हम आजाद हैं और इसकी ख़ुशी लफ्जों में बयां नहीं की जा सकती, तो चलो करोड़ो रूपए खर्च कर के इंडिया गेट से लाल किला तक परेड कराई जाए, अपनी जेब से तो पैसा जाना नहीं है तो खर्च करो जम कर खर्च करो, पिछली सरकार के वक़्त जैसा सेलेब्रेशन हुआ था उससे अच्छा होना चाहिए, उससे शानदार होना चाहिए. भाई यह तो सोच हुई अपने नेताओं की पर आप और हम तो आम इंसान हैं हमारी कमाई कई साल से पानी की तरह बहाई जा रहा है और हम हैं की टीवी पर प्रदेशों की झाकियां देख कर खुश होते हैं. कहते हैं एक देश एक परिवार होता है जहाँ हर किसी को एक दुसरे के दुःख को समझना चाहिए, तो क्या परिवार में यही होता है की कोई सदस्य भूख से मर रहा हो और बाकी सदस्य पार्टी एन्जॉय कर रहे हो? मुल्क के किसान खुदकुशी कर रहे हैं पूरा पूरा परिवार पानी में ज़हर मिला कर पी जाता हैं क्यूंकि गरीबी सही नहीं जाती. न जाने कितने लोग सही इलाज ना होने के कारण दम तोड़ देते हैं, कितने लोग दवाई न मिलने की वजह से मौत को गले लगा लेते हैं, हजारों बच्चे मिड डे मील का खाना खा कर बीमार पड़ जाते हैं और कितने ही बच्चे कुपोषित जिस्म ले कर सड़कों पे नज़र आते हैं. इन सब के बावजूद राष्ट्रीय धन कोष का एक बहुत बड़ा हिस्सा १५ अगस्त और २६ जनवरी के सेलेब्रेशन में खर्च होता है. कई लोगों का मानना है की ये राष्ट्रीय गौरव की बात है, झांकियों का निकलना, जवानों का परेड करना ये सब देश की तरक्की को दर्शाता है. भई जिन जवानों को देख कर गर्व होता है उनकी बुनियादी ज़रूरतों के बारे में सोचो, जिन प्रदेशों की झाकियां देख कर सर ऊँचा हो जाता है उनके यहाँ पानी और बिजली की सुविधाओं के बारे में सोचो और जिन बच्चो को परफोर्म करते देख ख़ुशी से फूले नहीं समाते कम से कम उनके भविष्य के बारे में ही सोच लो. हर साल १५ अगस्त के मौके पर दिल्ली पुलिस की 196 companies, सेंट्रल परामिलिटरी फोर्सेस की 55 companies, तकरीबन 800 कमान्डोस और तकरीबन 35 हज़ार पुलिस के नौजवान व्यस्त रहते हैं यानी उस वक़्त वो सिर्फ १५ अगस्त के सेलेब्रेशन की तैयारी करते हैं. इतना झमेला इतना पैसे की बर्बादी किस लिए अपनी नाक बचाने के लिए या जनता को उलझाने के लिए ? आम इंसान तो इस तामझाम को टीवी पर ही देख पाता है और उसपर भी हमारे प्रधानमंत्री जनता को संबोधित करके जो भाषण देते हैं वो अंग्रेजी में... (खैर ये दूसरा मसला है इस पर भी बात करेंगे) तकरीबन 5 प्रतिशत लोग इस भाषण को समझ सकते हैं और वो भी उस वक़्त 15 अगस्त की छुट्टी का नींद में मज़ा ले रहे होते हैं
तो क्या independence day और republic day पर यूँ पानी की तरह पैसे और resources की बर्बादी करना सही है ?
सोचना चाहिए...मगर और कौन सा तरीका है नागरिकों को यह बताने का की वे आजाद है ..??
ReplyDeleteसही मुद्दा
ReplyDeletebahut sahi masla uthaya hai tumne...
ReplyDeleteinhee ke liy wo kahavat bani thee... "tete paanv pasariye, jeti lambi shor" matlab pair utna hee failao jitni lambi chaadar ho...
sahee mudda hai or mai bilkul lekhika ke mat se sahmat hun ki karoro rupay kharch kr ke azadee ka jashn manane kaa kya matlab hai jab ektaraph bahut log bhukho so rahen hain.....
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट लिखी है।...लेकिन क्या कोई चेतेगा?......
ReplyDeleteएक बहुत सही मुद्दे पर एक विचारणीय पोस्ट.
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut shukriya...umeed hai aage bhi aapke vichar isi tarah is mujh tak pahunchte rahenge...
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित रचना...बधाई...आप बहुत अच्छा लिखती हैं...
ReplyDeleteनीरज
पंद्रह अगस्त पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, और हमारे देश के 84 करोड़ रुपये बीस रुपये रोज़ पर गुज़ारा करते हैं।
ReplyDeleteवैसे, मुट्ठीभर अमीरों और उनकी मैनेजिंग कमेटी यानी सरकार के लिए तो खुशी की बात है इसलिए इस पर खर्च किया जाता है, क्योंकि वे सही मायनों में वे आज़ाद जो हैं।
बाकी तो... एक शायर ने सवाल किया था 'क़ौन आज़ाद हुआ, किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी...'
स्वतंत्रा दिवस जी हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteराष्ट्रीयता की भावना को एकसूत्र में बांधे रखने के लिए और राष्ट्रीय गौरव को महसूस करने के किये स्वंतंत्रता समारोह उचित है. परन्तु भारत जैसे विकासशील देश में बजट का खासा ध्यान रखना उससे ज्यादा जरुरी है. यहाँ समस्या है - ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबी अफसरशाही और बुनियादी स्तर पर कार्य करने में इच्छाशक्ति की कमी.
ReplyDeleteहमारे सामने चीन और जापान का उदाहरण है. जिन्होंने उत्कृष्ट आर्थिक और ओधोगिक नीति बनाकर खुद को विकसित पंक्ति में खड़ा किया है. फिर भी आज़ादी के 62 वर्ष बाद आज के हालत पर मैं यही कहूँगा -
इस दौर-ए-तरक्की के अंदाज निराले हैं.
जेहन में अँधेरे और सड़को पे उजाले हैं.
गंभीर मुद्दों पर बेबाक लेखन के लिया आपका शुक्रिया.
- सुलभ
( यादों का इंद्रजाल )
bahut hi acchi aur shaandar rachna .padhkar man vyateeth ho utha .. kya ye desh ab aisa hi rahenga ..
ReplyDeletebadhai sweekar kare ..
vijay
pls read my poem "jheel " on my blog : www.poemsofvijay.blogspot.com