अक्सर सुनती हूँ औरत की अपनी एक मर्यादा होती है और वो उसी में अच्छी लगती है, जो औरत उस मर्यादा को पार कर जाए उसे वैश्या, बदचलन और आवारा जैसे नामो से नवाजा जाता है. पिछले दिनों पटना में हुई घटना के बारे में कई चर्चा और बहस सुनी कई जगह कहा गया की उस औरत के साथ बदसलूकी इस लिए हुई क्यूंकि वो एक सेक्स worker थी. सुन कर ताजुब इस बात पर हुआ की यह विचार हमारी नौजवान पीढ़ी के हैं, कई लोगों का मानना की अगर उस जगह कोई आम लड़की होती तो उसके साथ ऐसा नहीं होता, आस पास खड़े लोग यूँ तमाशा ना देखते. एक तरफ यह सुन कर हंसी आती है तो दूसरी तरफ आदमी के अपने पक्ष में दिए गए बयान पर गुस्सा. अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब श्री राम सेना के कार्येकर्ताओं ने एक pub में घुस पर लड़कियों को इस लिए मारा पीटा था क्यूंकि उन्होंने वेस्टर्न कपडे पहने थे और pub में डांस कर रही थीं. यहाँ जवाब में ऐसी ही दलीलें सुनने को मिली थी की लड़कियों का वेस्टर्न कपडे पहना हमारी संस्कृति का अपमान है. दो साल पहले नए साल पर मुंबई में एक फाइव स्टार होटल के आगे लड़कियों के कपडे फाड़े गए उस वक़्त भी वहां आस पास खड़े लोग बस तमाशा देख रहे थे. बताना चाहूंगी की वो लड़कियां सेक्स worker नहीं थीं फिर भी कोई सामने नहीं आया. मुंबई के बारे में सुना था की लड़कियों के लिए safe है पर ये हादसा टीवी पर देखने के बाद यकीन आया की मुल्क का कोई भी कोना सुरक्षित नहीं है.
औरत के कंधे पर सभ्यता और संकृति का बोझ लाद कर उसका इस्तमाल करो, उसे भरे बाज़ार बेईज्ज़त करो. क्या औरत के कपडे फाड़ना, उसे चील कौओं की तरह नोचना ही हमारी संकृति है? क्या लड़कियों का वेस्टर्न कपडे पहना ही सभ्यता के खिलाफ है...जो श्री राम सेना के कार्यकर्त्ता लड़कियों को pub से निकाल कर पीट रहे थे उन्होंने खुद जींस और टी shirts पहनी हुई थी, क्या लड़को का वेस्टर्न कपडे पहना सही और लड़कियों का वेस्टर्न कपडे पहना ग़लत है...ऐसा क्यूँ? जो लोग बीच बाज़ार सेक्स workers को गालियाँ देते हैं क्या वो रात के अँधेरे में उन्ही के पास नहीं जाते?
सच तो यह है की ऐसा हमारे समाज की खोखली मानसिकता की वजह से हो रहा है. सभ्यता और संस्कृति का टोकरा औरत के सर पर लाद दो और खुद ऐयाशी में डूबे रहो. आये दिन नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों के साथ बतमीजी के किस्से सामने आते रहते हैं किसी को कहते सुना की नॉर्थ ईस्टर्न लड़कियों का कैरेक्टर ख़राब होता है जब मैंने जानना चाहा की किस बिना पर ऐसा कहा जा रहा है तो सुनने को मिला वो आसानी से पट जाती हैं, मैंने कहा पटाते आप है तो आपका कैरेक्टर भी तो ख़राब हुआ इस पर जवाब आया "लड़को का कोई कैरेक्टर नहीं होता"
अब इस बात का क्या जवाब दिया जाये यह सब सुन कर मेरा दिमाग खुद लाजवाब हो जाता है...
apane bahut hi sahi kaha hai ki aaj bhi ladkiyon or aurton ko lekar dohari mansikaa apnai ja rahi hai or to or ye bhedbhav hamara yuva varg jyada kr raha hai....
ReplyDeletehar hansti khil-khilati ladki badchalan ho jati hai yahn ......
गन्दी मानसिकता है, संस्कृति और सभ्यता तो बस एक बहाना है.. सच कहूं तो मुझे लगता है भारतीय संस्कृति का मतलब ही औरतों का अपमान है.. हमारी संस्कृति की वही कहानी है जैसे.. एक कहावत.. ऊँची दूकान, फीकी पकवान... दुनिया भर में मशहूर भारतीय संस्कृति पे मुझे रोना आता है, चूँकि ना तो कभी इतिहास में इसने औरतों की इज्ज़त की ना आज कर रहे हैं और इन तथाकथिक संस्कृति के ठेकेदार से सुधार की कोई उम्मीद भी नहीं हैं.. भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण.. कैसी संस्कृति थी..हिन्दू-धर्म की देव-दासियाँ कैसी सभ्यता थी..दरबार में नर्तकियों को नचाकर ऐश भोगना कौन सी संस्कृति है... इससे लाख गुना बढ़िया है पाश्चात्य संस्कृति.. थू है मेरी भारतीय सभ्यता और संस्कृति पे..
ReplyDeleteaapke aalekh ko padhkar anaayaas hee man me ek pratikriyaa nikli jise shabdon kaa roop diya hai, to check click on
ReplyDeletechaukhatparmain.blogspot.com
comments dene ke liye shukriya...
ReplyDeleteवाकई औरतों को लेकर समाज के एक बड़े तबके की सोच खोखली बनी हुई है. चिंता का सबब यह है तथाकथित पुरुष प्रधान समाज २१वी सदी में भी अपनी मानसिकता नहीं बदल पाया. आपने अच्छा आलेख लिखा है.
ReplyDeletehttp://aajavlokan.blogspot.com/
acha likha hai par main ye socha hu ki ye nishani hai aaj ke samaj ke vinash ki.par isme kuch media ki b bagadari hai qki vo apni manvadka ko bhul gaya hai or vo sab dikha raha hai jo nahi dikhna chaiye
ReplyDeletebaat yahan sirf westorn libas pehanne tak seemit nahi balke aisi bahut si batain hain jinko lekar ladkiyon par aur unke charitra par chheetakashi ki jati hai zarurat yahan purush pardhan smaj ki soch badalne ki hai, apke vichar se main sehmat hun.
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