बहुत
चाव से प्यार किया था. उतने ही चाव
से खुद पिता से शादी की बात भी की थी. वो आज
के ज़माने की लड़की थी. दुनिया की रफ़्तार
के साथ क़दम मिलाना, अच्छे से अच्छे
कपड़े पहनना, खुद पैसे कमाने का जोश
होना, पार्टी की जान होना, इन सभी
और इनके जैसी और भी कई बातों और आदतों से मिलकर बनी थी दिशा. ‘थी’
इसलिए क्युंकि धीरे-धीरे उसकी शख़्सियत के ये
रंग धुंधलाने लगे हैं.
दिशा
अब पूरी तरह से पहले जैसी नहीं है. क़रीब तीन साल पहले उसने अपनी पसंद से शादी
की. बस तबसे ही उसकी रूह ने छिलना शुरू कर दिया. रोज़-ब-रोज़ छिलने से शख्सियत
महीन हो रही है, जैसे कभी भी किसी
बेहद पुराने सूती के दुपट्टे की तरह चर्र से फट जाएगी.
सौरभ
से वो किसी ऑफ़िस पार्टी में टकराई थी. दो-तीन महीने साथ घूमने फिरने के बाद ही दोनों ने अपने-अपने घर पर
शादी की बात की और धूमधाम के साथ अपनी प्रेम-कहानी को अंजाम
दिया. प्रेम-कहानी का अंजाम
वाक़ई शादी होता है, शादी के बाद
चीज़ें बदल जाती हैं, प्रेमी पति बन जाता
है जैसी बातों पर उसने कभी तवज्जो नहीं दी क्युंकि उसके आसपास हुए सारे प्रेम-विवाह इन बातों
को मिथक बना रहे थे. वो खुद
भी कुछ हफ़्ते खुश थी. सौरभ उसका बहुत ख्याल ना भी
रखता हो पर जानबूझ कर परेशानियां खड़ी नहीं करता था.
अब
जब वो शुरू के उन खुशहाल दिनों के बारे में सोचती है तो पाती है, सौरभ बस तब
तक ही सभ्य था जब तक वो दोनों सौरभ के मां-बाप के साथ
एक ही घर में रह रहे थे. शादी के दो
हफ़्ते बाद जब दोनों अलग घर में शिफ़्ट हुए तब जैसे अचानक ही दिशा ने अपने पति का अलग रूप देखा. वो दोनों
हनीमून पर कहीं घूमने नहीं जा गए थे. ये पहली
बार था जब दिशा अकेले घर में सौरभ के साथ थी. नए घर
में उनका पहला दिन था. शिफ़्टिंग के बाद
थक कर वो बिस्तर पर नींद से ढेर हो गई थी. शायद आधा-एक घंटा बीता होगा जब उसने अपने पैरों में दर्द महसूस किया. वो इतनी
ज़्यादा थकी हुई थी कि दर्द के बाद भी सोती रही. कुछ ही मिनट
बाद वही दर्द कलाईंयों में भी होने लगा. मंद-मंद दर्द से तड़पते हुए दिशा ने आंख खोली तो उसके होश उड़ गए. वो बिना
कपड़ों के अपने पलंग से बंधी हुई थी. सामने सौरभ वीडियो कैमरा लेकर खड़ा था.
दिशा को याद है वो बहुत बुरी तरह से चीखी थी. उस वक्त
सौरभ ने हंसते हुए कैमरा बंद कर दिया था, उसके हाथ-पैर खोल दिए थे.
कुछ
दिनों बाद सौरभ ने फिर से सोई हुई दिशा के साथ वैसा ही किया, बस इस
बार बात और आगे बढ़ी थी. इस बार
उसे इतनी आसानी से खोला नहीं गया था. दिशा के लगातार
चीखने-चिल्लाने के बावजूद सौरभ ने खुद को उसपर थोप दिया था. आज जब
इस बारे में सोचती है तो लगता है उस दिन उसे वो घर और सौरभ दोनों को छोड़ देना चाहिए था. तब दिशा
ने सौरभ से बातचीत बंद की थी, अलग कमरे में सोने लगी,
इससे ज़्यादा कुछ नहीं.
चुप
रहकर, सहकर, ये सोच
कर कि सामने वाला बदल जाएगा, उसे अपनी गलती का एहसास
होगा मानकर हम अपना कितना बड़ा नुकसान करते हैं ये वक्त बता ही देता है. गलत को गलत
कहकर फ़ौरन कोई ठोस कदम उठाना कितना अहम है, ये हमें
अपनी बच्चियों को सिखाना बहुत ज़रूरी है.
दिशा
ने सोचा आखिर सौरभ उससे प्यार करता है, अगर वो उसे
समझाने की कोशिश करे, थोड़ा नाराज़ होकर, थोड़ा
प्यार दिखा कर तो वो संभल जाएगा. ऐसा होना था ही
नहीं, सो हुआ भी नहीं. बस सब
ठीक करने के इस खेल में हर दफ़ा दिशा का आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दो फ़िट और गड्ढे में गिरा. वो सौरभ
को बदल तो नहीं पाई, हां खुद काफ़ी बदल गई.
दिशा
ने देखा कि जितना ज़्यादा वो सौरभ के रंग में रंगती गई उतना ज़्यादा सौरभ ने उसे पैर की नोक पर रखना शुरू कर दिया. वो नौकरी
करती थी और घर का भी सारा काम उस पर आ गिरा था, बेशक साफ़-सफ़ाई के लिए काम वाली आती थी पर एक घर को रहने लायक बनाने के लिए उससे ज़्यादा देना पड़ता है. क़रीब एक साल
तक दिशा ने खुद से लड़ते हुए सौरभ को मौक़े पर मौक़े दिए. पानी की एक
भरी बाल्टी तक उठाने में वो उसकी मदद नहीं करता था, जैसे फ़र्क ही ना
पड़ता हो. भरा हुआ सिलेंडर वो खुद
ही ढकेलते हुए किचन तक पहुंचाती थी. कभी सौरभ को कह
दो तो सीधा जवाब “तुम सेल्फ़-डिपेंडंट
नौकरी पेशा औरत हो, जब खुद
इतना भी नहीं कर सकती तो ऑफ़िस में कैसे काम करती हो”.
आखिरकार
जब थक-हारकर लगभग डेढ़ साल बाद वो वापस
अपने मां-बाप के पास
लौटी तो जिस्म पर चोट के निशान तो थे नहीं जो दिखाती. बस बंद
कमरे में मां से लिपट कर रोई और दबे-छुपे लफ़्ज़ों में हालात बताए. मां
को जितना समझ आया उतना उन्होंने डैडी को बता दिया, शायद उतना काफ़ी था अब
दो साल से तलाक़ को लेकर मसला अटका हुआ है. सौरभ तलाक़ को राज़ी
है पर दिशा के पिता उसे सबक सिखाना चाहते हैं. वक़ील कहता है तुम्हारे
हस्बेंड को घरेलू हिंसा के तहत लपेटना पड़ेगा. पर घरेलू
हिंसा के जो पैमाने हैं उसपर तो दिशा का केस टिकता ही नहीं.
प्यार, शादी, रिश्ते, इंसानियत
ने दिशा को पहले ही इतना तोड़ दिया है कि क़ानूनी लड़ाई की ना हिम्मत बची है ना चाहत. वो अब
बस तलाक़ चाहती है, सौरभ को उसके
किए की सज़ा मिले या ना मिले अब उसके लिए मायने नहीं रखता.
शायद यह सैडिज़्म का केस है ! साइको काउंसेलिंग का सहारा लिया जा सकता था ।
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