Thursday 22 July 2010

इन्साफ का बहलावा

उसकी दुनिया में धुआं भरा है, हर तरफ़ चीखती चिल्लाती आवाज़ें गून्जती हैं . पतला सूखा जिस्म दो लड़खड़ाती टांगों पर खड़ा रहता है. वो चलते चलते गिर जाता है तो उसकी मां गोद मे उठा लेती है. वो ये नहीं सोचता कि मैं लाचार हूं, अपाहिज होने के दर्द से वो अभी मुखातिब नही हुआ है. पर उसकी मां इस तक्लीफ़ को हर रोज़ महसूस करती है. शारदा सोचती है उससे कहां गलती हुई उसने तो हर बार अपनी नन्ही सी जान को पोलिओ की बून्दें पिलाईं. लोग कह्ते हैं ये अभिशाप उस अमरीकी कार्बाइड कम्पनी का है जो 25 साल पह्ले शहर के लोगों को रोज़गार देती थी. जिसकी दी तन्ख्वाह पर घर के चूल्हे जलते थे वही कम्पनी रातों रात शहर की ज़िन्दगी को जला गयी.

बरसों से सुन रहे हैं अहिंसा के रास्ते पर चल कर भी जंग जीती जा सकती है. पर भोपाल गैस पीड़ितों को सदियों से मिल रहे झूठे दिलासे और फिर अधुरे इन्साफ़ के अलावा कुछ नही मिला. वो खामोशी से मार्च करते हुए आते और जन्तर मन्तर पर शान्तिप्रिय धरना करके वापस चले जाते. इतने साल से उनकी मांगो की किसी ने सुध नही ली. सरकार को अमरीकी रिशते सुधारने और वक़्त वक़्त पर पडोसी मुल्कों पर धाक जमाने की कोशिश करने से फ़ुर्सत नहीं थी. भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों का केस मज़बूत करने के लिये किसी 'उज्वल निकम' ने मिडिआ मे शोर नहीं मचाया. वो गरीब थे उनका शहर रातो रात तबाह हो गया पर देश के लोग अपनी इमारतों को और ऊँचा करने की कोशिशों में लगे रहे. जब मासूम बच्चे लंगडाते और खिसकते हुए भोपाल की सड़कों पर अपना बचपन जीने की कोशिश कर रहे थे,उस वक्त विकास के नाम पर दूसरे ज़िलों में फेक्ट्रियां बिछायी जा रही थी. करीब 55 हज़ार लोगों की ज़िन्दगी बेआवाज़ गूंज के साथ दम तोड देती है और राजधानी मे कोई उफ़्फ़ नही करता. तकरीबन पांच लाख लोग अपाहिज हो जाते हैं लेकिन उनके सहारे के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ता.
हाई प्रोफाइल केस हो तो मिडिया का इन्साफ प्रेम भी खूब देखने को मिलता है, एयर होस्टासेस को नौकरी से निकाला जाए तो पीली युनिफोर्म में अन्याय का रोना रोती फूटेज की टीवी पर बाढ़ जाती है. कास्टिंग काउच के राज़ पर से पर्दा हटाने के लिए आये दिन स्टिंग ओपरेशंस होते रहे. हर वो चीज़ जो सोफे पर बैठ कर हाथ में पोपकोर्न और सोफ्ट ड्रिंक के साथ लुत्फ़ दे वो चेनलों पर मौजूद है. किसी दोषी के सज़ा पाने पर मीडिया ट्रायल के नाम पर सीना चौड़ा करने वाले मिडिया चेनल्स भोपाल गेस कांड पर बेजुबान से हैं.

महंगाई और आतंकवाद के मसलों पर सडकें जाम करने वाली विपक्ष पार्टी ज़हरीली गैस के निर्माताओं के क़र्ज़ तले दबी है. मौजूदा सरकार को कमज़ोर कहने वाले खुद छुपे बैठे हैं. खुद को गरीबों का हितेषी बताने वाले, कैमरे का एंगल देख कर झोपड़ों में रात गुज़ारने वाले सफ़ेद पोश नेता भी कोई आश्वासन नहीं बंधा रहे. कॉमन वेल्थ का काम समय पर पूरा होगा या नहीं, अफज़ल गुरु की फ़ाइल आगे बढ़ी या नहीं, नेनो प्लांट के लिए टाटा को सही जगह ज़मीन मिली या नहीं मिली, एशियन खेलों में भारतीय क्रिकेट टीम क्यूँ नहीं गयी. इन मसलों पर विचार विमर्श करने वाली राजनीतिक पार्टियों को नाटक पार्टियाँ कहते तो बेहतर होता.

तीन दिसंबर 1984 की अँधेरी रात जब अमरीकी कंपनी युनिओं कार्बाइड की रासायनिक गेस हवा में रिस रही थी, तब कुछ लोग खाना खा कर गहरी नींद में सो रहे होंगे. कितने लोग घर के बाहर चारपाई बिछा कर बातों में मशगूल होंगे. सभी की आँखों में आने वाले दिन के ख्याल रहे होंगे. कोई नई नवेली दुल्हन अपने पति के मायेके से ले कर जाने की राह तक रही होगी. कोई बच्चा खिलोने की जिद करते करते रोते हुए सो गया होगा और माँ ने उसके चेहरे पर आंसुओं की बूँद देख कर सोचा होगा कल खरीद दूँगी खिलौना. कोई अपने जोड़े हुए पैसों से नई रजाई लाने वाला होगा. कुछ लोग रात के वक़्त धुंध के बढ़ जाने की वजह के बारे में सोच रहे होंगे. जितने लोग उतनी उम्मीदें, जितनी आँखें उतने ख्वाब पर मौत को ज़िन्दगी पर हावी होने में वक़्त ही कितना लगता है. भोपाल गैस त्रासदी की तस्वीरों पर नज़र दौड़ाओ तो रूह कांप जाए. हर तस्वीर की अपनी कहानी हर तस्वीर का अपना दर्द. स्पेनिश फिलोसोफेर 'पाउलो कोहेलो' ने कहा है हर इंसान अपने आप में एक दुनिया है और हर एक शख्स के मरने पर एक दुनिया मरती है. सच है आदमी अपने मरने के साथ सभी यादें जो उसके ज़हन में हैं, सारे लोग जिनसे वो मिला, सभी तकलीफें जिन पर वो रोया, साड़ी खुशियाँ जिन पर वो हंसा वो हर एहसास अपने साथ ले जाता है.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यूनियन कार्बाइड की लापरवाही से तकरीबन 3 हज़ार दुनिया खत्म हुईं और 7 से 8 हज़ार दुनियाओं पर भूचाल आया. लेकिन सच तो ये हैं की इस घटना से, फिर उसके बाद चलने वाली कानूनी प्रक्रिया और सरकारी घटियापन से पूरी इंसानियत आहत हुई है. न्यायपालिका की फाइलों के ढेर पर चढ़ कर मजलूम के विश्वास ने फांसी लगायी है.

13 comments:

  1. हर इंसान अपने आप में एक दुनिया है और हर एक शख्स के मरने पर एक दुनिया मरती है...bahut sahi baat hai fauzia...magar yahan imaan aur majhab 'paisa' hai..jinda log bhi ek chalti firti laash hai ,jinko apne aap par aansoon bahane ka bhi waqt nahi..

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  2. good post mujhe lagata hai ki bhopal kand me logo ne insaf ke lie mehant to ki par shayad galt disha me netao ke aage virodh pradarshan ki jagah yadi sab ne mil kar sirf nyayaly me apni bat thik se rakhi hoti to shayad bat ban sakti thi par nyayaly ka kam sab ne sarkari vakil par dal kar bhul gaye.

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  3. Ek bhaywah karti trasadi..
    bhala kaise bhool sakte hain ham...
    Sach mein wo din main bhi kabhi nahi bhula paayen hun...

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  4. जनसत्ता में पढ़ा था.बहुत ही परिपक्व लेखन होता जा रहा है.मुबारकबाद !

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  5. हमज़बान पढ़ा करें....

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  6. yaqinan aap ne bilkul sahi likha hai, lekin jin media walon aur netaon ko aap kos rahi hain,maaf kijiyega, aap bhi to unhi ki line me khadi hain... warna aapke dil me bhopal walon ke liye ye dard pehle kyon nahi utha..?

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  7. "सत्यपरक लेख...हिन्दी-पट्टी वालों को अपने ही देश में कोई नहीं समझता...तो बाहरवालों से क्या उम्मीद करें..पर दुःख तो तब होता है जब हिन्दी प्रदेशों से गये की पत्रकार भी कुछ नहीं करते...भोपालवासियों को अब उस अर्जुन सिंह को सजा दिलवानी चाहिये जिसने रिहाएशी बस्ती में फैक्ट्री बनवाने की इजाज़त दी....."

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  8. Fauziyaa... is poore ghatna kram me union carbaide to zimmedaar hai hee.... lekin khalnayak ki bhumikaa to hamare supreme-court ne nibhaayee hai jiske aage ham 'honourable' title lagaate hain... shame on it!!

    excellent piece of writing!!

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  9. Amit ji ki jaankari ke liye bata dun, k jab UNION CARBIDE ko Bhopal me factory ki permission di gai thi tab wahan koi rehaishi basti nahi thi.

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  10. फौजिया, इस देश में कुर्सी लोगों के आंख, नाक, कान, हाथ, पैर सबको जकड़ देती है...
    थू है देश के राजनीतिबाजों और संवेदनशील अफसरों के ऊपर...

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  11. Bahot khoob likha hai.Mein padh raha tha aur ankho ke samne ek film se chal rahi thee.Admi ke majboori ki , nagahani mot ki ,bebasi ki ,safed posh darendo ki,nikamme hakimo ki kya kya likhu siwa is sher ke
    Adam ne bana liye jahanum lakho
    Tu ik jahanum ko liye betha hai
    shaffkat

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  12. aap ki sabhi post padhi, aap atchha likhati hai, i m from rajkot or app chahe to mere blog ki visit kijiye : www.onlylove-love.blogspot.com thaking u

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