Friday 29 October 2010

रिच्ची, मिड्डी और झुग्गी

‘रिच्ची’ तेज़ म्यूजिक बजाता हुआ अपनी लम्बी गाडी में दिल्ली की चमाचम सड़कों से चला जा रहा था तभी उसकी नज़र बस स्टैंड पर खड़े ‘मिड्डी’ पर पड़ी. पहले तो उसने सोचा गाडी ना रोकूँ फिर सीना चौड़ा करते हुए नई नई गाडी का टशन मारते हुए गाडी ठीक मिड्डी के सामने रोकी. "हे कैसे हो, कहाँ जा रहे हो आओ मैं तुम्हे ड्रॉप कर दूँ." मिड्डी पहले तो गाडी के जूँ से आ कर रुकने पर चौंका फिर जब रिच्ची पर नज़र पड़ी तो थोड़ा झिझकते हुए बोला "अरे नहीं तुम जाओ...मैं बस से चला जाऊंगा, असल में इस गाडी का पोस्टर तो ज़रूर शौक से देखता हूँ पर बैठते हुए डरता हूँ" रिच्ची ने थोड़ा हैरानी से पुछा "अरे डरते क्यूँ हो, न्यू मॉडल है, कल ही पापा के आर्डर पर आई है, स्पेशली मेरे लिए". मिड्डी ने फ़ौरन कहा " नहीं नहीं रिच्ची, मॉडल तो बहुत अच्छा है लेकिन मैं डरता इस बात से हूँ आज तो बैठ जाऊंगा पर फिर रात भर इस आलिशान गाडी की सैर याद आती रहेगी" "ओह्हो..कितना सोचते हो तुम, आओ बैठो" रिच्ची ने दरवाज़ा खोल दिया.

"हाँ तो तुम कहाँ जा रहे हो" रिच्ची ने गाडी फिर से स्टार्ट करते हुए पुछा. "असल में कॉलेज का प्रोजेक्ट पूरा करना था कॉमनवेल्थ खेल,भरष्टाचार और युवा पर मैंने सोचा मिडल क्लास के एंगल से तो सब लिख ही रहे हैं तो अपने बारे में लिखने का कोई फायेदा नहीं है, फिर सोचा तुमसे मिलूं लेकिन लगा तुमने कहाँ कॉमनवेल्थ देखे होंगे, तुम तो बिजी होगे, पार्टीस और ओउटिंग में, है ना ? इसीलिए ज़रा ‘झुग्गी’ से मिलने रहा था" मिड्डी ने अपनी फेक 'लीवाइस' की शर्ट का कॉलर ठीक करते हुए बताया. इस पर रिच्ची थोड़ा बुरा मानते हुए बोला " वॉट आर यू सेयिंग मैन, मैंने inaugration वी.आई.पी सीट्स पर बैठ कर देखा था. पापा ने बड़ी मुश्किल से पासेस अरेंज किये बट तुम्हे तो पता है, मनी है तो सब कुछ फनी है...बस कुछ नोट ढीले करो और काम बन जाता है. अब देखो ना लास्ट इयर जब मैं exams में चीटिंग करते हुए पकड़ा गया था. मुझे तो लगा था काम खत्म लेकिन पापा सब ठीक कर देते हैं. उस पेपर में तुमसे ज्यादा अच्छे मार्क्स आये थे मेरे." तभी गाड़ी को एक हल्का सा झटका लगा "ओह माई गोंड ! ये गढ्ढा कितना खतरनाक था. ठंग की सडकें भी नहीं बना सकते, इस देश का कुछ नहीं हो सकता, इतना करप्शन है...तुम्हे पता है? इस गाड़ी को यू.एस से मंगवाने के लिए पापा ने कितने लोगों को पैसा खिलाया...अब नहीं खिलाते तो ये कार मेरे बर्थडे से पहले नहीं आती, यू नो द सिस्टम" "खैर तुम बताओ क्या चल रहा है आज कल" रिच्ची ने रेड लाइट पर गाड़ी रोकते हुए पूछा. "कुछ ख़ास नहीं बस कॉमनवेल्थ के लिए volunteering की, ये तजुर्बा मेरे सी.वी में जुड़ जाएगा तो अच्छा होगा ना, पापा की उम्र हो गयी है अब वो भी सब-इंस्पेक्टर की नौकरी से थक चुके हैं. सोचता हूँ कुछ करने लायक हो जाऊं तो उनसे कहूँ...बस पापा अब और रिश्वत लेना बंद करिए, मैं अब आपका हाथ बंटा सकता हूँ. पता है कल बिजली मीटर चेक करने वाला घर आया. उसने मीटर की गड़बड़ पकड़ ली, लगा धमकाने की फाइन होगा, ब्लेक लिस्टेड होगे...फिर पापा से उसकी फ़ोन पर बात करवाई, थोड़ा लेन देन और मामला सेट, अब बताओ बिना कुछ लिए ये सरकारी चोर मानते ही नहीं."

झुग्गी के आशियाने के पास गाड़ी रुकी, झोपड़ पट्टी के पास लगे कॉमनवेल्थ के पोस्टर्स जगह जगह से फट गए थे, जिन शानदार होरडिंगस ने इलाके को छुपाने की कोशिश की थी वो हट चुके थे. रिच्ची ने मिड्डी को सड़क किनारे उतरा और अपने रास्ते चल दिया. मिड्डी ने देखा झुग्गी बाहर ही खड़ा था "अरे मिड्डी तुम यहाँ, क्या बात है आज तो बड़े लोग आये हैं. क्या हुआ" झुग्गी ने मिड्डी को देखते ही पूछा. "बस ज़रा अपने कॉलेज का कुछ काम था, कुछ सवाल करूँगा फ़टाफ़ट से जवाब देना" मिड्डी से वहां खड़ा रहना थोड़ा मुश्किल हो रहा था, उसका ध्यान ना चाहते हुए भी बार बार झुग्गी के गंदे बालों पर चला जाता और वो दूसरी तरफ देखने लगता लेकिन जहाँ देखता वहां ऐसा ही कुछ दिखता जिससे तबियत बिगड़ जाती...कभी पास बहती नाली पर नज़र पड़ती तो कभी झोपड़ों के पासें बने कूड़ेदान पर. झुग्गी शायद मिड्डी की हालत समझ गया था तभी बोला "अरे इतना घबराओ मत.. पूछो जो पूछना है और भागो यहाँ से"

अच्छा बताओ मिड्डी ने नाक पर रुमाल रखते हुए सवाल किया "कोमन्वेअल्थ से क्या मिला?" झुग्गी ने कहा "फूटपाथ पर दुकाने ना लगने, सिग्नल पर सामान ना बेचने से झोपड़ों में भूख.
मिड्डी ने पुछा "तुम सरकार की नज़र में क्या हो?
झुग्गी बोला "वो कूड़ा जिसे झाड़ू मार कर बिस्तर के नीचे कर दिया जाता है"
मिड्डी ने आखरी सवाल किया " तुम्हारी नज़र में भरष्टाचार क्या है?"
झुग्गी ने जवाब दिया "भीख में मिले २५ रूपए में से जब १० रूपए ट्राफिक हवालदार को देने पड़ें."

12 comments:

  1. कमाल का लिखा है फ़ौज़िया...बहुत खूब...

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  2. Really a good thought...I appreciate you...keep writing!!!

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  3. रिची, मिड्डी और झुग्गी के माध्यम से हर वर्ग की सोच कह दी...बहुत बढ़िया.

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  4. bohot bdhiya likha hai
    kai dino baad itna acha lekh pdhne ko mila
    likhti rhiye aap ki kalam aise hi chlti rhe

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  5. अच्छी रचना , बहुत - बहुत शुभ कामना

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  6. Good post..Last line has a tremendous irony on Corruption...

    A line I can recall fits well on Corruption(bhrastachar)..
    "Har shakh pe ullu baitha hai, anjamein gulistan kya hoga...?"

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