Tuesday 1 January 2013

क्युंकि तुम मेरी जैसी थीं…


तुम्हें अभी नहीं मरना था. मैं तुम्हारा नाम नहीं जानती. फ़र्क भी नहीं पड़ता क्युंकि नाम ना जानते हुए भी मैं सुनती हूं कि तुम मेरे जैसी थीं. ऐसा नहीं है कि तुम मेरे अकेले का दूसरा रूप थीं. पर असल में तुम उन लड़कियों का दूसरा रूप थीं जो आज सड़कों पर हैं. जिनकी माएं आज नारे लगा रही हैं. तुम पर लोगों ने इल्ज़ाम लगाए कि तुमने रात के वक्त घर से बाहर कदम निकाल कर गलती की. ये भी कहा कि तुम जैसी ना जाने कितनी लड़कियों के साथ बलात्कार होते हैं बल्कि तुम्हारे दर्द को दूसरी स्त्रियों के दर्द के साथ नापा-तौला भी गया. छत्तीसगढ़ में क्या-क्या होता है. सोनी सूरी पर कितने सितम हुए, उसके मुकाबले तुम पर हुए प्रहार कितने छोटे थे. गुजरात के दंगों में औरतों के साथ कितना अन्याय हुआ.

मेरी मां ये सभी कुछ न्यूज़ या बातचीत में सुनती है, पर वो तुमसे जुड़ी क्युंकि उसे तुममें मैं नज़र आती थी. मैंने वो सारी गलतियां की हैं जो तुमने कीं, फ़िल्म देखने बाहर जाना, देर रात तक घूमना, लड़के दोस्तों के साथ बसों में चक्कर लगाना. मां जानती है मैं ये हिमाकतें जारी रखूंगी. इसीलिए कहती है उसने कहां सोचा होगा ऐसा हादसा हो जाएगा, बच्ची हंसी-खुशी फ़िल्म देखकर निकली होगी जबतक तुम सफ़दरजंग में थीं मां कहती रही वो अस्पताल सही नहीं है, ये नहीं कि किसी प्राइवेट अस्पताल में रखते जब पता चला कि सिंगापुर चली गईं तो कहने लगी सरकार बड़ी चालाक है, सोच रही है बच्ची वहीं मर-खप जाएगी तो दिल्ली में बवाल कम होगा…लोग क्या बेवकूफ़ हैं...सब समझते हैं

दिल्ली की लड़कियां अभीजीत मुखर्जी के हिसाब से सजधज कर विरोध कर रही हैं. ‘डेंटिड-पेंटिड’ औरतों की क्या हैसीयत. वो तो डिस्को भी जा रही हैं, उन्हें कुछ कहने का अधिकार क्युं होना चाहिए, वो तो जैसा कि विश्व-प्रख्यात है ‘डम्ब ब्लॉन्ड’ हैं. फ़लां औरत के साथ बलात्कार इसलिए जायज़ है क्युंकि वो मॉडर्न है, उसका क्या कैरेक्टर. फ़लां के साथ इस लिए सही है क्युंकि वो दलित है, उसकी क्या हैसीयत, वो तो पवित्र हो गई जो उंच्च-जाति के लड़कों ने उसे नोच खाया. चालीस साल की महिला का बलात्कार यूं हुआ क्युंकि फ़िल्मों में आइटम गाने होते हैं और दो साल की बच्ची को इसलिए चीरकर कर गटर में फेंक दिया गया क्युंकि लड़कों की शादी नहीं हो रही तो कुंठित हो गए हैं. हर बलात्कार के पीछे एक सफ़ाई. कहां से आती है ये सोच, किसके मन में पनपते हैं ये ख्यालात. हमारे ही भाई हैं जो सड़क पर निकलते ही किसी लड़की को टक्कर मारे बिना सड़क पार नहीं कर पाते. हमारे ही पिता या चाचा हैं जो पचास की उम्र में स्कूल जाने वाली बच्चियों की मोज़ों वाली टांगे देखते हैं. किसी और दुनिया से नहीं आए ये लार टपकाने वाले आदमी. इसी समाज के हैं, मज़े की बात तो ये है कि हम इन्हें समाज के इज़्ज़तदार लोगों का दर्जा देते हैं. ये इज़्ज़तदार हैं क्युंकि इनकी बेटी घर से नहीं भागी. इनकी बहनों की शादी बीस की उम्र में कर दी गई. इनकी बीवियां ज़बान नहीं चलातीं और खिड़कियों में नज़र नहीं आतीं. इनकी इज़्ज़त इनके घर की औरतें संभालती हैं, उसके तले दबती चली जाती हैं. मां नहीं चाहती कि मैं अकेले ऐसा कोई बोझ उठाऊं जो उन्होंने खुद उठाया. इज़्ज़तदार घर की लड़कियों की तरह मुझे किसी कोने में लटका कर नहीं रखा गया. दिल्ली में रहने वाली लड़कियां हर रोज़ किस आज़ाब को सह कर घर लौटती हैं मां जानती है. उन्हीं माओं की तरह जो सड़कों पर हैं।

तुम्हारी मौत का सुनकर मां सुन्न हो गई, वैसे लगता है कि मां जानती थी यही होगा. शाम से कह रही थी, रुक-रुक कर कह रही थी लगता है…अब नहीं बचेगी…नन्ही सी जान को दिल का दौरा भी पड़ गया मैं समझती हूं मां की इस कदर तकलीफ़ की वजह क्या है, मां तुममें मुझे देखती है. मां को लगता है तुम बच जाती तो मेरा एक रूप ज़िन्दा होता. वो तुम्हें सांस लेते देखना चाहती थी क्युंकि वो मुझे मरता हुआ नहीं देख सकती. जब पता चला तुम्हारी रूह वेंटिलेटर के साथ से ज़्यादा देर खुश नहीं रही और आखिरकार शरीर को छोड़ चल दी. मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मां को बताऊं पर वो इतनी दफ़ा तुम्हारी खैरियत पूछ चुकी थी कि बताना पड़ा. अम्मी…वो मर गई मैंने कहा तो मां चुप हो गई, थोड़ी देर बाद बोली उसे नहीं मरना था, ठीक हो जाती…इन सब से ऊपर उठकर आगे बढ़ती, पढ़ती-लिखती, धीरे-धीरे सारी तकलीफ़ें भूल जाती…मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, डाक्टर बनती फिर मां चुप हो गई और धीरे-धीरे कहती रही उसे नहीं मरना था..उसे नहीं मरना था.” मां का सदमा उस बेनाम लड़की से होते हुए मुझ तक आता है, मैं जी रही हूं, मां मुझसे जुड़ा सब कुछ ज़िन्दा चाहती है वो नहीं जानती असम का हाल, ना समझती है कश्मीरी पंडितों को, उसे तुम ज़िन्दा चाहिए क्युंकि तुम मेरी जैसी थीं. लापरवाह…बेपरवाह…  

10 comments:

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  2. You wrote somewhere every that gal's feelings who wanna live or living carefree with confidence on her own wings in this society full of beasts and at the same time presented in such a simple way the care and concern rather should say fear of well wishers of this new generation gal!!

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  3. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 05/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  4. प्रताप1 January 2013 at 21:30

    कश्मीर में एक लड़की को बलात्कार के बाद आरी से चीर दिया था और भी न जाने कितने अत्याचार किये थे, उन्हें भी जोड़ना न भूलें.

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  5. फौज़िया जी! एक अरसे के बाद आपको देख रहा हूँ ...आपके बागी तेवरों से ज़ुदा एक ग़मज़दा और संज़ीदा लड़की की तरह। ..हर कोई गमज़दा है, हर माँ के दिल में एक ख़ौफ़ ताज़ा हो गया है। और मुल्क के हुक़्मरान मुस्कुराते हुये सारा तमाशा देख रहे हैं। सच्ची, यह मुल्क इंसानों के रहने के लायक नहीं रहा अब।

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  6. बेहतरीन रचना “अम्मी…वो मर गई” मैंने कहा तो मां चुप हो गई, थोड़ी देर बाद बोली “उसे नहीं मरना था, ठीक हो जाती…इन सब से ऊपर उठकर आगे बढ़ती, पढ़ती-लिखती, धीरे-धीरे सारी तकलीफ़ें भूल जाती…मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, डाक्टर बनती” फिर मां चुप हो गई और धीरे-धीरे कहती रही “उसे नहीं मरना था..उसे नहीं मरना था.” मां का सदमा उस बेनाम लड़की से होते हुए मुझ तक आता है, मैं जी रही हूं, मां मुझसे जुड़ा सब कुछ ज़िन्दा चाहती है” वो नहीं जानती असम का हाल, ना समझती है कश्मीरी पंडितों को, उसे तुम ज़िन्दा चाहिए क्युंकि तुम मेरी जैसी थीं. लापरवाह…बेपरवाह…

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  7. निशब्द हूँ ...मुझे कोई भी शब्द नहीं मिल रहे इस शुब्ध हृदय से

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  8. फौजिया ......सारा दर्द उड़ेल दिया ...एक माँ का दर्द ...एक माँ की चिंता ...एक माँ की सोच ....और नि:शब्द कर दिया ....!

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  9. बहुत अच्छी है.....

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  10. Kabile Tarif Hai... ye kabiliyat aur jajba..jis ye shabd piroye gaye hai.Bahut Bariki se chune gaye hai. Bahut Badhiya.

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