कैसे जीए कैसे मरे
क्या फर्क पड़ा,
इमारतें गिराईं, बुनियादें हिलाईं
दूध-बारूद घोल बच्चों
को पिलाईं...
तुम्हारी शुरुआत ने हमें देखो कहाँ पहुँचाया,
तुम बैठे थे
आलिशान महल में,
हमें नसीब नहीं होती
नए शहर में नयी पनाहगाह..
तो अब जब मिल गया है तुम्हें
परमानेंट ठिकाना,
तो एक विडिओ टेप ज़रूए भिजवाना...
कहाँ गए तुम, कहाँ जा पाए
अपने जिहाद से क्या
जन्नत पा पाए,
खबर देना हमें कि
ऊपर बारूद है क्या,
गर नहीं तो दोज़ख में
तेज़ाब है क्या...
जन्नत पहुंचे
तो बताना हूरे असल में कैसी हैं,
क्या अलिफ़ लैला जैसी
अरबी पौशाक पहनती हैं या
लंबा सा नकाब ओढ़ती हैं...
जिस शरबत का कुरान में जिक्र है
बताना क्या वो शराब है...
बता सको तो ये भी बताना
कि हिटलर का दरवाज़ा कौन सा है,
क्या महात्मा को वहां भी लाठी की जगह
हूरें नसीब हैं,
कहना ये भी कि सद्दाम सुन्नियों की जन्नत में गया
या वहां शियाओं का राज है...
बुद्ध भगवान् हैं या आम इंसान है इसकी खबर देना
ओशो और साईं क्या पडोसी है ...
सबकी खबर लेना...
क्यूंकि
कैसे जीए कैसे मरे
क्या फर्क पड़ा
ज़िन्दगी को पकड़ने की
कोशिश करते हुए,
तुम भी गए तड़पते हुए
जैसे सभी गए मौत से लड़ते हुए...
क्या फर्क पड़ा,
इमारतें गिराईं, बुनियादें हिलाईं
दूध-बारूद घोल बच्चों
को पिलाईं...
तुम्हारी शुरुआत ने हमें देखो कहाँ पहुँचाया,
तुम बैठे थे
आलिशान महल में,
हमें नसीब नहीं होती
नए शहर में नयी पनाहगाह..
तो अब जब मिल गया है तुम्हें
परमानेंट ठिकाना,
तो एक विडिओ टेप ज़रूए भिजवाना...
कहाँ गए तुम, कहाँ जा पाए
अपने जिहाद से क्या
जन्नत पा पाए,
खबर देना हमें कि
ऊपर बारूद है क्या,
गर नहीं तो दोज़ख में
तेज़ाब है क्या...
जन्नत पहुंचे
तो बताना हूरे असल में कैसी हैं,
क्या अलिफ़ लैला जैसी
अरबी पौशाक पहनती हैं या
लंबा सा नकाब ओढ़ती हैं...
जिस शरबत का कुरान में जिक्र है
बताना क्या वो शराब है...
बता सको तो ये भी बताना
कि हिटलर का दरवाज़ा कौन सा है,
क्या महात्मा को वहां भी लाठी की जगह
हूरें नसीब हैं,
कहना ये भी कि सद्दाम सुन्नियों की जन्नत में गया
या वहां शियाओं का राज है...
बुद्ध भगवान् हैं या आम इंसान है इसकी खबर देना
ओशो और साईं क्या पडोसी है ...
सबकी खबर लेना...
क्यूंकि
कैसे जीए कैसे मरे
क्या फर्क पड़ा
ज़िन्दगी को पकड़ने की
कोशिश करते हुए,
तुम भी गए तड़पते हुए
जैसे सभी गए मौत से लड़ते हुए...
waaah. bilkul sateek, sarthak aur samayik bhee. prasangik rachna k liye badhai
ReplyDeleteजबर्दस्त उदगार। इतनी जल्दी आपने इतनी अच्छी कविता लिख ली। तारीफ तो करनी ही होगी। कविता मुझे पसंद। खासकर यह लाइन - क्या महात्मा को वहां भी लाठी की जगह
ReplyDeleteहूरें नसीब हैं,
कहना ये भी कि सद्दाम सुन्नियों की जन्नत में गया
या वहां शियाओं का राज है...
तो अब जब मिल गया है तुम्हें
ReplyDeleteपरमानेंट ठिकाना,
तो एक विडिओ टेप ज़रूए भिजवाना...
कहाँ गए तुम, कहाँ जा पाए
अपने जिहाद से क्या
जन्नत पा पाए,
खबर देना हमें कि
ऊपर बारूद है क्या,
गर नहीं तो दोज़ख में
तेज़ाब है क्या...
जन्नत पहुंचे
तो बताना हूरे असल में कैसी हैं,
खार खाए बैठी थी क्या ? ऐसे दिन के लिए के बस इंतज़ार में थीं कि ऐसा हो कुछ ऐसे सवाल करें... बहरहाल... बहुत अच्छे सवाल उठाये हैं... unke अनुगामियों को पढ़कर इस बारे में सोचना चाहिए.
बहुत खूब फौजिया....
ReplyDeleteखबरिया न्यूज चैनल से अलग, ओसामा की मौत पर तुम्हारे ये शब्द सोचने पर मजबूर करते हैं...
काफी ताज़ा है... दमदार लिखा है ... सभी को समझना चाहिए कि कफ़न में जेब नहीं होती... फिर क्यों वो लोग इतनी तबाही करवाते हैं...बदनामी के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिलता...
ReplyDeleteबहुत अच्छे!!
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteअच्छे कर्मवालों को मिलता है वहां रिजेर्वेशन.
ReplyDeleteऔर बुरे कर्मवाले को नहीं मिलती वहां परमीसन.
इसलिए हिटलर जैसो का जन्म होता है दुबारा.
कैसे जीए कैसे मरे
ReplyDeleteक्या फर्क पड़ा
ज़िन्दगी को पकड़ने की
कोशिश करते हुए,
तुम भी गए तड़पते हुए
जैसे सभी गए मौत से लड़ते हुए...
..सबकुछ यहीं धरा रह जाता है ..,. सबकुछ देखते हुए भी इंसान सबक नहीं लेता बस सबकुछ अपने लिए हथियाने में लगा रहता है .....
सार्थक चिंतनशील प्रस्तुति
वाकई लाजवाब रचना है, बहुत दिन बाद इस तेवर की और ऐसी सुन्दर रचना पढने को मिली है!
ReplyDeleteलाज़वाब, बेहतरीन, बहुत ही सुन्दर, जितनी तारीफ़ की जाये कम है इस रचना के लिए!
ReplyDeleteफौजिया जी ! आपको और आपके इन तेवरों को मेरा नमस्कार ! लगता है .... मुद्दतों से बैठी थीं इन सवालों को पूछने के लिए ......पर कोई मिला न था ...आज एक बन्दा मिल गया तो पूछ डाले सारे सवाल .......मगर ज़वाब देने वाला तो मुंह छिपाकर बैठ गया है ऊपर जाकर .....
ReplyDelete....आज पता चल गया...कि फौजिया के सीने में कितनी आग भरी पडी है .........इस तेजाबी वारिश के लिए एक बार फिर आपको तहेदिल से सलाम !
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
salaam!
ReplyDeleteBAHUT ACCCCHE ...
ReplyDeleteसारे सवाल मरने वाले से ही . कुछ मारने वालों से भी पूछा होता .
ReplyDeleteसबको उसके घर जाना,
ReplyDeleteसब कुछ तो बिसराना है।
प्रिय फौजिया, चूंकि लादेन की मौत की उम्र अभी कुछ ही घंटे हुई है इसलिए आपकी इस कविता की उम्र उसकी मौत से भी कुछ घंटे कम लगाता हूं। इतने कम समय में आपने ऐसी उम्दा रचना कैसे कर दी यह हैरत की बात है? जैसे हम अखबार वाले मरनासन्न महान लोगों पर पहले से पेज बनाकर उनके मरने का इंतजार करते हैं और उनकी मौत के अगले दिन उसे छाप देते हैं ऐसा तो कुछ मामला नहीं है न? खैर ये तो मजाक की बात थी लेकिन लादेन के बहाने जिहाद, जन्नत,धर्म, राजनीति पर आपने वाजिब सवाल उठाया है। हूरों की पर्दा की बात में तो गजब की व्यंजना है और वह धरती पर महिलाओं की अमानवीय पर्दा पर्था से जुड़ती हैं। मैं किसी भी रचना की 'क्या कविता है' टाइप की तारीफ अच्छा नहीं मानता सो ऐसा तो नहीं कह सकता। लेकिन मेरी अब तक की आपकी पढ़ी कविताओं में इसने सबसे अधिक प्रभाव छोड़ा है।
ReplyDelete-उमा
विचारों का अचार
ReplyDeleteइतनी जल्दी पक गया
स्वादिष्ट लगा
महक भी खूब आ रही है।
बेहतरीन अल्फाज है
ReplyDeleteभाव सुन्दर
गज़ब!
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली एवं झकझोरने वाली प्रस्तुति ! बहुत समय के बाद कोई वाकई चेतना को कुरेदने वाली दमदार रचना पढ़ने के लिये मिली ! आपको बहुत सी बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteसुंदर भाव एवं रचना।
ReplyDeleteबहुत बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
bahut acchi rachna hai aapki...
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति. वहीँ वो भी मिल जायेंगे, जो लोगों को भूखे मारकर अपनी तिजोरी भरते-भरते मर जाते है, अपने स्वार्थ में तमाम गरीब मुल्कों को तबाह करते हैं!
ReplyDeleteजैसे दो मिनट में 'मैगी' तैयार हो जाती है उसी तरह दो मिनट में आपने इस कविता का सृजन कर दिया. और यह वाकई बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक है....
ReplyDeletevishvguru.blogspot.com के हल्ला बोल पर आपकी यह रचना चस्पा की गयी है ....आपकी इजाज़त के बिना ...इसलिए माफी चाहूंगा. दर असल मुझे लगा की इतनी समसामयिक और तेजाबी रचना पर तो कोई भी डाका डालने के लिए मचल उठेगा ...तो क्यों न पहले मैं ही हाथ साफ़ कर दूं. अब आपकी नाराज़गी झेलने के लिए भी तैयार हूँ....
ReplyDeleteसबकी गति एक ही है , मगर मारते समय व्यक्ति यह नहीं सोचता ...
ReplyDeleteभीतर दबा रोष एकदम से कविता में छलक आया ...
अच्छी प्रस्तुति !
वाह ...गज़ब..
ReplyDeletegood one.
ReplyDeletesatik baat kahi hai...
ReplyDeleteसच्चाई को बखूबी उकेरा है।
ReplyDeleteवाह ! वाह ! वाह !
ReplyDeleteगज़ब की अभिव्यक्ति ......भावपूर्ण , ओजपूर्ण , दर्द से लबरेज़
निराले ढ़ंग से लिखी गई एक नई रचना.....वाकई बेहतरी. बार-बार पढ़ने लायक. हर वक्त जवान रहने वाली रचना है ये.
ReplyDeleteएक शेर अर्ज़ करना चाहूँगा ......
ReplyDeleteक्या खूब लिखती हो
बड़ा सुन्दर लिखती हो
फिर से लिखो
लिखती रहो
..............................
बुरा मत मानियेगा
बस मन में आया और हमने लिख दिया
हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे .........
तो बताना हूरे असल में कैसी हैं,
ReplyDeleteक्या अलिफ़ लैला जैसी
अरबी पौशाक पहनती हैं या
लंबा सा नकाब ओढ़ती हैं...
हा....हा....हा......
ज़न्नत मिले तो बताएं न .....?
देखिये आपका नकाब हमें यहाँ तक खींच लाया ......
लाजवाब .....!!
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना , बहुत भावपूर्ण तरीके से आपने रखी है अपनी बात । मुझे लगता है कैसे जिये और कैसे मरे - इसमें ही सार है और मायने है हमम्रे वजूद का । जियो ऐसे कि सबको मुस्कुराहटें और सांसें दो और मरो तो ऐसे की दुनिया रोए ।
ReplyDeleteasli deshbhakt to yaha jama hain. vande mataram
ReplyDeleteज़बर्दस्त, एक अत्यन्त सुखद प्रस्तुति...
ReplyDeleteफ़ौज़िया जी आपने तो कायल के साथ साथ घायल भी कर दिया। आप जितनी सुन्दर हो उतनी ही सुन्दरता से इस अभिव्यक्ति को अंजाम दिया है। बहुत ही प्रासंगिक। बहुत उम्दा।
ReplyDeleteबाप रे बाप....!!!
ReplyDeleteक्या क्लास लगाई है आपने................!!!!!!!!
बाप रे बाप....!!!
ReplyDeleteक्या क्लास लगाई है आपने................!!!!!!!!
हल्ला बोल से आपके ब्लॉग का पता मिला। यहाँ तो एक से एक मोती बिखरे पड़े हैं। फिलहाल आपके ब्लॉग को बुकमार्क कर लेता हूँ।
ReplyDelete- आनंद
अचानक आपके ब्लॉग से यहां पहुंचा हूं, गूगल+ के एक दोस्त के सर्किल के जरिए..मैं प्रोज का आदमी हूं..कविताएं ज्यादा समझ नहीं आतीं, लेकिन इसे पढ़ने के बाद अच्छा लगा..खूबसूरती जो मुझे लगी कि आपके सवालों में खुश्की है जिसकी दरकार है लेकिन मासूमियत भी बरकरार है.. शायद मैं लिखता तो जरूर तल्ख़ हो ही जाता..खैर.. शुक्रिया..
ReplyDelete........निशब्द!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletesuperlyk......:-)
ReplyDeletenice
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