Sunday, 30 August 2009

वो किन्नर है!!!

वो गालियाँ देते हैं, आम लोगों को डराते धमकाते हैं, किसी को कुछ भी बोल देते हैं, ऐसे ऐसे शब्द इस्तेमाल करते हैं की कान मैं पिघलता हुआ शीशा उडेल दिया हो, वो किन्नर हैं. चमकते हुए कपडे कड़ी धुप में बेहद डार्क मकेउप के साथ बस स्टैंड पर खड़ी रहती हैं, चेहरा धुप से सूर्ख हो रहा है या लाली से मालूम नहीं. लोग कहते हैं की किन्नर गुंडा गर्दी करते हैं, बदतमीजी पर उतर आते हैं, लोगों के डर का फ़ायदा उठाते हैं. पर वो इस हाल में क्यूँ हैं यह कोई सोचना नहीं चाहता, हमारे समाज में जानवरों के भी रक्षक हैं, बड़ी बड़ी हस्तिया जानवरों पर हो रहे ज़ुल्म के लिए आवाज़ उठाती हैं और चंदे के नाम पर पैसा भी बटोरती हैं. पर किन्नरों का समुदाये आज भी अपने अधिकारों के लिए एक मुश्किल लडाई लड़ रहा है. जन्म के वक़्त ही माँ बाप छोड़ देते हैं और अगर ना भी छोड़ना चाहें तो समाज छुड़वा देता है. उन बच्चो को अपनाया नहीं जाता और फिर शुरू होता है है उनकी ज़िन्दगी का सफ़र जहाँ वो दूसरे किन्नरों के यहाँ ही पलते है बड़े होते है, ना पढाई ना लिखाई. ना मुस्तकबिल की बातें ना माजी की सुनहरी यादें...अब ऐसे में बड़ा होकर अगर वो लोगों से पैसा ना वसूले तो क्या करे क्यूंकि यही तरीका उन्होंने सीखा है...
हम प्रजातंत्र की बातें करते हैं, समान अधिकार के लिए debates करते हैं मगर ये समान अधिकार औरत मर्द के अधिकारों तक ही सीमित रहता है...समाज में तीसरा सेक्स भी है ये क्यूँ याद नहीं रहता? असल मैं हम बेहद मतलबी और दकियानूसी हैं, हमे क्या फर्क पड़ता है ? अपनी सोच के साथ चलते हुए दुनिया जहां पर राय देते हैं पर किन्नरों के पक्ष में एक लफ्ज़ बोलने से भी कतराते हैं. आज हमारे मुल्क में किन्नरों के पास वोट करने का अधिकार ना के बराबर है क्यूंकि वोटर आईडी के लिए जिन documents की ज़रुरत होती है वो उनके पास होते ही नहीं हैं. पब्लिक places पर मेल और फेमल के लिए सुलभ शौचालये की बहस होती है पर किन्नरों के लिए अलग से सुलभ शौचालयों के बारे में बात ही नहीं उठती. समाज ने उनके साथ जो किया किन्नर आज वही समाज को लौटा रहे हैं.
एक जगह सुना था की जब किसी किन्नर की मौत होती है तो उसकी मईयत रात के अँधेरे मैं लेकर जाते हैं, साथ ही उसकी लाश को जूतों से पीटा जाता है और कहा जाता है की फिर इस दुनिया में मत आना...

Wednesday, 26 August 2009

Statue of liberty से competition क्यूँ करें


हर 6 - 7 महीने के अन्तराल पर अपने नेताओं को किसी ना किसी बात का चस्का लग जाता है और उसके बाद ना आव देखा जाता है ना ताव बस अपनी जिद पूरी की जाती है. पिछले कुछ महीनो से मायावती की जिद पूरी हो रही है, दे दनादन उत्तर प्रदेश के हर गली कूचे में उनकी विशालकाए मूर्तियाँ खड़ी की जा रही हैं, करोडों रूपए मायावती के पॉलिटिकल स्टंट में खर्च हो रहे हैं... भला अब महाराष्ट्र सरकार पीछे क्यूँ रहे आखिर उसका भी तो जनता के पैसे पर कुछ हक बनता है. महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र मैं शिवाजी महाराज की बेहद ऊँची मूर्ती बनाने की प्लानिंग की है यहाँ तक की इस मूर्ती पर तकरीबन 350 करोड़ रूपए के बजट को हरि झंडी मिल गयी है. यह मूर्ती U.S.A की statue of liberty से भी चार फीट ऊँची होगी.
हर मुल्क मैं मूर्तियों का अपना एक ख़ास स्थान होता है, बड़ी और महान शख्सियतों की मूर्तियाँ सर फ़ख से ऊँचा कर देती है, कोई मूर्ती सिर्फ पत्थर का एक ढांचा नहीं होती बल्कि वो उस काल का प्रतीक होती है जिस वक़्त देश अच्छे या बुरे दौर से गुज़रा था. हमारे मुल्क मैं कई दफा उसी दौर को संझो के रखने के लिए कितनी ही मूर्तियाँ खड़ी की गयी पर एक बार उदघाटन के बाद कोई पीछे मुड कर मूर्तियों की हालत नहीं देखता. किसी भगत सिंह पार्क मैं भगत सिंह की हैट टूटी पaड़ी है तो किसी बुधः पार्क मैं बुध की मूर्ती पक्षियों का बसेरा बनी हुई है, हमे किसी statue ऑफ़ लिबर्टी से कॉम्पिटिशन क्यूँ करना है...क्या हमारे मुल्क मैं जो है उसे ही सही से संजोया जा रहा है? जितनी कलाकृतियाँ, जितनी इतिहासिक धरोहरें हमारे यहाँ मौजूद हैं क्या हम उनका रखरखाव ठीक से कर रहे हैं...अगर नहीं तो हमे क्या हक हैं की करोडों रूपए, मजदूरों की मेहनत और काबिल इंजीनियरों का वक़्त लगा कर ऐसी रचना खड़ी करें जिसकी तरफ फिर कभी मुड़ कर देखेंगे भी नहीं?

Friday, 21 August 2009

आग का दरिया (कुर्तुल-एन-हैदर) :- Underlined by me

  • अपने प्रिय व्यक्ति को अपनी रूचि की वस्तु ही प्रस्तुत करके प्रसन्नता होती है
  • हृदय और मस्तिष्क के दुःख कलेश और परीक्षाएं मैं मुक्ति नही चाहता करुना बहुत बड़ी चीज़ है, शाक्यमुनि! किंतु सम्भव है, मुझे स्वयं तुम पर करुना होती है प्रश्न ये है पावन राजकुमार की कौन किस पर करुना करेगा ?
  • ताल सूख पत्थर भयो हंस कहीं जाए पिछली प्रीत के कारने कंकर चुन-चुन खाए
  • " स्त्री स्वतंत्र्म" मनु महाराज ने लिखा है स्त्री स्वतंत्र नही है बिल्कुल सही है रामायण के छ्टे काण्ड में तो यहाँ तक लिखा है की संकट काल में, विवाह के अवसर पर और आराधना के समय स्त्री बाहर जाए तो कोई आपत्ति की बात नही और ये भी लखा है की स्त्री के वेद पढने से बड़ा अनिष्ट फैल सकता है
  • कलाकार बनिए, आजकल कलाकार की तो फौज की फौज हर जगह घूम रही है कोई बुनियादी काम करिए, इतना कुछ करने को पड़ा है
  • "तो शादी आपकी इकनॉमिक मसलों का हल है" शादी हिंदुस्तान की हर लड़की की निजी और खानदानी प्रॉब्लम का हल माना जाता है
  • जीवन इतना गुंजलक, इतना व्यस्त, इतना उबड़ खाबड़ और इतना तर्कहीन था की इंसान सारे परिचितों और सारे जानने वालो के साथ निबाह कर सकता था इतना समय ही नही था
  • यह लड़कियां मरी क्यूँ जाती हैं - असल में - उसने इत्मीनान से टांग पर टांग रख कर सोचना शुरू किया - इनको हजारों बरस से इस काम्प्लेक्स में फंसा दिया गया है- एक, सुना है वो सटी थीं फिर सीता! फिर गोपियों का फ्रौड़ चला - इनको दुनिया में कोई काम नही! बस, किसी भले मानुस को पकड़ कर, दे पूजा, दे उसकी पूजा! अरी नेक्बख्तों, अल्लाह-रसूल से दिल लगाओ, अगर प्रेम ही करना है हज़रत राबिया से सबक लो ! इसके अलावा और भी बहुत सी पहुँची हुई बीबियाँ गुजरी हैं लेकिन यह सारी सेंट वेंट औरतें भी सोचती होंगी कि अगर ईशो मसीह भी मिल जाएँ तो लेकर उनके मोजे रफू कर दें
  • जिसकी सारी उम्र ज़मींदारी के खिलाफ नारे लगते गुजरी थी, ज़मींदारी खत्म हो जाने के कारण हालत इतनी गिर गयी थी कि दो वक़्त की रोटी मुश्किल से चलती थी.
  • 'इतने demoralized क्यूँ हो गए हो ? संघर्ष का साहस खो बैठे. यही तो वक़्त है आज़माइश का. डटे रहो. मजदूरी करो, हल चलाओ, आखिर इन्कलाब का सामना करना इसी को तो कहते हैं. मगर तुम क्या ऐश के सपने देख रहे हो? अगर ऐसा है तो पाकिस्तान चले जाओ. पर मैं तुमसे उम्र भर ना बोलूंगी'.
  • जब खुशहाली आएगी तो सारे मुल्क के लिए आएगी. वो ये थोड़े ही देखती है की ये हिन्दू का द्वार है या मुसलमान का. हम सब एक साथ डूबेंगे, एक साथ उभरेंगे.
  • सारी दुनिया की तरफ से इस्लाम का ठेका इस वक़्त पाकिस्तान सरकार ने ले रखा है. इस्लाम कभी एक बढती हुई नदी की तरह अनगिनत सहायक नदी - नालों को अपने धारे में समेत कर शानके साथ एक बड़े भारी जल - प्रपात के रूप में बहा था, पर अब वही सिमट - सिमटा कर एक मटियाले नाले में बदला जा रहा है.
  • मज़ा यह है की इसलाम का नारा लगाने वालों को धर्म दर्शन से कोई मतलब नहीं. उनको सिर्फ इतना मालूऊम है की मुसलमानों ने आठ सौ साल इसाई स्पेन पर हुकूमत की, एक हज़ार साल हिन्दू भारत पर और चार सौ साल पुर्वी यूरोप पर. इसके अलावा इस्लाम की जो महान मानव प्रेम की परम्पराएं हैं, उनका नाम नहीं लिया जाता.
  • फिर उसने एशिया में कामुनिस्म के खतरे पर प्रकाश डाला और कमाल को बताया की मुस्लिम देश धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा जेहाद में अमरीका की बड़ी सहायता कर सकते हैं.
  • मैंने तरह तरह के जिनिअस किस्म के लोगों के साथ समय बिताया. उनमें से हर एक अपनी जगह पर खुश होता, कभी रंजीदा. तुम खुश क्यूँ हो? मैं हर किसी से पूछती- इतनी गहरी और बारीक समझ रखते हुए भी ऐसे मगन हो! हद है. मैं बुरा मान कर कहती. मगर आखिर मैंने देखा की बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने दुःख को दुनिया के दुःख में समो दिया था. किस कदर आसान बात थी! पहाड़ के नीचे पहुँचतो मालूम हुआ हम खुद और हमारा निजी दुःख कितना तुच्छ है.
  • आठ साल बाद तुम्हारी तरह मैं भी अपने वतन वापस लौटी और मैंने यहाँ के हालात देखे. ऐसी बातें देखी जिनसे मेरे सर फक्र से ऊँचा हुआ, ऐसी चीज़ें देखी जिनसे मेरा सर शर्म से झुक गया. मेरे सामने प्रोब्लेम्स का बहुत ऊँचा पहाड़ था. तब जानते हो क्या हुआ- चींटी ने क्या किया? उसने कानो में हाथ लटका कर पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया.
  • क्या करू पार्टनर मेरा अंत बड़ा दुखद हुआ है.
  • मैं ही लाश हूँ और मैं ही कब्र खोदने वाला और मैं ही रोने वाला.

Sunday, 16 August 2009

शाहरुख की तथाकथित बेईज्ज़ती

हाल ही में अमेरिका के एक एअरपोर्ट पर शाहरुख़ खान " सुपर स्टार" के साथ दो घंटों तक पूछ ताछ चली इस पर इस कदर हंगामा बरपा कि भारतियों की इज्ज़त से खिलवाड़ हो रहा है और भी जाने क्या क्या... कई लोगों का कहना है कि ये भारतियों के साथ ज़्यादा होता है, मुस्लमान के साथ ज़्यादा होता है,अमेरिका एक रेसिस्ट देश है , वहां नाम देख कर पूछ ताछ की जाती है, साथ ही कि ये हमारे मान की बात है, हमे भी अमेरिकिओं से इसी तरह पेश आना चाहिए...या रब हद हो गई हम ख़ुद कितने रेसिस्ट हैं दोगले हैं इसका एहसास ही नही है, ख़ुद हमारे यहाँ हर दाढ़ी वाले को शक की नज़र से देखा जाता है, ख़ुद हमारे यहाँ नॉर्थ ईस्टर्न लोगों को अपना नही समझा जाता, ख़ुद हमारे यहाँ विदेशी पर्यटकओं को तंग किया जाता है, ख़ुद हमारे यहाँ लोगों को नीचा दिखाने के लिए बिहारी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है...इतना हल्ला किसलिए क्यूँ की वो शाहरुख़ खान है? जाने कितने कश्मीरी नौजवानों के सर पर आतंकवादी का लेबल लगा कर मार दिया जाता है, जाने कितने मुस्लमान नौजवानों को कॉलेज में एडमिशन के दौरान तिरछी नज़रों से देखा जाता है, जाने कितने गरीब मासूम लोगों को माओवादी बताकर एनकाउंटर किया जाता है...तब कोई उफ़ भी नही करता, अपने देश में होता है तो सब चुप्पी साध लेते हैं और गैर मुल्क में हुआ तो हाय तौबा...क्यूँ? माना जो हुआ वो ग़लत हुआ लेकिन उससे ज़्यादा ग़लत तो पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब के साथ हुआ...लेकिन तब न्यूज़ चैनल वाले ही चिलाये थे अभी आम इंसान को भी चिल्लाता देख रही हूँ...अरे ज़्यादा जोश में आने की ज़रूरत नही है..इनका कोई भरोसा नही कल को इमरान हाश्मी की तरह कह देंगे "मेरे साथ कोई बदसलूकी नही हुई,मेरे बयां को तोड़ मरोड़ के पेश किया गया था"

Thursday, 13 August 2009

स्वतंत्रता दिवस - सच या ढोंग

म आजाद हैं और इसकी ख़ुशी लफ्जों में बयां नहीं की जा सकती, तो चलो करोड़ो रूपए खर्च कर के इंडिया गेट से लाल किला तक परेड कराई जाए, अपनी जेब से तो पैसा जाना नहीं है तो खर्च करो जम कर खर्च करो, पिछली सरकार के वक़्त जैसा सेलेब्रेशन हुआ था उससे अच्छा होना चाहिए, उससे शानदार होना चाहिए. भाई यह तो सोच हुई अपने नेताओं की पर आप और हम तो आम इंसान हैं हमारी कमाई कई साल से पानी की तरह बहाई जा रहा है और हम हैं की टीवी पर प्रदेशों की झाकियां देख कर खुश होते हैं. कहते हैं एक देश एक परिवार होता है जहाँ हर किसी को एक दुसरे के दुःख को समझना चाहिए, तो क्या परिवार में यही होता है की कोई सदस्य भूख से मर रहा हो और बाकी सदस्य पार्टी एन्जॉय कर रहे हो? मुल्क के किसान खुदकुशी कर रहे हैं पूरा पूरा परिवार पानी में ज़हर मिला कर पी जाता हैं क्यूंकि गरीबी सही नहीं जाती. न जाने कितने लोग सही इलाज ना होने के कारण दम तोड़ देते हैं, कितने लोग दवाई न मिलने की वजह से मौत को गले लगा लेते हैं, हजारों बच्चे मिड डे मील का खाना खा कर बीमार पड़ जाते हैं और कितने ही बच्चे कुपोषित जिस्म ले कर सड़कों पे नज़र आते हैं. इन सब के बावजूद राष्ट्रीय धन कोष का एक बहुत बड़ा हिस्सा १५ अगस्त और २६ जनवरी के सेलेब्रेशन में खर्च होता है. कई लोगों का मानना है की ये राष्ट्रीय गौरव की बात है, झांकियों का निकलना, जवानों का परेड करना ये सब देश की तरक्की को दर्शाता है. भई जिन जवानों को देख कर गर्व होता है उनकी बुनियादी ज़रूरतों के बारे में सोचो, जिन प्रदेशों की झाकियां देख कर सर ऊँचा हो जाता है उनके यहाँ पानी और बिजली की सुविधाओं के बारे में सोचो और जिन बच्चो को परफोर्म करते देख ख़ुशी से फूले नहीं समाते कम से कम उनके भविष्य के बारे में ही सोच लो. हर साल १५ अगस्त के मौके पर दिल्ली पुलिस की 196 companies, सेंट्रल परामिलिटरी फोर्सेस की 55 companies, तकरीबन 800 कमान्डोस और तकरीबन 35 हज़ार पुलिस के नौजवान व्यस्त रहते हैं यानी उस वक़्त वो सिर्फ १५ अगस्त के सेलेब्रेशन की तैयारी करते हैं. इतना झमेला इतना पैसे की बर्बादी किस लिए अपनी नाक बचाने के लिए या जनता को उलझाने के लिए ? आम इंसान तो इस तामझाम को टीवी पर ही देख पाता है और उसपर भी हमारे प्रधानमंत्री जनता को संबोधित करके जो भाषण देते हैं वो अंग्रेजी में... (खैर ये दूसरा मसला है इस पर भी बात करेंगे) तकरीबन 5 प्रतिशत लोग इस भाषण को समझ सकते हैं और वो भी उस वक़्त 15 अगस्त की छुट्टी का नींद में मज़ा ले रहे होते हैं
तो क्या independence day और republic day पर यूँ पानी की तरह पैसे और resources की बर्बादी करना सही है ?