Friday, 15 January 2010

यूथ आइकॉन से आस टूटी

तो सानिया मिर्ज़ा शादी के बाद टेनिस नहीं खेलेंगी. वाह क्या बात है लड़की इस्लाम के रास्ते पर लौट रही है वैसे भी लड़की को शादी के बाद घर बार, बच्चे और परिवार ही संभालना होता है. आदर्श भारतीय नारी को यही शोभा देता है की वो अपनी ज़िन्दगी अपने परिवार के नाम कर दे. मजाजी खुदा यानी शौहर को किसी बात से इनकार ना करे.
सानिया मिर्ज़ा ने वही किया है जो २ साल पहले ऐश्वर्या राय ने पीपल के पेड़ से सात फेरे ले कर किया था यानि हिन्दुस्तानी महिला को ये मिसाल दी की "लड़किओं चाहे कितना ही आगे क्यूँ ना बढ़ जाओ पर जब बात शादी की आये तो सब छोड़ छाड़ कर पत्नी धर्म में लग जाओ."
माना की सानिया को बहुत सी लड़कियां आदर्श मानती हैं, माना की हिन्दुस्तानी समाज ने कभी सानिया की वजह से अपने अन्दर झाँकने की कोशिश की हो पर कोर्ट में शोर्ट लगा कर विपक्षी खिलाडी को कमज़ोर करने वाली सानिया को शादी के बंधन ने कमज़ोर कर दिया. आज बहुत सी लड़कियां अपने करियर के लिए माता पिता को सानिया का हवाला दे कर मनाती हैं. माँ बाप को उम्मीद है की उनकी बच्चियां भी कुछ कर दिखायेंगी जिस समाज में आज भी लड़कियों के लिए टीचिंग फील्ड को सही सामझा जाता है वहां सानिया के टेनिस शोर्ट्स ने आम इंसान के दिमाग पर भी शोर्ट मारा. जैसे जैसे सानिया टेनिस जगत की ऊँचाइयों चढ़ी वैसे वैसे भारतीय लड़कियों के अरमान भी ऊंचाइया चढ़े. रास्ता मुश्किल है पर लड़कियों को इस डगर पर चलने की हिम्मत सानिया से ही मिली, आज भी जब लड़कियां सानिया की तरफ देखती हैं तो उन्हें उम्मीद दिखाई देती है समाज के बदलने की, धर्म के ठेकेदारों के पिघलने की. सानिया ने किसी फ़ालतू के फतवे की परवाह किये बग़ैर जिस तरह अपना खेल जारी रखा वो काबिले तारीफ़ था. सानिया की हिम्मत ने युवा पीढ़ी को साबित किया की अगर युवा चाहें तो धर्म का ढोल पीटने वालो को झुकना होगा.
सानिया के इस फैसले ने युवा पीढ़ी और ख़ास कर महिला सशक्तिकरण की बात करने वालो के मुह पर चांटा मारा है. साथ ही महिलाओं को मान मर्यादा की चादर में लपेट कर चार दिवारी में रखने वालो के सीने चौड़े कर दिए हैं. जब सानिया को यूथ इकॉन अवार्ड मिला था तो लगा था की हाँ ऐसा ही होना चाहिए हमारा यूथ आइकॉन स्मार्ट, करियर oriented और निडर पर अब फिर सोचना होगा क्या सानिया यूथ आइकॉन के सम्मान की हक़दार हैं. क्या आज के युवाओं का आइकॉन कोई ऐसी महिला हो सकती है जो २३ साल की उम्र में ही अपने करियर से संन्यास लेने की बात कहे.
(किसी को बुरा लगा हो तो बुरा मत मानियेगा चांटा पड़ा है तिलमिलाहट तो होगी ही )

9 comments:

  1. It's a poor reflection on the state of affairs in our society... I guess a married muslim girl can't wear 6-inch skirts.. for if we believe those moral brigades it'll be a threat to islam!!!

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  2. आपने बिलकुल सही कहा और आपका गुस्सा भी जायज है. सानिया के इस फैसले का उसके करियर पर तो असर पड़गा ही साथ साथ उन लड़कियों पर भी इसका प्रभाव पड़गा जो सानिया को आधार बना कर अपनी उड़ान को बने देना चाह रहे थे.

    सानिया को इतनी जल्दी यह फैसला नहीं करना चाहैए था.

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  3. IS UCHAAI PAR PAHUCHNE KE BAAD BHI KAI KAAM HAI. SHADI KE BAAD SAMAJ KE LIYE AUR BAHUT KUCHH KARNA JAROORI HAI.

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  4. वैसे भी उनका खेल ढलान पर है, 23 की उम्र बहुत ज्यादा होने लगी आजकल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खेल के लिये… समय रहते फ़ैसला कर लिया सानिया ने…। उसकी रैंकिंग कभी भी 40 से ऊपर गई नहीं और आगे जाने की उम्मीद भी नहीं है, बेहतर है कि शादी करके खेल से सन्यास ले ले… वह जितने शीर्ष पर पहुँच सकती थी, पहुँच चुकी। यह उसका "पर्सनल मामला और निर्णय" है, हम लोग क्या कर सकते हैं इसमें।

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  5. फौजिया जी,
    आप सानिया के साथ अन्याय कर रही हैं. उन्होंने शोर्ट्स पहनने पर उठे ऐतराज का मुंहतोड़ जवाब दिया, उन्होंने लड़कियों और खासकर मुस्लिम लड़कियों को एक नई राह दिखाई, उन्हें नए मुकाम हासिल करने का हौसला दिया और यकीनन वे नौजवान लड़कियों की रोल माडल बन गयीं. लेकिन अपने कैरियर में अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुँचने के बाद यदि उन्होंने अब परिवार बसाने का फैसला कर लिया है तो इस पर किसी को ऐतराज या निराशा क्यों होनी चाहिए? यदि उन्हें लगता है कि वे शादी करके अपने परिवार को पूरा समय देना चाहेंगी और इसके लिए टेनिस को अलविदा कहेंगी तो निश्चित ही यह उनका निजी फैसला और अधिकार है. उनके ऐसा करने से उनके द्वारा कायम की गयी मिसाल या उनके द्वारा दिखाई गयी राह अंधकारपूर्ण नहीं हो जाती. अगर आप यह कहना चाहती हैं कि उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए थी, तो यह उनके निजी जीवन का अतिक्रमण है. यदि आप यह कहना चाहती हैं कि शादी के बाद भी उन्हें टेनिस खेलते रहना चाहिए था तो मैं समझता हूँ कि इस फैसले का अधिकार सिर्फ उन्हें है कि वे कब तक खेले. उनके जैसी शख्शियत ने अपने परिवार या ससुराल वालों के दबाव में ऐसा फैसला लिया होगा यह भी संभव नहीं है. स्टेफीग्राफ ने भी आंद्रे अगासी से शादी करने के बाद टेनिस छोड़ दी. आखिर उन पर तो "इस्लाम" के रास्ते पर जाने का कोई दबाव नहीं था.........

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  6. ये मामले अब बहुत पेचीदा हो चले हैं। लगता है जैसे कट्टरपंथियों और कठमुल्लों में कोई ढंका-छुपा गंठजोड़ या खुली प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है। दूर से अंदाज़ा लगाना मुश्क़िल है कि कौन अपना निर्णय कैसे दबावों, डरों और परिस्थितियों के चलते ले रहा है। मगर आपका गुस्सा सौ फ़ीसदी जायज़ है।

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  7. खेल बंद करने का फैसला शादी से नहीं बल्कि उम्र से सम्बंधित है, उन्होंने शादी का फैसला ही करियर को ढलान पर देख लिया है. खेल की दुनिया में उम्र बहुत मायने रखती है. इस कदर गलाकाट प्रतियोगिता है की बाईस की उम्र के बाद महिला टेनिस में खिलाडियों को उम्रदराज़ माना जाने लगता है. वैसे भी सानिया में समर्पण की कमी थी. शुरू में तो उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया, पर बाद में ग्लैमर ने उनका ध्यान बंटा दिया. वे प्रेक्टिस कोर्ट से ज्यादा पार्टियों में, शूटिंग में और मोडलिंग करती दिखाई देने लगीं. अगर केवल विश्व रेंकिंग पर उनकी निगाह रहती तो शायद वे टॉप टेन रेंकिंग तक पहुँच भी सकती थीं.

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  8. मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए... और मैं होता भी कौन हूँ इस तरेह कहने वाला... फिर भी अगर दिल की बात कहूँ तो तो मुझे भी सानिया में विश्वास बहुत कम था, यह देश खेल को ज्यादा तरजीह नहीं देता... अनुभव को महत्त्व देता है... इसलिए यहाँ कब्र में पैर रखने वाले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनते हैं... चाहे कितने भी योग्य क्यों ना हों... फिर अपना देश हीरो बनाने में भी सबको आगे रहता है... ये आयातित खेल है... शोर शराबा से उपजा ग्लेमर... जनता आइकोन बनाने को बेक़रार है... लीक से हटकर कहूँ तो जो बात आपने उठाई है वो वाजिब है... हमारे तरफ यह निर्दयता से कहा जाता है की "कुछ भी कर लो फुकना को चूल्हा है और खेलना तो बच्चे ही हैं" इसमें मैं भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हूँ और शर्मिंदा भी (क्यों की अभी तक कोई बदलाव नहीं कर सका) तो मेरी सहमति आपके मुद्दे से है किन्तु सानिया के बारे में नहीं क्योंकि शायद उनको अंदाज़ा हो गया होगा की ज़मीनी हालत क्या हैं खेल की वो भी टेनिस के ?

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  9. "यूथ आइकॉन से आस टूटी" आलेख आपके उस आक्रोश कों अभिव्यक्त कर रही है जो पहले कभी सानिया के लिए प्यार हुआ करता था |वाजिब है हो भी क्यों नहीं ! हम युवाओं की सबसे बड़ी कमजोरी तो यही है की हम इन युवाओं कों अपना आदर्श मानकर अपना गंतव्य तय करते है |सोच युवा होते हुए भी अर्थ कों महत्व देने में प्रेरणा श्रोत बने ये यूथ आइकोन देश के उन युवाओं कों भूल जाते है जिनकी जिन्दगी इनके इस इकबालिया बयान के बाद अधर में पर जाती है |
    शुभकामनाओं समेत
    सचदेव

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