोभा नहीं देता क़ि वो विर्जिन पत्नी की ख्वाहिश करे". बस फिर क्या था तुम्हे लगा तुम्हारे अस्तित्व पर वार किया गया तो तुमने खुशबू को अपने मन की बात कहने की सज़ा सुना दी. उसके पुतले जलाए और उसे झुकाने के लिए कानूनी दांव पेंच में फंसाया. खुशबू ने जो कहा उसे स्वीकार किया अपनी बात से पलटी नहीं, तुम्हारी धमकियों से डरी नहीं. तुमने मिल कर मुल्क के हर कोने में षड्यंत्र रचा पर खुशबू कोई सफेदपोश नेता नहीं थी जो हालात ख़राब होने पर अपने विचारों से मुकर जाती.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुशबू को बेगुनाह बताते हुए उस पर दर्ज किये सभी 22 मुक़दमे ख़ारिज किये और तुम्हारे मुंह पर ज़ोरदार तमाचा मारा. मैं कुछ कहना चाहूँ तो तुम कहते हो कि मुझे तसलीमा नसरीन की तरह देश निकाला मिलेगा, मुझे जीने नहीं दिया जाएगा तो बेहतर है चुप रहूँ पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने ये साबित कर दिया कि इस देश में रहते हुए भी अपनी बात कही जा सकती है बस ज़रूरत है मजबूती से टिके रहने की. मेरी आज़ादी पर तुम तरह तरह से पहरे लगाते हो, कहते हो मैंने चौखट लांगी तो भेडिये मुझे नोच लेंगे.
समाज, तुम कहते हो की औरत की असल आज़ादी उसके घर में है, उसके परिवार में है क्यूंकि वहीँ वो सुरक्षित है. मेरी आज़ादी क्या है ये मुझे तय करने दो. मेरी असल आज़ादी ये है की आज मैं अपने मन की बात कह सकती हूँ. मुझे शर्म के खोल में लिपटने की ज़रुरत नहीं है, मुझे इज्ज़त के लबादे उढ़ाने की कोशिश करोगे तो उतार फेंकूँगी. मेरे डरने के दिन गए, मेरे सहम कर छुप जाने के दिन लद गए. आज मैं सामने खड़ी हूँ सामना कर सकते हो तो करो. बल का प्रयोग किये बिना हरा सकते हो तो हराओ. औरत आज जीना चाहती है सिर्फ ज़िन्दगी गुज़ारने के दिन ख़त्म होंगे. आज की औरत अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही है किसी की पत्नी या बेटी कहलाना काफी नहीं है. तुमने मेरी जुबां पर लाख पहरे लगाये पर मैंने ये तोड़ दिए और आज इतना आगे निकल आई हूँ की अब तुम्हारा बस नहीं चलता तो मेरे चरित्र पर उंगली उठाते हो. मेरी तरफ एक ऊँगली उठाते वक़्त तुम भूल जाते हो की बाकी की तीन उंगलियाँ खुद तुम्हारी तरफ उठ रही हैं. खैर अब मैंने इसकी परवाह भी बंद कर दी है, तुम चरित्र के नाम पर सदियों से मुझे कुचल रहे हो. आज जब तुम्हारी चालाकी मेरी समझ में आ गयी तो हड़बड़ा कर उलटी सीधी ताना-कसी कर रहे हो. आज जब मैंने तुम्हे आड़े हाथों लिया तो तिलमिलाहट में मुझे बदचलन कहते हो. कहो जी भर के कहो. पर अब मैं ना तो तुमसे डरूँगी ना ही तुम्हारे घटिया तानो की परवाह करुँगी. आज तुम्हारी इस तिलमिलाहट में मुझे जीत का एहसास हो रहा है. तुम्हारी ये खिसियाहट मुझे सुनहरा कल दिखा रही है जहाँ मैं अपनी शर्तों पर आज़ाद होंगी.
एक निडर लड़की
समाज, तुम कहते हो की औरत की असल आज़ादी उसके घर में है, उसके परिवार में है क्यूंकि वहीँ वो सुरक्षित है. मेरी आज़ादी क्या है ये मुझे तय करने दो. मेरी असल आज़ादी ये है की आज मैं अपने मन की बात कह सकती हूँ. मुझे शर्म के खोल में लिपटने की ज़रुरत नहीं है, मुझे इज्ज़त के लबादे उढ़ाने की कोशिश करोगे तो उतार फेंकूँगी. मेरे डरने के दिन गए, मेरे सहम कर छुप जाने के दिन लद गए. आज मैं सामने खड़ी हूँ सामना कर सकते हो तो करो. बल का प्रयोग किये बिना हरा सकते हो तो हराओ. औरत आज जीना चाहती है सिर्फ ज़िन्दगी गुज़ारने के दिन ख़त्म होंगे. आज की औरत अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही है किसी की पत्नी या बेटी कहलाना काफी नहीं है. तुमने मेरी जुबां पर लाख पहरे लगाये पर मैंने ये तोड़ दिए और आज इतना आगे निकल आई हूँ की अब तुम्हारा बस नहीं चलता तो मेरे चरित्र पर उंगली उठाते हो. मेरी तरफ एक ऊँगली उठाते वक़्त तुम भूल जाते हो की बाकी की तीन उंगलियाँ खुद तुम्हारी तरफ उठ रही हैं. खैर अब मैंने इसकी परवाह भी बंद कर दी है, तुम चरित्र के नाम पर सदियों से मुझे कुचल रहे हो. आज जब तुम्हारी चालाकी मेरी समझ में आ गयी तो हड़बड़ा कर उलटी सीधी ताना-कसी कर रहे हो. आज जब मैंने तुम्हे आड़े हाथों लिया तो तिलमिलाहट में मुझे बदचलन कहते हो. कहो जी भर के कहो. पर अब मैं ना तो तुमसे डरूँगी ना ही तुम्हारे घटिया तानो की परवाह करुँगी. आज तुम्हारी इस तिलमिलाहट में मुझे जीत का एहसास हो रहा है. तुम्हारी ये खिसियाहट मुझे सुनहरा कल दिखा रही है जहाँ मैं अपनी शर्तों पर आज़ाद होंगी.
एक निडर लड़की
फौजिया के साहस को सहस्र नमन!!!
ReplyDeleteफौजिया जो तुम्हारा विरोध कर रहे हैं, वे नपुंसक हैं.
ReplyDeleteइतने कायर हैं की तुम्हारे नाम का सहार लेकर ही "'इस्लाम'" का प्रचार कर रहे हैं
ReplyDeleteथू है, इन लोगों पर
इनसे तो हिजड़े अच्छे, जो सामने आकर अपनी बात कहते हैं
अब हिजड़े ही "इस्लाम" का प्रचार कर रहे हैं
ReplyDeleteइन हिजड़ों के नाम सब जानते हैं
ReplyDeleteफौज़िया... बहुत बिज़ी था.... इसलिए पिछली वाली पोस्टों पर नहीं आ पाया.... हालांकि! मैंने मोबाइल पर पढ़ा था.... पर मोबाइल पर कमेन्ट नहीं कर सकते थे.... अब मैं क्या बोलूं..... हर टोपिक बहुत शानदार होता है.... और बर्निंग होता है... मैं बहुत ऐप्रेशिईट करता हूँ... लिखने के स्टाइल को.... तुम्हारे.... इस पोस्ट को क्या कहूँ.... लफ्ज़ नहीं नहीं मिल रहे हैं ....तारीफ़ करने को....
ReplyDeleteग्रेट.....
रिगार्ड्स...
Apki himmat ki daj deni padegi. magar afsosh ki samaj ka dar bhi hai. dhyan se rahiyega kanhi koi fatwa na jari kar de.
ReplyDeleteLekin akhir kyon jaruri hai Shadi se pahle Sex . Agar itna hi jaruri hai to BAL VIVAH HI ACHHA THA.
मैं समाज का प्रतिनिधि तो नहीं, पर इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि इस का एक दूसरा पहलु भी है, जो महिला और पुरुष दोनों पर ही लागू होता है....
ReplyDeleteबाहर हाल, आपको सय्याद के चंगुल से आज़ादी और खुले आसमान में परवाज़ मुबारक!
chalti raho nidar ladki, bahut si nidar ladkiyaN aapke peechey aayeNgi, nidar ladke aapka sath deNge. Ye koi hindu-muslim ki ladayi nahiN hai. Manavta ko hi kathit manavta ke panje se mukt karana hai.
ReplyDeletekya dhasu likha ha yaar...maza hi aa gaya padke...
ReplyDelete@takeshwar-are nikal jane dijiye fatve...inki parwah karta kaun ha...
keep it up fauziya...
बहुत बढ़िया और सटीक बात... फतवों से मत डरना... मैं भी यही कहूंगा कि वर्जिनिटी वाली बात में दम है... लेकिन शादी से पहले सेक्स जरूरी तो नहीं ...निडर चिंतन के लिये बधाई...
ReplyDeleteसलाम...
ReplyDeleteऔरत आज जीना चाहती है ज़िन्दगी गुजारना नहीं...शाबाश...!!!
मेरा जीवन, मेरा है....मुझे क्या करना है ये मैं तय करुँगी...कोई और नहीं.....
अपने जीवन का निर्णय सिर्फ और सिर्फ मैं लूँगी .....
मेरी गलती मेरी होगी ..उसकी जिम्मेदार मैं रहूंगी....और फैसला भी मेरा होगा....
कोई माई का लाल मेरे लिए फैसला नहीं करेगा.....मेरे जीने-मरने का फैसला तो हरगिज़ नहीं....अगर करोगे तो अब तैयार हो जाओ....नारी जाग गई है बक्शा नहीं जाएगा ....
फौजिया.....आवाज़ बुलंद हो.....!!!!
"suparb......"
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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मैं शादी से पूर्व बनाये यौन संबंधों को बुरा नहीं समझती लेकिन इसके लिए सारी सावधानियां बरतनी चाहियें". उसने ये भी कहा "किसी भी पढ़े लिखे इंसान को ये शोभा नहीं देता क़ि वो विर्जिन पत्नी की ख्वाहिश करे". बस फिर क्या था तुम्हे लगा तुम्हारे अस्तित्व पर वार किया गया तो तुमने खुशबू को अपने मन की बात कहने की सज़ा सुना दी. उसके पुतले जलाए और उसे झुकाने के लिए कानूनी दांव पेंच में फंसाया. खुशबू ने जो कहा उसे स्वीकार किया अपनी बात से पलटी नहीं, तुम्हारी धमकियों से डरी नहीं. तुमने मिल कर मुल्क के हर कोने में षड्यंत्र रचा.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुशबू को बेगुनाह बताते हुए उस पर दर्ज किये सभी 22 मुक़दमे ख़ारिज किये और तुम्हारे मुंह पर ज़ोरदार तमाचा मारा.
मेरी आज़ादी पर तुम तरह तरह से पहरे लगाते हो, कहते हो मैंने चौखट लांगी तो भेडिये मुझे नोच लेंगे.
समाज, तुम कहते हो की औरत की असल आज़ादी उसके घर में है, उसके परिवार में है क्यूंकि वहीँ वो सुरक्षित है. मेरी आज़ादी क्या है ये मुझे तय करने दो.
प्रिय फौजिया,
अच्छा लिखा है तुमने, पर मुझे लगता है कि तुम थोड़ी सी कन्फ्यूज्ड हो, 'जिस' ने ऊपर लिखी ज्यादतियाँ की हैं/कर रहा है, वह मैं नहीं... वह तो खुद को 'समाज' कह रहा है जबकि वह हकीकत में है धर्म, तहजीब, संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, आध्यात्म आदि-आदि के लबादे पहने मानसिक रूप से रिटार्डेड, यौनकुन्ठित दोगलों व कुतर्की हिजड़ों का 'संगठित गिरोह'...
'समाज' तो मैं हूँ जिसका दिल भी बड़ा है और दिमाग भी... मेरे आगोश में सबके लिये जगह है... यह मैं ही हूँ जिसके कारण यह 'संगठित गिरोह' अपनी मनमानी करने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाते... और मेरे ही कारण हमेशा आखिरी जीत सच की ही होती है!
यह मैं ही हूँ जिसके 'वासियों' के समर्थन जताते १३ कमेंट मिले हैं तुमको अब तक... और क्यों न मिलते आखिर तुम भी तो मुझे बनाती हो!
उम्मीद है तुम फर्क समझोगी,
सस्नेह,
समाज
बहुत जबरदस्त लिखा है फौजिया.. जानते और समझते सब है.. पर बहुत कम लोग होते है जो हिम्मत रखते है इस तरह लिखने का.. खुशबू वाला प्रसंग जानता हूँ.. और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बहुत ख़ुशी भी हुई थी कि हमारे देश में कथनी और करनी का अंतर समझ आ रहा है.. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार यही है..
ReplyDeleteऔर इस इंसिडेंट को केंद्र में रखके समाज के नाम लिखे गए इस खुले पत्र की तारीफ जितनी भी की जाए कम है...
nice post !
ReplyDeleteआपने सच में बहुत ही बढ़िया लेख लिख है!आप बड़ी इमानदारी से अपनी बात कहती है!इसके लिए आप बधाई की पात्र है!
ReplyDeleteपर मै थोडा सा पुरातन-पन्थी,संकीर्ण सोच वाला हूँ!मुझे अब भी लगता है रिश्तो में संसार बसा हुआ है!हम एक दुसरे को नकार कर,केवल स्वयं में ही पूरे नहीं हो सकते!इसीलिए शायद आपकी ये बात...
"आज की औरत अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही है किसी की पत्नी या बेटी कहलाना काफी नहीं है."
थोड़ी सी अच्छी नहीं लगी!
वैसे समाज की आँखे खोलने वाला रहा आपका ये पत्र!
कुंवर जी,
एक नीडर लड़्की का यह पत्र समाज को बहुत कुछ बता और दिखा गया.
ReplyDeleteबहुत ही बढिया,
सहमति
ReplyDeletepls, read
ReplyDeleteIslam is not for me.
बहुत बढ़िया लिखा है..फौजिया...ऐसे ही निर्भीक होकर लिखने की ...और समाज को आईना दिखाने की जरूरत है...
ReplyDeleteफौजिया जी, आपकी निडरता को सलाम
ReplyDeleteआप प्रेरणास्त्रोत हो उन लड़कियों के लिए जो अपनी बात कहने से कतराती हैं
आपका लेख पढ़कर मेरे मन के भीतर कुछ प्रश्न उमड़ रहें हैं, क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ वो प्रश्न???
badhiya lekh
ReplyDeleteआदमी चाहता हैं कि उसकी जीवन संगिनी वर्जिन हो!!! पर क्या वो आदमी खुद को वर्जिन रखेगा???? अगर उसे कभी मौका मिला तो क्या वो उस मौके को लात मारकर अपनी वर्जिनिटी कायम रखेगा???
ReplyDeleteबहुत मुश्किल होगा आदमी के लिए अपनी वर्जिनिटी को कायम रखना और जब वो नहीं कायम रख सकता तो उसे इस बात का अधिकार भी नहीं कि वो औरत से वर्जिनिटी कायम रखने की आशा करे.....वर्जिनिटी का मुद्दा यही ख़तम हो जाता हैं
अब बात करते हैं विवाह पूर्व यौन संबंधो की, आज तक दुनिया में कोई ऐसा समाज नहीं हुआ जो औरत-आदमी में इस आधार पर भेद न करता हो!!! आदमी अगर विवाह पूर्व अथवा विवाह उपरांत सम्बन्ध कायम करता हैं तो उसे फिर भी बच जाता हैं परन्तु औरत को तो यातना दी जाती हैं!!!
औरत आज इस बात के लिए लड़ रही हैं कि उसे यह स्वंत्रता प्राप्त नहीं!!! मेरे विचार में उसे इस बात के लिए लड़ना चाहिए कि आदमी को यह स्वंत्रता क्यूँ??? आदमी पर भी वही नियम लागू चाहिए जो औरत पर लागू हैं!!!
फौजिया,
ReplyDeleteलिखती तो आप हमेशा ही अच्छा है, इसमें कोई शक नहीं...लेकिन जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह साहस और दुस्साहस के बीच भी एक लकीर होती है...हर बालिग को अपनी मर्जी से रहने का अधिकार है...बिल्कुल ठीक बात है...लेकिन मैं यहां अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए कुछ जानना चाहता हूं...क्या बच्चों के बालिग होते ही मां-बाप के लिए उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं रह जाती...उनके मान-सम्मान का कोई ख्याल नहीं रह जाता...ये ठीक है वयस्क होने के बाद लड़का-लड़की शादी या बिना शादी संबंध बनाते हैं तो क़ानूनन तौर पर कुछ भी गलत नहीं करते...लेकिन पढ़ाई के चलते ही और करियर के सैटल बिना हुए ही लम्हों के सुख के लिए मर्यादा की हद भी पार कर दी जाए और साथ ही ये दुस्साहस दिखाया जाए कि हम तो बालिग है कुछ भी कर सकते हैं...हां, आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़े हैं और एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं तो फिर कोई बुराई नहीं कि आप शादी करके रहें या लिव-इन-रिलेशनशिप में रहें...लेकिन पत्रकारिता का अनुभव ये ही बताता है कि सामाजिक आशीर्वाद के बिना जो रिश्ते बनाए जाते हैं उनकी उम्र ज़्यादा नहीं होती...धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी को पत्नी बनाया लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी लोकसभा में पहुंचे तो शपथपत्र पर अपनी पत्नी का नाम सिर्फ प्रकाश कौर ही बताया...ये बताने की हिम्मत नहीं कर सके कि उन्होंने दिलावर खान और हेमा मालिनी ने आयशा बेगम बनकर एक दूसरे से शादी की थी...बाकी पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना...
जय हिंद...
फौज़िया
ReplyDeleteबधाई! तुम्हारा ये साहस बहुत सारे दुबके साहसों को भी बाहर निकलने का अवसर देगा। इस अवसर पर सारे पुरुष समर्थकों में से कुछ से सावधान रहना भी ज़रूरी है क्योंकि कुछ तो दूसरों की महिलाओं को स्वतंत्र देखना चाहते हैं। उन पर तब ही भरोसा किया जा सकता है जब वे यह स्वतंत्रता अपने घर की महिलाओं को देने के लिए भी तैयार हों।
इतनी निडरता सबमें हो ही नहीं सकती
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
वैसे घर में भी कहां सुरक्षा और आजादी दे रखी है जी समाज ने
लेकिन समाज केवल पुरुष ही नहीं हैं।
shaabaash!!
ReplyDeleteऔरत और उसकी भावनाओं को जिस तरह आपने समझा है वैसा आज भी पुरुष तो छोडिये स्त्रियाँ भी नही समझतीं…………………अभी मैने अपने ब्लोग पर एक रचना लगाई तो देखिये कितना हंगामा खडा हो गया………………॥जो बात आपने कही है वो ही मैने भी कही मगर लोगो के हलक से नीचे नही उतरी सिर्फ़ कुछ आप जैसे गिने चुने समझदार लोगों को छोड्कर्।
ReplyDeleteFauzia, tumhari soch se sahmat hoon par mujhe itna nahi samajh aata ki hum log baar-baar azadi ka matlab sirf yon swachchhandata se kyon lagate hain.. azadi chahe stree ki ho ya purush ki samaan honi hi chahiye ye theek hai par harbaar baat ek hi mudde par aakar kyon tikti hai? kyon aazadi ke sirf ek hise par atak kar rah jate hain?
ReplyDeleteलड़कियों या महिलाओं का निडर होना बहुत जरुरी है. समानता के लिए भी यह जरुरी है की दोनों को सामान अधिकार दिए जाएँ. अगर धर्मग्रन्थ या रिवाज रुकावट पैदा करता है तो उन्हें खारिज किया जाये....
ReplyDeleteलेकिन आगे क्या.... इसके बाद क्या हो... यह भी सोचा जाये.
स्वस्थ समाज का उद्देश्य सामाजिक, नैतिक और जिम्मेदारी पूर्ण होना चाहिए. किसी पुरुष अथवा महिला की मानसिक स्थिति क्या है वे क्या सोचते हैं, इस में परेशान होने की जरुरत नहीं है. होना सिर्फ यह चाहिए की व्यवहार में नजरिया सामान और साफ़ रहे.
KEEP WRITING
ReplyDeletechange has to be brought in and people like you will usher it in
मैं कमेंट नही करना चाहता था पर मजबूर होकर कर रहा हूं ...
ReplyDeleteब्लॉग बना कर अल्फाजों से खेलना कितना आसान है (शॉर्टकट रास्ता)
आप लोग मुझे एक बात बता दो, ऐसे विवादास्पद बयान देने वाले सेलेब्रिटीज को ही क्यों आदर्श बनाना चाहते हो, अगर कोई पुरुष शाइनी आहूजा या शक्ति कपूर का समर्थन करेगा तो आपको कैसा लगेगा ??
आप किरण बेदी से सीख थोड़ी ना लेंगे (लंबा और कठिन लेकिन उचित रास्ता )
अब लगता है कि बाल विवाह ऐसे तथाकथित समझदार लोगों कि वजह से करवाए जाते होंगे .
या ऐसा करो कि अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान का जीवनी पढ़े
और देखो कि पुरुष को भी सबकुछ तोहफे में नही मिलता
जया बच्चन ने अपने केरियर के सफलतम मोड़ पर सिर्फ़ बच्चों के लिये सन्यास लेना उचित समझा अगर अपनी पहचान बनाने लगती तो सफल तो होती पर शायद संतुष्ट नहीं .
उचित और सुख को एक करना आना चाहिए
अरे टीवी ऑन करो शायद फिर कोई अबला नारी मसालेदार बयान दे रही होगी (पब्लिसिटी का शॉर्टकट)
बहुत सुन्दर लेख है ... लिखने का तरीका भी अच्छा है और मसला भी ... टिप्पणियों से पता चलता है कि समाज अब भी काफी पीछे है ... खैर, बदलाव दुनिया का नियम है ... हमारा ये सनातनपंथी समाज भी एकदिन बदलेगा ...
ReplyDeleteथोड़ी देर से सही मगर आयेगा ज़रूर ... जायेगा कहाँ ...
बहुत साहस का काम है ऐसे निर्भीक होकर लिखना. आप आगे बढ़ो... समाज के पुरातनपंथी सोच, धर्म और पंथ के ठेकेदारों के खिलाफ खड़ी हर औरत आपके साथ है.
ReplyDeleteAssalamualeykum...
ReplyDeletebahut behtar likha hai ...ek manjhe hue khiladi ki trah aapke jawaab nahi ...aapke likhe har ek mazmoom alag trah means hatke hote hai ...jo puri trah aap expose karke rakh deti wo kabile tareef hai ...bahut khoob nibhaaya hai aapne...
is sundar lekh ke liye badhai...
ReplyDeleteतुम चरित्र के नाम पर सदियों से मुझे कुचल रहे हो. आज जब तुम्हारी चालाकी मेरी समझ में आ गयी
ReplyDeleteआप अच्छा लिख रही हैं पर इसका जरूर ध्यान रखना कि कुछ ऐसा न लिखना जो कहने को तो महिला की आजादी की बात हो पर बास्तब में उसके शोषण का एक नया रूप
फौजिया जी एक निडर लडकी के साहस को सलाम वाकई इस समाज में
ReplyDeleteऐसे ही कुछ लोगों की सोच की सशक्तता से बदलाव संभव है |
आपका शुभ चिन्तक
गौतम
nidar kalam se nikale nidar lafz....bahut kuch sochne ko majboor kar rahe hai!
ReplyDeleteऐसे साहसी लोग समाज की सड़ांध को समाप्त कर सकते हैं।
ReplyDelete--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
bahut badiya likha hai...per kuch logo ki kartut ko lekar pure samaj kr muh per tamacha marna ye tik nahi hai...
ReplyDeleteआपका साहस और आपकी हिम्मत तारीफ़ के काबिल है. इसी तरह फिरदौस खान भी समाज में चेतना जगा रही हैं .लेकिन कुछ समय पाहिले मैंने एक और ब्लॉग देखा ,जिसका नाम बिलकुल आपके ब्लॉग से मिलता है.मुझे भ्रम हो रहा है की कौन सा ब्लॉग सही है. और कौन आपकी नक़ल कर रहा है.कृपया शंका समाधान करें .दुसरे ब्लॉग का पता यह है.
ReplyDeletehttp://iamfauzia.blogspot.com/
आपका साहस और आपकी हिम्मत तारीफ़ के काबिल है. इसी तरह फिरदौस खान भी समाज में चेतना जगा रही हैं .लेकिन कुछ समय पाहिले मैंने एक और ब्लॉग देखा ,जिसका नाम बिलकुल आपके ब्लॉग से मिलता है.मुझे भ्रम हो रहा है की कौन सा ब्लॉग सही है. और कौन आपकी नक़ल कर रहा है.कृपया शंका समाधान करें .दुसरे ब्लॉग का पता यह है.
ReplyDeletehttp://iamfauzia.blogspot.com/
Nidar ladki.Bahot khoob likha hai.Magar andazebayan mein talkhi kafi hai.Personal karan hai ya jald notice mein ane ki koshish hai pata nahi.Meri soch hai mariz(samaj)ko dawa to do magar suger coat karke.Yani bhasha balanced aur asar wali honi chahiye.Baharhal mein apke jazbe ko salam karta hoon aur Majaz sb. ka ek sher is jazbe ko nazar karta hoon.
ReplyDeleteTere mathe pe yeh anchal bahot he khoob hai lakin
Tu is anchal ko parcham bana lati to accha tha shyad language ke bare mein mera point ap ko samajh aa gaya hoga. shaffkat
बहुत अच्छा है। पहली बार आपकी लिखी हुई बाते पढ रही हु।
ReplyDeleteधन्यवाद