Tuesday 4 January 2011

'पल' बीत गया ये तो...

पूरे साल जितने उतार चढ़ाव, जितने एहसासों से गुज़रे उन्हें अब दिल में समेट लेते हैं. वो बीत गया लेकिन हमारे अंदर है वैसे ही जैसे हंसी के रुकने पर भी मुस्कान होंटों को छुए रहती है. पिछला साल क्या बहुत कुछ दे गया ? सोचती हूँ तो पाती हूँ...हाँ बहुत कुछ ऐसा जो कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था पर ऐसी ही तो होती है ज़िन्दगी ख्वाबों से भी ज्यादा हैरान कर देने वाली. फर्क बस इतना है किसी गहरे ख्वाब में खतरनाक, खूबसूरत जो भी घटता है उसे आँखे साफ़ करते ही भुला दिया जाता है. दर्दनाक ख्वाब दिल को थोड़ा हिलाते ज़रूर हैं लेकिन हकीक़त झिंझोड़ ही देती है कि "देखो तुम ख्वाब से कांप रहे हो जबकि मैं यहाँ खड़ी हूँ अनगिनत ऐसे लम्हों के साथ जिनका तुम्हे कोई अंदाजा नहीं है" बिता साल, बीते ३६५ दिन कितनी खिलखिलाहट कितने आंसू...कोई हिसाब तो नहीं है पर कभी झटके, कहीं खड्डे और कुछ पानी की बौछार जैसा.


खुद को जानना कभी आसान नहीं रहा, हम दावा करते हैं खुद को समझने का जबकि हर गुज़रते पल के साथ खुद से अनजाने ही होते चले जाते हैं. ये अपना आप इतना दोगला है कि जैसे ही खुद को जानने का यकीन होता है ये इतनी बुरी तरह चेहरा बदलता है मानो आईने में कोई और ही शख्स है. तो अब देखना ये है ये अगले ३६५ दिन खुद से रूबरू करवाते हैं या यूँ ही 'पहचान कौन' का खेल खेलते रहते हैं.


नया हर लम्हा रहस्यमय है लम्हे के उस पार खिलखिलाती हंसी है या सुबकता दर्द. लम्हे के उस पार बाहें फैलाए दोस्त है या हाथ छुड़ाती चाहत. उस पार ऊँचाई पर बैठी ख्वाहिशें हैं या टूटती हिम्मत. उस पार बहुत कुछ होगा, किसी भी सूरत का, हमें अच्छा भी लग सकता है, नागवार भी गुज़र सकता है. उस पार के लम्हे अपनी तरफ खीचते हुए कहते हैं "आओ क्यूंकि मैं तुम्हें बदल डालने वाला हूँ, मुझसे गुजरने के बाद तुम वो नहीं रह जाओगे जो कभी थे, मैं तुम्हारा रंग गहरा कर दूंगा तुम जब पलट कर देखोगे तो पाओगे एक बीता लम्हा लेकिन वो बीता लम्हा तुम्हारे भी बीते रूप को ले जाएगा. तुम नए होगे, पहले वाले लम्हे से नए और आने वाले हर लम्हे में नए होते चले जाओगे, इस नए पन का सिलसिला रुकेगा नहीं"


गुज़रे साल की कई बातें यकीन दिलाती हैं कि इन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. कुछ का असर साल के शुरूआती महीनो पर रह भी सकता है. मगर फिर ये साल भी अपने असली रूप में आता हुआ १० साल पुरानी शादी जैसा हो जायेगा जिसमें कुछ भी ख़ास नहीं है. कुछ भी नया नहीं है. नए को पुराने होने में वक़्त ही कितना लगता है. आज डिब्बे का नया प्लास्टिक कवर चमक रहा है, कल इसके उतरते ही पुराने पन का सिलसिला शुरू हो जाएगा. हम खुशियों के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं, कामयाबी के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं या बुढापे के ये समझना मुश्किल है लेकिन इतना तो तय है हम खुदको बदलने के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं.


बदलाव अच्छा बुरा कैसा भी हो सकता है, ज़रूरी नहीं हर बदलाव बुरा ही हो कुछ बदलाव अच्छे भी होते हैं जैसे इस साल मैंने पहली बार अकेले ट्रेन और हवाई सफ़र किया. बिना टिकेट ट्रेन में चढ़ टीटी को पैसे देकर 2nd ac में सीट पायी. इस साल मैंने समुंदर देखा, इस साल 15 - 15 घंटे की ड्यूटी की, झूठा ही सही और 3 idiots देखी साथ ही इसी साल मैंने कुछ लोगों के दिल दुखाये, कुछ रिश्तों को अनदेखा किया, रास्ते खोये, उलझन में घिरी,ज़हन सुन्न होने की कगार पर पहुंचा, मैंने झूठ कहे यहाँ तक की रावण और दबंग देखी.


गुज़रे साल ने बहुत से सवालो के जवाब मांगे पर मेरे पास जवाबों की कमी है. सवाल देखते ही देखते आस पास खड़े हो जाते हैं और मैं उनसे घिर कर खुद को घुटा हुआ महसूस करती हूँ. ये सवाल बेहद तकलीफदेह हैं ये हमेशा झुण्ड बना कर आते हैं ताकि जब आप एक तरफ से भागें तो दूसरा दबोच ले और जब उससे पीछा छुडाएं तो तीसरा कलाई मरोड़ दे. बीते साल के कितने ही सवाल अभी भी अलमारी के अंदर बंद करने की कोशिश में लगी हुई हूँ. ताकि ये बाहर ना झाँक सकें लेकिन जब कभी भी अलमारी खुलती है ये फिर आ दबोचते हैं और मैं इन्हें सख्ती से बिस्तर के नीचे गद्दे से दबा देती हूँ. कभी कभी इनकी सांस रोकने के लिए मैं कमरे के खिड़की दरवाज़े बंद कर, कमरे को मछर भगाने वाले Coil के धुंए से भर देती हूँ मगर इन्हें इससे भी फर्क नहीं पड़ता बल्कि मैं खुद ही उस धुंए से खांसते खांसते बेहाल हो जाती हूँ.


नया साल, नए लम्हे कुछ जवाब लायेंगे इसकी उम्मीद नहीं है इन लम्हों ने खुद में इतना कुछ छुपाया हुआ है कि मैं उसे ही जानने के लिए बेसब्र हूँ. अपनी तरफ से कुछ चाहने का हौसला नहीं है. इन लम्हों के आगे मैं चाह भी क्या सकती हूँ. ये जो भी लायेंगे वो मनपसंद ना भी हो, दिलचस्प ज़रूर होगा.


12 comments:

  1. टाले हुए युद्ध अंततः लड़े ही जाते हैं. कभी पवन भाई की कही ये बातें आपके इस पोस्ट का एक सरल-सा जवाब है. अपनी उलझनों को जितने अच्छे से कागज़ों पर आपने उकेरा है.. बिल्कुल साफ है कि मन के अंदर वाकई यह उलझने आपसे भीषण द्वंद्व युद्ध कर रहे होंगे... पर आलमारी में डालना समाधान नहीं. सामना करें. जवाब दें और जब जवाब देते-देते थक जाएं तो एक गहरी नींद लें... सुबह उठेंगे तो हल्का महसूस होगा.

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  2. ... sundar lekhan ... saarthak charchaa !!

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  3. बहुत ही खूबसूरती और ईमानदारी से बीते लम्हों को सजोया और पिरोया है...सही कहा है आने वाला हर लम्हा नयी उम्मीदें लाता है और नयी ख्वाहिशें जगाता है..
    तुम्हारे beete पलों ने वाकई में दिल को छू लिया...हम तो एक लम्हें में कई जिंदगियां जीते हैं सो बीते ३६५ दिन बहुत ही बहुत लम्बे रहे...बहुत कुछ नया मिला..बहुत कुछ पुराना खोया..पर हाँ बहुत खुछ सहेजा और संजोया.और सब से बड़ी बात बहुत कुछ सीखा है...आशा औरविश्वास है नया साल आपके दामन को खुशियों से नवाज़े...हर पल में ख़ुशी हो..हर तमन्ना पूरी हो...Wish you a better time

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  4. प्रश्न ढलने के पहले ही उत्तर मिल जाते हैं बहुधा।

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  5. खुद को जानना शायद सबसे दुरूह कार्य है

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  6. बढ़िया लिखा है.
    परंतु ब्लॉग चालू करते ही, और दूसरे अन्य पन्नों को लोड करते ही गाना बजने लगता है. जो बहुत ही समस्याकारक है.
    आग्रह है कि गाना बजाने वाला विजेट हटा दें या फिर डिफ़ॉल्ट में उसे म्यूट रखें.

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  7. Hmm! देर से जाना आपको! लेकिन अच्छा लगा आपका अंदाज़-ए-बयां और अंदाज़-ए-गुफ़्तगू ! अभी और पढ़ना है आपको.फिर लिखूंगा.

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  8. hum bhi yahi yakin rakhte hai..!

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  9. इनदिनों ब्लॉग कम पढ़ना हो पा रहा है..
    फेसबुक में ज्यादा घुसा रहता हूँ ...
    आज घुमते- घामते इधर भी आ गया...
    अच्छा तो तुम लिखती ही हो.. इसमें कोई दो राय नहीं..
    मगर तुम बहुत सच्चाई से भी लिखती हो
    ये इस पोस्ट को पढ़कर यकीन हो गया....
    बधाई

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  10. hi fauziya kabhi hum pe bhi ek blog lik do i appriaciate ur blog i had seen u after long time. ab toh gussa chod do lets become friends. i m rahul singh that same chapu guy but now i have change.i hope abel is fine any way marriage ho gayi ya nahi..

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  11. तुम्हारे नज़रिए से तुम्हे जानना अच्छा लगा फौजिया , बहुत सोचती हो तुम .

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