अभी हाल ही में लव आज कल देखी, इम्तियाज़ अली की यह फिल्म उनकी सभी फिल्मों की तरह बेहद सिंपल मगर खूबसूरत है....इस फिल्म को देखने के बाद एक बात के बारे में लगातार सोच रही हूँ, आज हम लोग अपनी ज़िन्दगी को लेकर अपने करियर को लेकर कितना सीरियस हो गए हैं, इतना ज्यादा की अपने लिए, अपनों के लिए वक़्त ही नहीं है. अक्सर माँ से सुनती हूँ की हम लोग गर्मियों के मौसम में एक बाल्टी में आम भिगो दिया करते थे और सारा दिन आँगन में खेलते और घूम घूम कर आम खाते, सर्दियों में अक्सर माँ कहती है की तुम लोगों के पास तो वक़्त ही नहीं होता हमारे ज़माने में हम लोग आगन में आग जला कर घंटों बैठा करते, साथ ही उस आग में कुछ ना कुछ खाने के लिए भी सेकते रहते.....और ख़ास कर सावन में तो माँ बताते बताते नहीं थकती की किस तरह सारा दिन बाग़ में पड़े झूलों पर झूला जाता और किस तरह बेफिक्री से बारिश में भीगा जाता.....सच है आज ना तो गर्मियों में घर पर बैठने की फुर्सत है ना ही सर्दियों में घंटों हीटर के सामने बैठने का वक़्त है....बारिश में तो पूछना ही क्या जब जोरदार बारिश होती है तो मन कितना भी मचले...बस ऑफिस की खिड़की से बाहर झाँक कर मन को शांत करना होता है....वक़्त ही कहाँ है हम में से किसी के भी पास,
पहले ज़िन्दगी आसान थी करियर की मुश्किलें नहीं थी लोग मोहब्बत भी करते थे तो फुर्सत के साथ अब तो मोहब्बत भी जल्दी करनी है टाइम कहाँ है माशूका के घर के आगे घंटों बैठने का, अपने बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है तो किसी और के ख्यालों में घंटों कैसे उलझे रहे.....क्या लगता है आपको जानना चाहती हूँ क्या हम सब हद से ज्यादा करियर oriented हो गए हैं या ये वक़्त की ज़रूरत है.....तो क्या आपका दिल भी गुलज़ार की इन लाइनों से जुडा हुआ महसूस करता है .....दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन......
फौजिया जी...
ReplyDeleteपुराने दिन याद आ गए.. शुक्रिया उस बीते हुए लम्हों को जेहन में लाने के लिए.. एक वक़्त था जब ठंढ के मौसम पर आग सेंकने के साथ साथ हम भी घर वालों के साथ लिट्टी और भुट्टे का मज़ा लेते थे. दोस्तों के साथ आम के बगीचों में पत्थर मारने के लिए अलग से वक़्त निकालते थे, एक वो दिन था और एक आज का है. कभी बिना उद्देश्य के ही घंटो सडको पे घुमते थे, अब तो एक मिनट भी यूँ ही बेवजह निकलने को जी नहीं करता.. करियर ओरिएँटेड होने में कोई बुराई नहीं.. जिंदगी भी तो चलानी है.. और फिर वो मज़ा तो गाँवों में ज्यादा है.. इस चमचमाते शहर में कहाँ अलाव, कहाँ लिट्टी, कहाँ आम के बगीचे, और कहाँ मिलेगी वो मौसम की रवानगी... सारा शहर तो गाड़ियों और ऊँचे-ऊँचे बंगलों में खोया पड़ा है...
बहुत बेहतर शब्द दिए हैं आपने और जज्बातों को सही मायनों पे उतारा है.. एक तस्वीर जो कही धूमिल सी थी अत्तेत के पन्नों में... उसे बाहर निकालने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...
आपका मुरीद..
फ़ौज़िया जी,
ReplyDeleteआपकी बातों ने तो अपने गाँव की याद दिला दी.
शहर की इस भागती-दौडती जिन्दगी से यह सब माँगना और उन दिनो की चाहत करना ही बेमानी है, यहाँ हर कोई भागता है और हम भी इस भीड मे अपनी मर्जी से शामिल हो चुके हैं सो अब उन दिनो को याद कर के मन उदास नही करना चाहता.
वैसे आपके पोस्ट को पढकर अच्छा लगा.
आप अच्छा लिखती हैं.आपके पास शबद हैं, कोमल विचर हैं और उनको कागज पर उतारने की कला भी है सो लिखते रहिए.
आपके आगले पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा.
इस ब्लॉग को visit करने और जवाब देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.....बस लिखने की कोशिश रहती है उम्मीद है आगे भी जो कुछ लिखूंगी उस पर आप लोगों की राय ज़रूर मिलेगी.
ReplyDeleteफौजिया
सफ़र में बहुत आगे चले जाने के अचानक जब ऐसा लगे कि अरे !!.....रास्ता तो गलत चुन लिया मैंने......!!...तब कैसा लगे....??....अक्सर बहुत बाद में हम सोचते हैं कि हमने शायद यह ठीक नहीं किया....और जिंदगानी तब तलक बहुत पीछे छूट चुकी होती है.....यादें....याद आतीं हैं....वादे भूल जाते हैं.....!!
ReplyDeleteजबतक हमारी आँख खुलती है , हम बहुत आगे निकल पड़े होते हैं ..! पीछे छूट गया ,जो खो गया वो फिर कभी हासिल नही होता ,ये अनुभव ही सिखाता है ..हरेक को ..!
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
.....दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन......
ReplyDeletesakaratmak soch ko manzil mil jaye inhein shubhkamnaon ke saath
Devi Nangrani
वाह... स्वागत है।
ReplyDeleteماشا اللہ اللد کرے زور قلم اور زیادہ
ReplyDeleteबेहतरीन संस्मरण....बहुत सी बाते याद आ गयी. इतनी अच्छी पोस्ट के लिये आभार.
ReplyDeleteस्वागत है.
गुलमोहर का फूल
आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल मन की अभिवयक्ति साथ में बहुत सारी शुभकामनाये आप इस ब्लॉग जगत में नियमित लिखते रहे
ReplyDeleteआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
ReplyDeleteलिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी
Aap jab bhi kuchh likhti hain, padh kar mann ko bahut sukun milta hai...aapke kalam me jadu hai...apni taraf aakarshit kiye bina nahi rahtin aap...
ReplyDelete